मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने सालसीटर जनरल तुषार मेहता को आज उस हलफनामे के लिये आड़े हाथ लिया जिसमे कहा गया था कि तबलीगी जमानत मुद्दे का सांप्रदायिकरण किये जाने के संबंध में ‘खराब रिपोर्टिंग की कोई घटना नहीं’ हुयी।
न्यायालय ने केन्द्र से यह भी जानना चाहा कि जूनियर स्तर के अधिकारी ने हलफनामा दायर क्यों किया और उसने इसे ‘टालने वाला तथा बेशर्मी वाला’ बताया।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव स्तर के अधिकारी से नया हलफनामा मांगा है।
इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही सीजेआई बाबेडे ने कहा,
सीजेआई बोबडे ने कहा कि सालिसीटर मेहता ने अब कहा है कि वह सचिव स्तर के अधिकारी द्वारा नया हलफनामा दाखिल करेंगे और नये दस्तावेज का वह अवलोकन करेंगे।
केबल टेलीविजन नेटवर्कस (नियमन) कानून 1995 की धारा 20 का जिक्र करते हुये पीठ ने कहा कि यह कानून सिर्फ केबल टीवी के सिग्नलों के बारे में है और उसने जानना चाहा कि क्या सरकार को ऐसे सिग्नल प्रतिबंधित करने का अधिकार है।
‘‘इस अधिकार का इस्तेमाल सिर्फ केबल टीवी नेटवर्कस के संबंध में हो सकता है और दूरदर्शन जैसे टीवी सिगनल के संबंध में नहीं। क्या सरकार को इन सिग्नल को प्रतिबंधित करने का कोई अधिकार है? उनका हलफ़नामा कहता है कि उन्होने परामर्श जारी किये थे।’’
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत देव ने दलील दी कि इस कानून के दायरे में केबल टीवी संप्रेषण भी आते हैं। न्यायालय ने दवे से कहा कि वह अगली तारीख पर इस बिन्दु का साबित करें
तबलीगी जमात के आयोजन का सांप्रदायिकीकरण किये जाने के मुद्दे पर जमीयत उलेमा-ए-हिन्द की याचिका पर अब दो सप्ताह बाद सुनवाई होगी।
सुनवाई खत्म होते समय सीजेआई बोबडे ने टिप्पणी की,
जमीअत उलेमा-ए हिन्द ने 6 अप्रैल को अधिवक्ता एजाज मकबूल के माध्यम से शीर्ष अदालत यह याचिका दायर कर दावा किया था कि मीडिया ने इस आयोजन का सांप्रदायीकरण कर दिया है और मुस्लिम समुदाय की गलत तस्वीर पेश की है।
याचिका में निजामुद्दीन मर्कज मामले को लेकर कथित रूप से सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने वाले मीडिया घरानों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने का अनुरोध किया गया है।
और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें