सर्वोच्च न्यायालय ने आज भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ एक इन-हाउस जांच की मांग करने वाली जनहित याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वे न्यायाधीश अब पदमुक्त हो चुके हैं।
2018 में अरुण रामचंद्र हुबलीकर द्वारा एक जनहित याचिका दायर की गई थी, लेकिन सीजेआई गोगोई के सेवानिव्रत होने के काफी महीनों बाद आज सुनवाई हुई।
आज की सुनवाई शुरू होने से पूर्व, बेंच ने अनौपचारिक रूप से कहा कि प्रार्थना अनैतिक रूप से प्रस्तुत की गई प्रतीत होती है। फिर भी, याचिकाकर्ता ने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर अपना मामले पर सुनवाई कि मांग की।
उन्होंने जस्टिस अरुण मिश्रा, बीआर गवई और कृष्ण मुरारी की खंडपीठ से जस्टिस गोगोई के खिलाफ उचित कार्रवाई करने के लिए एक इन-हाउस कमेटी के गठन के लिए प्रार्थना की गई थी।
उन्होंने तर्क दिया कि अब सेवानिवृत्त सीजेआई ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, "कृताकृत और चूक" के कृत्यों के माध्यम से अपने कार्यालय का दुरुपयोग किया। उन्होंने जस्टिस गोगोई द्वारा पारित आदेशों का हवाला देने की मांग की जब उनके द्वारा कथित तौर पर पूर्वाग्रह और अनौचित्य क्षति पहुंचाई गयी थी।
हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने बिना किसी अनिश्चित शब्दों के कहा कि जस्टिस गोगोई पदमुक्त हो गए हैं, इसलिए प्रार्थना प्रभावहीन और अब इस तरह की जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता है।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने याचिकाकर्ता से जनहित याचिका में देरी के संबंध में भी पूछताछ की, जिस पर याचिकाकर्ता ने जवाब दिया कि दो साल पहले दायर उनकी याचिका को "दर्जनों स्मरण पत्रों" के बावजूद रजिस्ट्री द्वारा सूचीबद्ध नहीं किया गया था।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने प्रार्थी की प्रार्थना के संबंध मे न्यायालय की असमर्थता व्यक्त की और कहा,
"वे अब सेवामुक्त हो गए हैं। क्या किया जा सकता है? अब कुछ भी नहीं किया जा सकता है ... क्योंकि वे अब सेवानिव्रत हो गए हैं, याचिका में अब कुछ भी नहीं रहा है। हम उन सभी में नहीं जा सकते हैं या अब इस प्रार्थना पर विचार नहीं कर सकते ..."
कोर्ट ने इस प्रकार जनहित याचिका को सुनने से इंकार कर दिया और इसे प्रभावहीन मानते हुए खारिज कर दिया।
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