Vaishno Devi Shrine Board
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वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड, सरकार प्रबंधन को चुनौती धन का इस्तेमाल इफ्तार पार्टियो मे करने का आरोप जे&के एचसी द्वारा जारी नोटिस

बारीदार संघर्ष समिति ने जम्मू कश्मीर श्री माता वैष्णो श्राइन बोर्ड कानून, 1988 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी। इसी कानून के तहत श्राइन का नियंत्रण सरकार के हाथ में है

जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय ने एक हिन्दू धार्मिक संगठन बारीदार की याचिका पर जम्मू कश्मीर प्रशासन और श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड को बुधवार को नोटिस जारी किये।

न्यायमूर्ति जावेद इकबाल वानी ने बारीदार संघर्ष समिति की याचिका पर नोटिस जारी किये। इस संगठन का दावा है कि श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के प्रशासन, प्रबंधन और संचालन का उसे अधिकार है।


यह याचिका बारीदार संघर्ष समिति और 58 अन्य याचिकाकर्ताओ ने अधिवक्ता अंकुर शर्मा के माध्यम से से दायर की है। याचिका में कहा गया है कि 1986 में इस श्राइन का नियंत्रण सरकार द्वारा अपने हाथ में लिये जाने से पहले श्री माता वैष्णो देवी श्राइन का नियंत्रण और प्रबंधन बारीदार के पास था।


याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में दलील दी है कि बारीदार ने 10वीं सदी में पंडित श्रीधर के आध्यात्मिक निर्देशन में इस श्राइन की खोज और स्थापना की थी। इन तथ्यों के सत्यापन के लिये पर्याप्त प्राचीन साक्ष्य उपलब्ध हैं।

इन याचिकाओं में जम्मू कश्मीर श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड कानून, 1988 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गयी है। इसके अंतर्गत ही इस श्राइन का नियंत्रण सरकार के पास है।

याचिकाकर्ताओं ने माता वैष्णो देवी श्राइन का प्रबंधन, प्रशासन और संचालन और इसकी परिसंपत्तियां बारीदार को सौंपने का अनुरोध किया है।

याचिकाकर्ताओं ने माता वैष्णो देवी श्राइन के कोष का बाहर से ऑडिट कराने का अनुरोध भी याचिका में किया है।

याचिका में कहा गया है कि सरकार ने कथित रूप से इसके कुप्रबंध का आरोप लगाते हुये मंदिर का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया था। याचिका में कहा गया है कि सरकारी नियंत्रण में संचालित श्राइन बोर्ड में भ्रष्टाचार पनप रहा है जो हिन्दुओं के हितों के खिलाफ है।



याचिका में कहा गया है कि दूसरे धर्मो के धार्मिक संस्थानों का प्रबंधन, प्रशासन और संचालन अपने हाथ में लेने के अधिकार के बावजूद शासन ने संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करते हुये सिर्फ हिन्दू मंदिरों के खिलाफ ही अपने अधिकार का इस्तेमाल किया है।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि श्राइन बोर्ड के धन का इस्तेमाल दूसरे धार्मिक समूह के सदस्यों के लिये इफ्तार दावत आयोजित करने के लिये गया है। याचिका में कहा गया है कि श्राइन बोर्ड ने 1988 के कानून की धारा 4 के दायरे से बाहर जाकर इसका धन खर्च किया है जो हिन्दू भावनाओं की दिनदहाड़े लूट है।

याचिका के अनुसार बोर्ड द्वारा अपने प्रशासनिक कार्यो के लिये विभिन्न पदों पर गैर हिन्दुओं की नियुक्तियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी किये गये हैं।

याचिका में हिन्दुओं के प्रतिरोध के बावजूद नये पथ का निर्माण किया जा रहा है। याचिका के अनुसार ऐसा करके श्राइन बोर्ड ने इस ऐतिहासिक धर्मस्थल तक पहुंचने के लिये चरण पादुका, अर्ध कुंवारी आदि पारंपरिक रास्ते को नष्ट करने की दिशा में कदम उठाये हैं।


याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता अंकुर शर्मा ने न्यायालय में बहस के दौरान कहा कि यह याचिका संविधान के अनुच्छेद 25, (2) (क), 26, 29, 14 और अनुच्छेद 31 में प्रदत्त मौलिक अधिकार लागू कराने के लिये दायर की गयी हैं।


अंकुर शर्मा ने दलील दी, ‘‘ दूसरे धर्मो के धार्मिक संस्थानों का प्रबंधन, प्रशासन और संचालन अपने हाथ में लेने के लिये समान रूप से अधिकार होने के बावजूद शासन ने संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करते हुये सिर्फ हिन्दू मंदिरों के खिलाफ ही अपने अधिकार का इस्तेमाल किया है।’’

उन्होंने तर्क दिया, ‘‘इन दशकों में जम्मू कश्मीर में हिन्दू धार्मिक संस्थान सरकार के नियंत्रण में रही हैं और हिन्दू समुदाय द्वारा अपने ही धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन की क्षमता और योग्यता को नियोजित तरीके से कम किया गया है।’’



इस मामले में अब चार सप्ताह बाद सुनवाई होगी। इस दौरान जम्मू कश्मीर प्रशासन को इस याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया है।

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