कर्णण मामला: मद्रास HC मे तमिलनाडु बार काउन्सिल की दलील:क्या हमारी न्यायपालिका इतनी अशक्त है वह अपना बचाव करने मे असमर्थ है?

तमिलनाडु बार काउन्सिल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एस प्रभाकरण ने आज न्यायालय से पुरजोर अपील की कि सोशल मीडिया पर निरंतर अपमानजनक पोस्ट कर रहे पूर्व न्यायाधीश सीएस कर्णण के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए
कर्णण मामला: मद्रास HC मे तमिलनाडु बार काउन्सिल की दलील:क्या हमारी न्यायपालिका इतनी अशक्त है वह अपना बचाव करने मे असमर्थ है?

तमिलनाडु बार काउन्सिल ने उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश सीएस कर्णण द्वारा महिलाओं और न्यायपालिक के बारे में सोशल मीडिया पर निरंतर अपमानजनक पोस्ट डालने के कारण उनके खिलाफ कार्रवाई के लिये मद्रास उच्च न्यायालय में आपराधिक याचिका दायर की है।

न्यायमूर्ति टी रवीन्द्रन ने इस मामले को खंडपीठ को सौंपने से पहले आज बार काउन्सिल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एस प्रभाकरण की दलीलों को सुना। खंडपीठ पहले से इस विषय पर काउन्सिल की याचिका पर विचार कर रही है

वरिष्ठ अधिवक्त प्रभाकरण ने आज दलील दी,

‘‘यह सब क्या है? क्या हमारी न्यायपालिका इतनी अशक्त है कि वह अपना और अपने ही सहयोगियों की बचाव करने में असमर्थ है? यह हमारी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।’’

वरिष्ठ अधिवक्ता ने जोर देकर कहा कि कर्णण की आपत्तिजनक पोस्ट हटाने का निर्देश दिये जाने के उच्च न्यायालय के पहले के आदेश के बावजूद इसी तरह की पोस्ट अपलोड की जा रही हैं और विवादास्पद न्यायाधीश के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही।

प्रभाकरण ने कहा, ‘‘अभी भी उन्होंने छह पोस्ट डाली हैं। मैं समझ सकता हूं कि उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सकता लेकिन कम से कम इन्हें अपलोड करने वाले व्यक्ति के खिलाफ तो कार्रवाई की ही जा सकती है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘जरा न्यायाधीशों की स्थिति तो देखिये, उनका रोजाना इस तरह की पोस्ट से अपमान किया जा रहा है, एक दिन पहले ही उन्होंने फेसबुक पर एक पोस्ट डाली है।’’

इस पर न्यायाधीश ने कहा कि खंडपीठ इस याचिका पर अधिक बेहतर तरीके से सुनवाई कर सकती है क्योंकि वह इससे संबंधित मामले पर पहले से ही विचार कर रही है।

अतिरिक्त लोक अभियोजक एम प्रभावती ने कहा कि देविका नाम की अधिवक्ता की शिकायत पर पहले ही एक प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी है। शुरू में यह शिकायत भारतीय दंड संहिता की धारा 153 और 509 के तहत दर्ज की गयी थी, बाद में सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 67-ए भी इसमें जोड़ी गयी है। उन्होंने इस संबंध में दूसरी पीठ के समक्ष लिखित वक्तव्य दाखिल करने के लिये समय देने का अनुरोध किया।

न्यायमूर्ति रवीन्द्रन ने इस मामले को खंडपीठ को सोंपने की इच्छा व्यक्त करते हुये कहा कि वह इस बारे में आदेश पारित करेंगे।

पेश मामले में बहस के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता प्रभाकरण ने उच्चतम न्यायालय के 2017 के आदेश का भी जिक्र किया जिसमे न्यायमूर्ति कर्णण पर न्यायालय द्वारा निन्दा की गयी गतिविधियों भविष्य में संलिप्त होने पर रोक लगा दी गयी थी।

उन्होंने कहा कि इस आदेश के बावजूद न्यायमूर्ति कर्णण ने अपनी गतिविधियां जारी रखी हैं। प्रभारकण ने आगे कहा, ‘‘ दुर्भाग्यवश सभी अधिवक्ता इसे देख रहे हैं, इस पर चुप्पी लगा रखी है और मैं नहीं जानता की सरकार ने इस मामले में इतने लंबे समय तक क्यों चुप्पी लगा रखी है।’’

मद्रास उच्च न्यायालय ने 10 नवंबर को अपने आदेश में उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति कर्णण की आपत्तिजनक टिप्पणियों को सोशल मीडिया पर अवरूद्ध करने का निर्देश दिया था।

न्यायमूर्ति एम सत्यनारायणन और न्यायमूर्ति आर हेमलता की पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की थी,

‘‘यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है (कि न्यायमूर्ति सीएस कर्णण, जो महत्वपूर्ण सांविधानिक पद पर रह चुके हैं) इतने निचले स्तर तक चले गये हैं और बार बार उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और उनके परिवारों के बारे में अपमानजनक, अश्लील और असंसदीय भाषा का प्रयोग कर रहे हैं।

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"Is our judiciary so weak that it is unable to defend itself?" TN Bar Council argues in Madras High Court for criminal action against CS Karnan

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