सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पत्रकार राणा अय्यूब की गाजियाबाद अदालत के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया, जिसने धन शोधन निवारण (पीएमएलए) मामले में उसके खिलाफ कार्यवाही शुरू की थी। [राणा अय्यूब बनाम प्रवर्तन निदेशालय]।
जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और जेबी पर्दीवाला की पीठ ने आज दलीलें पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दायर एक अभियोजन शिकायत के संबंध में अय्यूब को गाजियाबाद की एक ट्रायल कोर्ट ने तलब किया था।
विशेष न्यायाधीश वत्सल श्रीवास्तव ने 29 नवंबर को कहा था कि पूरे रिकॉर्ड को देखने पर उनके खिलाफ संज्ञान लेने के लिए प्रथम दृष्टया मामले के पर्याप्त सबूत हैं।
अय्यूब ने यह कहते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया कि यूपी अदालत के पास इस मामले की सुनवाई का अधिकार नहीं है क्योंकि शिकायत मुंबई में हुई थी और ईडी का दिल्ली ज़ोनल कार्यालय मामले की जांच कर रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को गाजियाबाद की विशेष अदालत को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में सुनवाई 31 जनवरी के बाद किसी भी दिन टालने का आदेश दिया।
ईडी ने अय्यूब के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन अधिनियम और काला धन अधिनियम के प्रावधानों के तहत गाजियाबाद के इंदिरापुरम पुलिस स्टेशन द्वारा सितंबर 2021 में दर्ज एक प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के आधार पर मनी लॉन्ड्रिंग जांच शुरू की थी।
प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि उसने ऑनलाइन क्राउड फंडिंग प्लेटफॉर्म केटो पर धन उगाहने वाले अभियान चलाकर चैरिटी के नाम पर आम जनता से अवैध रूप से धन प्राप्त किया।
यह भी आरोप लगाया गया था कि अय्यूब ने विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) के तहत पंजीकरण के बिना विदेशी योगदान प्राप्त किया था।
ईडी के अनुसार, जांच से पता चला है कि अय्यूब ने तीन धन उगाहने वाले अभियान चलाए और कुल ₹2.69 करोड़ की धनराशि एकत्र की।
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