सुदर्शन टीवी ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि उसने अपने टीवी कार्यक्रम में मुसलमानों की प्रशासनिक सेवा में घुसपैठ का जिक्र करते हुये ‘यूपीएससी जिहाद’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है। संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा के लिये मुसलमानो की कोचिंग करने वाली इंस्टीट्यूट ‘जकात फाउण्डेशन ऑफ इंडिया (जेडएफआई) को आतंक से जुड़े विभिन्न संगठनों से धन मिला है।
उच्चतम न्यायालय सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम ‘बिन्दास बोल’ के प्रसारण पर रोक के लिये अधिवक्ता फिरोज इकबाल खान की याचिका पर सुनवाई कर रही है। याचिका में कहा गया है कि इस कार्यक्रम के प्रसारण देश का सांप्रदायिक ताना बाना प्रभावित होगा और यह मुसलमनों के प्रति दुर्भावनापूर्ण है।
न्यायालय इस मामले में हस्तक्षेप के लिये सात पूर्व नौकरशाहों के आवेदन पर भी सुनवाई कर रही है। ये नौकरशाह ‘नफरत फैलाने वाले भाषण’ पर सुविचारित फैसला चाहते हैं।
सुदर्शन टीवी का कहना है कि उसकी ‘‘किसी समुदाय या व्यक्ति के खिलाफ कोई दुर्भावना नहीं है और वह केन्द्र या राज्य सरकार की नौकरियों में किसी भी प्रतिभाशाली प्रत्याशी के चयन का विरोध नहीं करता।’’
चैनल ने दावा किया है कि जकात फाउण्डेशन को चंदा देने वाले कुछ दानदाताओं का संबंध उन संगठनों से है जो उग्रवादी समूहों की धन देते हैं।
सुदर्शन टीवी के अनुसार जकात फाउण्डेशन इस धन का इस्तेमाल आईएएस, आईपीएस बनने या यूपीएससी की परीक्षा में सफलता की इच्छा रखने वाले अभ्यर्थियों को मदद के लिेये किया जाता है।
चैनल का दावा है कि यह कार्यक्रम जनहित और राष्ट्रीय सुरक्षा के गंभीर मामले से संबंधित है।
चैनल का कहना है कि जकात फाउण्डेशन ऑफ इंडिया के सैयद जफर महमूद को इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया गया था। यहां तक कि टीवी की एक यूनिट जकात फाउण्डेशन के कार्यालय और महमूद के घर भेजी गयी थी लेकिन इसके बावजूद उनकी ओर से इसमें कोई भागीदारी नहीं हुयी।
सुदर्शन टीवी ने यूपीएससी कोचिंग सेन्टर के आतंक से जुड़े संगठनों से संपर्क दिखाने के प्रयास में कहा है कि जकात फाउण्डेशन ऑफ इंडिया को ब्रिटेन के मदीना ट्रस्ट से चंदा मिला है।
इंग्लैंड और वेल्स के चैरिटी कमीशन के रिकार्ड के अनुसार मदीना ट्रस्ट के ट्रस्टी डा जाहिद अली परवेज इस्लामिक फाउण्डेशन के भी ट्रस्टी हैं। ब्रिटेन की ‘द टाइम्स’ की रिपोर्ट के अनुसार इस्लामिक फाउण्डेशन के दो ट्रस्टी संयुक्त राष्ट्र से प्रतिबंधित आतंकी संगठनों , तालीबान और अल कायदा, से जुड़े प्रतिबंधित व्यक्तियों की सूची में हैं।
चैनल का कहना है कि ‘‘रिपोर्ट के अनुसार मदीना ट्रस्ट भी सितंबर, 2019 में लंदन में भारतीय उच्चायोग पर हुये हमले में शामिल था।’’
हलफनामे में आगे कहा गया है कि जकात फाउण्डेशन को मुस्लिम एड (यूके) से भी चंदा मिला है।
हलफनामे के अनुसार, ‘‘(मिडिल ईस्ट फोरम के इस्लामिस्ट वाच के निदेशक सैम वाजट्राप के अनुसार) मुस्लिम एड (यूके) बार बार अनेक आतंकी नेटवर्क में संलिप्त पाया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि 2010 में ब्रिटिश मीडिया के खोजी कार्य और ब्रिटेन के चैरिटी नियामक की जांच में मुस्लिम एड, यूके आतंकी गुट हमास और फलस्तीनी इस्लामिक जिहाद के अनेक मुखौटा संगठनों को धन देने (और यह स्वीकार किया है) का पता चला था।’’
चैनल ने यह भी आरोप लगाया है कि जकात फाउण्डेश का संबंध जाकिर नाइक, जिसके इस्लामिक रिसर्च फाउण्डेशन पर गैरकानूनी गतिविधियां(रोकथाम) कानून (यूएपीए) के तहत प्रतिबंध लगा है और जाकिर नाइक के इस्लामिक रिसर्च फाउण्डेशन (इंटरनेशनल) यूके के पूर्व निदेशक इस समय जकात फाउण्डेशन ऑफ इंडिया (इंटरनेशनल) यूकेके मौजूदा निदेशक हैं।
चैनल का कहना है कि उसने अब तक प्रसारित चार कड़ियों में उसने ऐसा कोई भी बयान या कोई संदेश नहीं दिया है कि किसी समुदाय विशेषा के सदस्यों को यूपीएससी में शामिल नहीं होना चाहिए।
हलफनामें में कहा गया है, ‘‘यूपीएससी एक प्रतियोगी परीक्षा है ओर प्रत्येक समुदाय के सदस्य इसकी प्रवेश परीक्षा में शामिल हो सकते हैं और इसे पास कर सकते हैं। इस कार्यक्रम का मुद्दा यह है कि इसमें एक साजिश लगती है जिसकी राष्ट्रीय जांच एजेन्सी या सीबीआई से जांच की आवश्यकता है। ऐसा लगता है कि आतंक से जुड़े संगठन जकात फाउण्डेशन ऑफ इंडिया को धन मुहैया करा रहे हैं और वह इसके एवज में यूपीएससी के अभ्यर्थियों को सहयोग कर रहे हैं।’’
चैनल ने यह भी दलील दी है, ‘‘कि एक अल्पसंख्यक समुदाय अन्य पिछड़े वर्ग के साथ ही अल्पसंख्यक योजना का लाभ ले रहा है और यही राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा है जिस वजह से हम इस पर बहस चाहते हैं।’’
हलफनामें में कहा गया है कि आतंकवाद एक वैश्विक समस्या है और अनेक अंतरराष्ट्रीय संगठन उग्रवादियों को आर्थिक मदद मुहैया कराते हैं।
सुदर्शन टीवी ने दावा किया है कि उसका प्रयास राष्ट्र विरोधी गतिविधियों और अंतरराष्ट्रीय कट्टरपंथियों के वित्तीय सहयोग से एक रणनीति के तहत अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा में कुछ व्यक्तियों को भर्ती करने के तरीके और भारत में उनकी मंशा को बेनकाब करना क्योंकि यह भारत की सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा पैदा कर सकती है।
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