सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को भारतीय स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस की मौत की जांच की मांग वाली जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया [पिनाक पाणि मोहंती बनाम भारत संघ और अन्य]।
ऐसा माना जाता है कि बोस की मृत्यु 1945 में ताइवान में एक विमान दुर्घटना के दौरान जलने से हुई थी।
जस्टिस सूर्यकांत और उज्जल भुयान की पीठ का मानना था कि बोस की मौत की जांच के लिए गठित जांच आयोग द्वारा निकाले गए निष्कर्ष की वैधता पर निर्णय लेना न्यायालय का काम नहीं है
जस्टिस कांत ने मौखिक रूप से टिप्पणी की, "आपको उचित मंच पर जाना चाहिए। हम इस पर निर्णय नहीं ले सकते। नेताजी की मौत की जांच के लिए गठित आयोग सही था या नहीं, यह मुद्दा नीति से जुड़ा है और न्यायालय को इस पर निर्णय नहीं लेना चाहिए।"
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि बोस की मृत्यु के पहलू पर कोई अंतिम निर्णय नहीं है क्योंकि 1970 के खोसला आयोग और 1956 के शाह नवाज आयोग ने बोस के लापता होने के बारे में कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं निकाला था।
यह तर्क दिया गया कि बोस की मृत्यु 1945 में विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी और इसलिए, न्यायालय जांच का आदेश दे सकता है।
याचिकाकर्ता ने न्यायालय से यह घोषणा करने की भी मांग की कि बोस के नेतृत्व वाली आज़ाद हिंद फ़ौज ने ही 1947 में ब्रिटेन से भारत को स्वतंत्रता दिलाने में मदद की थी।
न्यायमूर्ति कांत ने जनहित याचिका को खारिज करते हुए टिप्पणी की, "हम विशेषज्ञ नहीं हैं। आप राजनीतिक कार्यकर्ता हैं, अपनी पार्टी में जाकर अपनी दलील रखें। हम हर चीज़ का समाधान नहीं हैं। सरकार को चलाना न्यायालय का काम नहीं है।"
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Supreme Court refuses to entertain PIL for probe into death of Subhas Chandra Bose