स्पाइसजेट को शुक्रवार को उस समय बड़ी राहत मिली जब उच्चतम न्यायालय ने इसके पुराने प्रमोटर कलानिधि मारन के साथ चल रहे विवाद में इस विमान कंपनी को 243 करोड़ रूपए जमा कराने के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की तीन सदस्यीय पीठ ने मारन और विमान कंपनी के बची शेयर हस्तांतरण विवाद में उच्च न्यायालय के आदेशों के खिलाफ स्पाइसजेट की अपील पर मारन को नोटिस जारी किया। उच्च न्यायालय ने ये आदेश इस साल सितंबर और अक्टूबर में दिये थे।
मारन ने 22 अक्टूबर को दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर स्पाइसजेट के प्रमोटर अजय सिंह की हिस्सेदारी कुर्क करने का अनुरोध किया था क्योंकि विमान कंपनी सन समूह के अध्यक्ष के पक्ष में 243 करोड़ रूपए जमा कराने में असफल रही थी।
धनराशि जमा कराने की समय सीमा 14 अक्टूबर को खत्म हो गयी थी। 243 करोड़ रूपए की यह धनराशि ब्याज की है जो मारन और उनकी केएएल एयरवेज ने 2018 में पंचाट में जीता था।
उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका में सवाल उठाया गया है कि क्या मध्यस्था कानून की धारा 34 के तहत पंचाट के अवार्ड को दी गयी चुनौती फैसले के बगैर ही उच्च न्यायालय के लिये याचिकाकर्ता को पंचाट अवार्ड और ऑडिट रिपोर्ट की गलत व्याख्या के आधार पर ब्याज के रूप में 242.93 करोड़ रूपए की राशि, जमा कराने का निर्देश देना न्याय संगत है? पंचाट के अवार्ड पर कराने की कार्यवाही जनवरी 2019 से लंबित है।
याचिका में कोविड-19 के दौरान विमान कंपनी के सामने उत्पन्न अस्तित्व के संकट को आधार बनाया गया है।
फरवरी, 2015 में मारन और उनकी केएएल एयरवेज ने स्पाइसजेट में अपने 58.46 शेयर दो रूपए की मामूली कीमत पर वर्तमान चेयरमैन और प्रबंध निदेशक सिंह को उस समय हस्तांतरित किये थे जब विमान कंपनी के संचालन के सामने नकदी का घोर संकट पैदा हो गया था।
स्पाइसजेट के सह-संस्थापक सिंह ने विमान कंपनी की करीब 1,500 करोड़ रूपए की देनदारियां लीं। मारन और केएएल एयरवेज का कहना है कि इस संबंध में हुये समझौते के अनुसार उन्होंने स्पाइसजेट को वारंट और अधिमान शेयर जारी करने के लियये 679 करोड़ रूपए का भुगतान किया।
मारन ने दिल्ली उच्च न्यायालय में 2017 में सिंह और स्पाइसजेट के खिलाफ मामला दायर किया क्योंकि उनके अनुसार उन्हें न तो परिवर्तनीय वारंट और अधिमान शेयर दिये गये और न ही उनका पैसा लौटाया गया।
जुलाई 2018 में पंचाट ने मारन और केएएल एयरवेज को वारंट जारी नहीं करने की वजह से 1,323 करोड़ रूपए के हर्जाने का मारन का दावा अस्वीकार कर दिया लेकिन उसने 579 करोड़ रूपए और ब्याज की रकम मारन को वापस करने का अवार्ड सुनाया।
स्पाइसजेट को 329 करोड़ रूपए की बैक गारंटी देने और शेष 250 करोड़ रूपए नकद जमा कराने की अनुमति दी गयी।
इसके बाद, मारन ने पंचाट के इस फैसले को चुनाती दी जिसने हर्जाने का ही नहीं बल्कि एयरलाइन पर दुबारा नियंत्रण का दावा भी अस्वीकार कर दिया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्पाइसजेट को भुगतान करने का निर्देश दिया था।
उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका में कहा गया है कि अवार्ड के ब्याज के लिये इतनी बड़ी धनराशि जमा कराने का निर्देश देकर उच्च न्यायालय ने इस पहलू पर विचार नहीं करके गलती की है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा धारा 34 के अंतर्गत की गयी कार्यवाही में ब्याज की राशि पर सवाल उठाये हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी अधिवक्ता नीहा नागपाल, मनीष मलक भट और अर्षदीप सिंह स्पाइसजेट की ओर से पेश हुये
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