उच्चतम न्यायालय ने दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) में व्यक्तिगत गारंटर के दिवाला संबंधी प्रावधानों को चुनौती देने वाली सारी याचिकायें आज अपने यहां स्थानांतरित करने पर राजी हो गया। (इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया बनाम ललित कुमार जैन एंड ऑर्स)।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने स्थानातंरण याचिका पर कल संक्षिप्त सुनवाई के बाद इसकी अनुमति देने का संकेत देते हुये कहा था कि इस बारे में आदेश बाद में दिया जायेगा।
न्यायालय ने आज कहा कि अब कोई भी उच्च न्यायालय इस विषय पर किसी नयी याचिका पर विचार नहीं करेगा। न्यायालय ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालयों द्वारा पारित अंतरिम आदेश अगले आदेश तक प्रभावी रहेंगे।
इस मामले में अब दो दिसंबर को सुनवाई होगी और उस समय तक संबंधित पक्षों को अपनी प्लीडिंग पूरी करनी होगी।
भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड ने विभिन्न उच्च न्यायालयों में दायर याचिकाओं को अपने यहां स्थानांतरित करने का उच्च्तम न्यायालय से अनुरोध किया था ताकि इस विषय पर परस्पर विरोधी व्यवस्थाओं से बचा जा सके। बोर्ड की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल माधवी दीवान ने कल सुनवाई के दौरान इस बात पर जोर दिया था।
भारतीय स्टेट बैंक आफ इंडिया की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कि विभिन्न याचिकाओं में उठाया गया मुद्दा राष्ट्रीय मुद्दा है ओर यह उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ताओं को प्रभावित नहीं करता है। उन्होने कहा कि बेहतर होगा कि उच्चतम न्यायालय ही इस सवाल पर विचार करके अपनी व्यवस्था दे।
लंबित याचिकाओं में से सबसे अधिक दिल्ली उच्च न्यायालय में हैं जहां इस पर 10 नवंबर से अंतिम सुनवाई होने की उम्मीद है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अनिल अंबानी की याचिका सहित कई याचिकाओं के समूह पर अंतरिम आदेश भी पारित किया था।
हालांकि, प्रतिवादियों के कुछ अधिवक्ताओं का कहना था कि बेहतर तो उच्च न्यायालय ही पहले इस सवाल पर फैसला करें जबकि कुछ अधिवक्ताओं ने मप्र उच्च न्यायालय और तेलंगाना उच्च न्यायालय में लंबित मामले दिल्ली उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने का सुझाव दिया जहां पहले से ही मामला विचाराधीन है।भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड द्वारा इस मामले को उच्चतम न्यायालय में स्थानांतरित करने के अनुरोध पर भी सवाल उठाये गये।
बोर्ड ने अपनी स्थानांतरण याचिका में कहा था कि एक से अधिक उच्च न्यायालयों में कई रिट याचिकायें दायर की गयी हैं जिनमे सामान्य महत्व के कानून के पुख्ता सवाल उठाये गये हैं।
इन सभी याचिकाओं में आईबीसी के भाग III की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गयी है। ये प्रावधान व्यक्तिगत और साझेदारी वाली फर्म के मामले में दिवाला समाधान से संबंधित है।
धारा 95, 96, 100 और 101 को भी व्यक्ति गारंटर पर लागू होने के संबंध में चुनौती दी गयी है। दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता के तहत केन्द्र सरकार द्वारा बनाये गये नियमों को भी चुनौती दी गयी है।
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