कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामले में अभियोजन के गवाहों के बहुत ज्यादा असुरक्षित होने की संभावना व्यक्त करते हुये विशेष अदालतों में चल रहे मुकदमों के गवाहों के लिये गवाह संरक्षण योजना-2018 लागू करने की आवश्यकता बताई है।
मुख्य न्यायाधीश अभय श्रीनिवास ओका और न्यायमूर्ति विश्वजीत शेट्टी की पीठ ने इस संबंध में दो सप्ताह के भीतर राज्य गवाह संरक्षण कोष स्थापित करने का निर्देश दिया ताकि गवाह संरक्षण योजना प्रभावी तरीके से लागू की जा सके।
‘‘इसे लेकर किसी तरह का विवाद नहीं हो सकता कि विशेष अदालतों में लंबित किसी भी ऐसे मामले में, जहां प्रमुख राजनीतिक व्यक्ति आरोपी हैं, इस बात की पूरी संभावना है कि अभियोजन के गवाहों में कुछ गवाह असुरक्षित होंगे। इसलिए, हमारा मानना है कि ऐसी स्थिति में विशेष अदालतों में चल रहे मुकदमों में अभियोजन के गवाहों के संबंध गवाह संरक्षण योजना-2018 पर अमल करना बहुत जरूरी है।’’
उच्च न्यायालय सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों के तेजी से निबटारे के लिये स्वत: शुरू की गयी कार्यवाही पर विचार कर रहा था।
सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मुकदमों के तेजी से निबटारे के लिये कार्ययोजना तैयार करने के लिये उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से शीर्ष अदालत द्वारा किये गये अनुरोध के मद्देनजर उच्च न्यायालय ने हाल ही में स्वत: याचिका पंजीकृत करने का निर्देश दिया था।
गवाह संरक्षण कोष स्थापित कराने के निर्देश के साथ ही पीठ ने सरकार से 2018 की इस योजना के प्रति सभी जांच अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करने और इस पर अमल के लिये सभी संभव कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।
पीठ ने कहा कि जांच अधिकारियों की यह जिम्मेदारी है कि वे आकलन करें कि क्या अभियोजन का कोई गवाह धमकियों की वजह से असुरक्षित हो गया है या नहीं। प्रत्येक जांच अधिकारी को प्रत्येक मामले पर गौर करना चाहिए और जहां भी जरूरी हो उसे संबंधित गवाह के लिये गवाह संरक्षण योजना के तहत आवेदन दाखिल करना चाहिए।
न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि सांसदों और विधायको के खिलाफ मुकदमों में विशेष अदालत की अध्यक्षता कर रहे न्यायाधीश को भी यह आकलन करना चाहिए कि क्या किसी गवाह को संरक्षण की जरूरत है या नही, भले ही इसके लिये आवेदन नहीं किया गया हो।
सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों में लोक अभियोजक की नियुक्ति के मामले में न्यायालय ने टिप्पणी की कि इस संबंध में सरकार के मेमो में कुछ नहीं है।
इसलिए न्यायालय ने कहा कि यह शासन का कर्तव्य है कि वह सांसदों और विधायकों के खिलाफ मुकदमों के लिये बहुत ही सक्षम लोक अभियोजकों की नियुक्ति सुनिश्चित करे।
इस मामले की सुनवाई पूरी होने पर न्यायालय ने राज्य सरकार को यह निर्देश भी दिया कि सांसदों और विधायको के खिलाफ लंबित मुकदमों की सुनवाई के लिये प्रस्तावित दूसरी विशेष अदालत गठित करने यथाशीघ्र मंजूरी सुनिश्चित की जाये।
इस मामले में अब 18 दिसंबर को आगे सुनवाई होगी
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