टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी टाटा संस लिमिटेड और शापूरजी पालोनजी समूह के साइरस मिस्त्री के बीच चल रहे विवाद में उच्चतम न्यायालय में मंगलवार को अंतिम सुनवाई शुरू हुयी।
टाटा संस और मिस्त्री दोनों ने ही नेशनल कंपनी लॉ अपीली अधिकरण (एनसीएलएटी) के 18 दिसंबर, 2019 के आदेश को चुनौती दे रखी है। अधिकरण ने साइरस मिस्त्री को टाटा संस लिमिटेड के चेयरपर्सन पद पर बहाल करने का आदेश दिया था।
उच्चतम न्यायालय ने 10 जनवरी, 2020 को एनसीएलएटी के आदेश पर रोक लगा दी थी। एनसीएलएटी ने दिसंबर, 2019 के अपने आदेश में कहा था कि साइरस मिस्त्री को चेयरपर्सन पद से हटाने के लिये टाटा संस की 24 अक्टूबर, 2016 की बोर्ड की बैठक की कार्यवाही गैरकानूनी थी।
अधिकरण ने यह भी निर्देश दिया था कि रतन टाटा को पहले से ऐसा कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए जिसे टाटा संस के निदेशक मंडल के बहुमत के फैसले या आम सभा में बहुमत के निर्णय की जरूरत हो।
टाटा संस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने मंगलवार को बहस शुरू की। उन्होंने पूरे दिन अपनी दलीलें पेश कीं।
साल्वे की दलीलों की पांच मुख्य बातें निम्न हैं:
एनसीएलएटी का आदेश अल्पमत शेयरधारक को टाटा की कंपनियों का नियंत्रण देता है
साल्वे ने इस तथ्य का उल्लेख किया कि टाटा संस में पालोनजी समूह के सिर्फ 18 प्रतिशत शेयर हैं जबकि इसमें टाटा ट्रस्ट के 68 प्रतिशत शेयर हैं।
उनकी दलील थी कि ‘सामान्य कार्पोरेट लोकतंत्र’ में 18 फीसदी शेयर का धारक कंपनी के बोर्ड में अपना एक भी निदेशक नियुक्त नहीं कर सकेगा जबकि 68 प्रतिशत शेयर रखने वाला धारक अपनी पसंद के लोगों को बोर्ड में रखने में सक्षम होगा।
इस तथ्य का भी जिक्र किया गया कि मिस्त्री को अल्पमत के शेयर धारक के किसी भी अधिकार के तहत कार्यकारी चेयरमैन नियुक्त नहीं किया गया था।
उन्होंने कहा कि लेकिन मिस्त्री को फिर से बहाल करके एनसीएलएटी कंपनी के अल्पमत शेयरधारक को कंपनी की कमान देकर बहुमत की इच्छा के विरूद्ध गया है। उन्होंने कहा,
‘‘एनसीएलएटी ने अब क्या करा है कि कंपनी का नियंत्रण अल्पमत को सौंप दिया है। 18 प्रतिशत के अल्पमत शेयर धारक को सभी टाटा कंपनियों पर शासन करने का अधिकार दे दिया है।’’
कंपनी कानून की धारा 242 के तहत एनसीएलएटी का हस्तक्षेप स्थापित कानून के विरूद्ध है
कंपनी कानून, 2013 की धारा 241 कंपनी के किसी भी सदस्य को कंपनी द्वारा कथित दमनात्मक और कुप्रबंधन के बारे में अधिकरण के समक्ष आवेदन करने का अधिकार प्रदान करता है।
धारा 242 कहती है कि ऐसे मामलों में, अगर अधिकरण की राय है कि तथ्य इसे न्यायोचित बतायेंगे कि यह ‘उचित और न्यायसंगत’ होगा की कंपनी का समापन कर दिया जाना चाहिए लेकिन ऐसा आदेश कंपनी के सदस्यों के लिये हानिकारक होगा तो अधिकरण इस धारा के तहत प्रतिवादित अनेक उपायों को अपना सकता है। इसमे प्रबंध निदेशक या किसी निदेशक को हटाना और नये निदेशक नियुक्त करना शामिल है।
एनसीएलएटी ने कहा कि टाटा संस का कामकाज साइरस मिस्त्री सहित सदस्यों के लिये हानिकारक और उनका दमन करने वाला है और यह टाटा संस और इस समूह की कंपनियों के लिये भी हानिकारक है। चूंकि, इसका समापन कंपनी के सदस्यों के लिये हानिकारक होगा, इसलिए एनसीएलएटी ने साइरस मिस्त्री को बहाल करने सहित कई आदेश पारित करना उचित समझा।
साल्वे का तर्क था कि इस मामले में अधिकरण ने हस्तक्षेप के लिये ‘न्यायसंगत’ कारणों को आधार बनाया जिसका दायरा बहुत सीमित है।
उन्होंने कहा, ‘‘यहां इस तथ्य का परीक्षण है कि क्या कंपनी के संचालन में सत्यनिष्ठा का अभाव है और न्यायसंगत होने के सिद्धांत को लागू करने के मानक काफी उच्च हैं।’’
साल्वे ने दलील दी कि बोर्ड की बैठक में बहुमत से हटाये जाने या निदेशकों का निजी जीवन समापन के लिये ‘न्यायसंगत’ आधार का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।’’
सीजेआई एसए बोबडे ने सवाल किया,‘‘क्या आपका यह कहना है कि अधिकरण को यह देखना होगा कि क्या दमनात्मक रवैया और सत्यनिष्ठा के अभाव की स्थिति ऐसी है कि अधिकरण को या तो कंपनी का समापन करना होगा या स्थिति से निबटने के लिये ऐसे आदेश देने होंगे?’’
साल्वे ने जवाब दिया, ‘‘जी हाँ, मान्यवर।’’
गलत कारोबारी फैसला कुप्रबंधन नहीं है
कंपनी कानून की धारा 241 का जिक्र करते हुये साल्वे ने कहा कि गलत फैसले, जिनसे कंपनी को नुकसान हो सकता है, को धारा 241 के अंतर्गत ‘कुप्रबंधन’ के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा कि इसलिए एक लाख रूपए की कार की बिक्री में गिरावट या सरकार द्वारा मोबाइल स्पेक्ट्रम के वितरण में समस्याओं से जुड़े मुद्दे सत्यनिष्ठा का अभाव स्थापित करने के कारण नहीं हो सकते।
सीजेआई बोबडे ने सवाल किया, ‘‘क्या आप यह कह रहे हैं कि कंपनी द्वारा लिया गया कोई फैसला अगर कारगर नहीं हुआ तो यह दमनात्मक या कुप्रबंधन का आधार नहीं हो सकता?’’
साल्वे ने कहा, ‘‘यह सही है, ज्यादा से ज्यादा यह एक गलत फैसला हो सकता है लेकिन कुप्रबंधन नहीं।’’
टाटा संस के कुप्रबंधन का कोई आरोप नहीं है
इसी से जुड़े एक बिन्दु पर साल्वे ने कहा कि टाटा संस का कोई सदस्य अन्य टाटा कंपनियों के कामकाज के आधार पर कुप्रबंधन का आरोप नहीं लगा सकता।
साल्वे ने कहा, ‘‘धारा 241 के अनुसार ‘कंपनी’के खिलाफ शिकायत दायर करना, जो इस मामले में टाटा संस है। अत: टाटा मोटर्स, कोरस, टाटा स्टील जैसी कंपनियों के खिलाफ आरोपों की सूची के आधार पर धारा 241 के अंतर्गत शिकायत नहीं की जा सकती।’’
इसलिए उनका कहना था कि टाटा संस का कोई भी सदस्य दूसरी टाटा कंपनियों के बारे में शिकायत नहीं कर सकता।
साल्वे ने दलील दी, ‘‘टाटा संस पर कुप्रबंधन का कभी एक भी आरोप नहीं लगा है। कंपनी शानदार तरीके से चल रही है। रतन टाटा के 1991 से 2012तक के कार्यकाल के दौरान टाटा की बाजार पूंजी में 500 गुना का इजाफा हुआ। जब 500 गुना विकास होगा तो इसमे कुछ परियोजनायें सफल होंगी और कुछ असफल।’’
एनसीएलएटी को धारा 242(2)(के) के अंतर्गत निदेशक नियुक्त करने का ‘पूर्ण’ अधिकार नहीं
उन्होंने कहा कि धारा 242 उन विभिन्न उपायों का उल्लेख है जिनका अधिकरण कंपनी की स्थिति को देखते हुये राहत के लिये अपना सकता है। इनमें धारा 242(2)(एच) के अंतर्गत निदेशकों को हटाने और धारा 242(2)(के) अंतर्गत निदेशक नियुक्त करने का प्रावधान है।
एनसीएलएटी ने अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुये एन चंद्रशेखरन को कार्यकारी चेयरपर्सन के पद से हटाया था। चंद्रशेखरन वह व्यक्ति थे जिन्हें मिस्त्री को 2016 में हटाये जाने के बाद बोर्ड ने नियुक्त किया था। एनसीएलएटी ने इसे पलट कर मिस्त्री को पद पर फिर से बहाल कर दिया था।
साल्वे ने दलील दी कि एनसीएलएटी को धारा 242(2)(के) के अंतर्गत निदेशक नियुक्त करने का पूर्ण अधिकार नहीं है।
साल्वे ने कहा, ‘‘धारा 242 (2)(के) के अंतर्गत अधिकार विशेष उद्देश्य के लिये है।’’
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