अंतर-विवाह और धार्मिक रूपांतरण को विनियमित करने वाले अध्यादेश को चुनौती देने वाली शीर्ष अदालत में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित मामलों को स्थानांतरित करने की मांग करने वाली उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दायर की गई एक स्थानांतरण याचिका पर विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मना कर दिया।
भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय इस मुद्दे में जाने से पहले उच्च न्यायालय के फैसले का लाभ उठाना चाहेगा।
यूपी सरकार ने तब याचिका वापस लेने का फैसला किया।
हाल ही में लागू उप्र विधि विरूद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020 के गैरकानूनी रूपांतरण को निजता के अधिकार, व्यक्तिगत स्वायत्तता और धर्म की स्वतंत्रता के कथित उल्लंघन के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई है।
विवादास्पद अध्यादेश को उत्तर प्रदेश राज्य मंत्रिमंडल ने नवंबर में मंजूरी दे दी थी और 28 नवंबर को राज्य के राज्यपाल आनंदीबेन पटेल द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे।
अध्यादेश एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित होने से पहले एक विस्तृत प्रक्रिया का पालन करता है। उसी का उल्लंघन व्यक्ति पर आपराधिक देयता को बढ़ाता है जो रूपांतरण से गुजरता है और जो व्यक्ति को परिवर्तित करता है।
अध्यादेश में यह भी कहा गया है कि कोई व्यक्ति दुव्यपर्देशन, बल, असमयक असर, प्रपीड़न, प्रलोभन के प्रयोग या पद्द्ति द्वारा या अन्य व्यक्ति को प्रत्यक्ष या अन्यथा रूप से एक धर्म से दूसरे धर्म मे संपरिवर्तन नहीं करेगा/करेगी या संपरिवर्तन करने का प्रयास नहीं करेगा/करेगी और न ही किसी ऐसे व्यक्ति को ऐसे धर्म संपरिवर्तन के लिए उत्प्रेरित करेगा/करेगी, विश्वास दिलाएगा/दिलाएगी या षड्यंत्र करेगा/करेगी परंतु यह की यदि कोई व्यक्ति अपने ठीक पूर्व धर्म मे पुनः संपरिवर्तन करता है/करती है तो उसे इस अध्याधेश के अधीन धर्म संपरिवर्तन नहीं समझा जाएगा
उच्च न्यायालय ने 18 दिसंबर, 2020 को याचिका में नोटिस जारी किया था। जब मामला उच्च न्यायालय के सामने आया, तो राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय को शीर्ष अदालत के समक्ष दायर स्थानांतरण याचिका के बारे में सूचित किया था। उच्च न्यायालय ने उसी के मद्देनजर मामले को स्थगित कर दिया था।
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