दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में निर्देश दिया है कि आपराधिक मामले में सजा होने के बाद दोषी अपनी संपत्ति, आमदनी और खर्च की जानकारी हलफनामे पर देंगे ताकि निचली अदालतें पीड़ितों को देय मुआवजे की राशि का निर्धारण कर सकें।
उच्च न्यायालय ने कहा कि इस हलफनामे के बाद दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण प्रत्येक आपराधिक मामले में फौरी जांच के बाद पीड़ित की प्रभावित रिपोर्ट दाखिल करेगा।
न्यायालय ने कहा कि इसके बाद संबंधित निचली अदालत पीड़ित की प्रभावित रिपोर्ट, दोषी की भुगतान करने की क्षमता, मुकदमे पर आया खर्च और पीड़ित को मुआवजे तथा शासन का मुकदमे पर आये खर्च पर विचार करेगी।
न्यायालय ने कहा कि धारा 357(3) में शामिल शब्द ‘दे सकता है’ का तात्पर्य पीड़ितों को मुआवजे का भुगतान करने के संदर्भ में ‘होगा’ और इसलिए धारा 357 अनिवार्य है।
न्यायालय ने कहा, ‘‘दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 प्रत्येक आपराधिक मामले में मुआवजे के सवाल पर अदालत को अपने विवेक का इस्तेमाल करने का कर्तव्य सौंपती है।’’
न्यायमूर्ति जेआर मिढा, न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर और न्यायमूर्ति बृजेश सेठी की पूर्ण पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 302/34 के तहत दोष सिद्धि के संबंध में दायर अपीलों पर यह आदेश दिया।
न्यायालय ने कहा कि अदालत के निर्देशानुसार निर्धारित धनराशि दोषी दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा करायेगा जो अपनी योजना के अनुसार पीड़तों में वितरित करेगा।
न्यायालय ने कहा कि अगर दोष्ज्ञी के मुआवजा देने की क्षमता नहीं हो या दोषी द्वारा देय मुआवजे की राशि अपर्याप्त हो तो दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357ए के अंतर्गत दिल्ली पीड़ित मुआवजा योजना-2018 के तहत ‘पीड़ित मुआवजा कोष’ से मुआवजा देगा।
न्यायालय ने यह भी कहा कि सभी लंबित अपील/पुनरीक्षण याचिकायें, जिनमे धारा 357 के तहत मुआवजा देने के प्रावधान का अनुपालन नहीं किया गया है, लोक अभियोजक उसके द्वारा प्रतिपादित अनुपालन प्रक्रिया के अनुसार आवेदन दाखिल करेंगे।
न्यायालय ने अपने 133 पेज के फैसले में अपराध का पीड़ितों पर पड़ने पर प्रभाव पर जोर दिया और कहा,
‘‘दुर्भाग्य से अपराध न्याय व्यवस्था में पीड़ितों को भुला दिया गया है। अपराध न्याय व्यवस्था सभी के साथ न्याय के लिये है-आरोपी, समाज ओर पीड़ित। पीड़ित को पर्याप्त मुआवजे के बगैर न्याय अधूरा है। न्याय तभी पूरा होगा जब पीड़ित को भी मुआवजा मिले।’’
न्यायालय ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 का मकसद ही पीड़ित को यह आश्वासन दिलाना है कि अपराध न्याय व्यवस्था में उसे भुलाया नहीं जायेगा।
न्यायालय ने यह भी कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 के तहत प्रदत्त अधिकार का इस्तेमाल उदारता से करना होगा ताकि बेहतर तरीके से न्याय हो सके।
उच्च न्यायालय ने इस आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये निर्देश दिया है कि निचली अदालतें हर महीने अपना विवरण दिल्ली उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार को भेजेंगी।
न्यायालय ने दोषी द्वारा दिये जाने वाले हलफनामे और पीड़ित प्रभावित रिपोर्ट का प्रारूप अपने फैसले के साथ संलग्न किया है।
न्यायालय ने कहा है कि इस नियमावली में शामिल किा जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि न्याय प्रशासन को न्यायिक अधिकारियों को नियंत्रित करने और नियुक्तियों, पदोन्नति, तैनाती और तबादले के लिये उच्च न्यायालय को न्यायिक और प्रशासनिक दोनों अधिकार हैं।
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