सुप्रीम कोर्ट ने हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट में अडानी समूह की कंपनियों के खिलाफ धोखाधड़ी के आरोपों की किसी वैकल्पिक एजेंसी से जांच कराने की मांग करने वाली याचिकाओं पर भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करने या निर्देश जारी करने से बुधवार को इनकार कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ , न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि प्रत्यायोजित कानून बनाने में सेबी के नियामक क्षेत्र में प्रवेश करने की उच्चतम न्यायालय की शक्ति का दायरा सीमित है और न्यायिक समीक्षा का दायरा केवल यह देखने के लिए है कि क्या किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया गया है।
न्यायालय ने कहा, "इस मामले में हमारे पास सेबी को उसके नियमों को रद्द करने का निर्देश देने के लिए कोई वैध आधार नहीं है और मौजूदा नियमों में संशोधन करके इसे कड़ा किया गया है।"
न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामले में, सेबी द्वारा कोई नियामक विफलता नहीं हुई है और बाजार नियामक से प्रेस रिपोर्टों के आधार पर अपने कार्यों को जारी रखने की उम्मीद नहीं की जा सकती है, हालांकि ऐसी रिपोर्ट सेबी के लिए इनपुट के रूप में कार्य कर सकती है।
अदालत ने स्पष्ट किया, "प्रेस द्वारा जांच रिपोर्ट सेबी के लिए इनपुट के रूप में कार्य कर सकती है, लेकिन इसे विश्वसनीय सबूत या सेबी द्वारा नियामक विफलता के प्रमाण के रूप में नहीं लिया जा सकता है और यह एक वैधानिक निकाय द्वारा की जा रही जांच पर संदेह नहीं कर सकता है।"
इसलिए उसने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) या किसी अन्य एजेंसी से जांच कराने की मांग ठुकरा दी।
पीठ ने कहा, "इस अदालत के पास अनुच्छेद 32 और 142 के तहत जांच सीबीआई आदि को स्थानांतरित करने की शक्ति है, लेकिन ऐसी शक्तियों का उपयोग केवल संयम से किया जा सकता है और यह अदालत आमतौर पर इस भूमिका को प्रतिस्थापित नहीं करेगी और याचिकाकर्ताओं को यह दिखाने के लिए मजबूत सबूत पेश करना चाहिए कि जांच एजेंसी (सेबी) ने पक्षपातपूर्ण तरीके से काम किया."
न्यायालय ने सेबी को आदेश दिया है कि वह तीन महीने के भीतर इस मामले की जांच पूरी करे।
शीर्ष अदालत ने नवंबर 2023 में इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
यह मामला इन आरोपों से जुड़ा है कि अडानी ने अपने शेयर की कीमतों को बढ़ा-चढ़ाकर बताया था। इन आरोपों (शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च की एक रिपोर्ट का हिस्सा) प्रकाशित होने के बाद, इससे अडानी की विभिन्न कंपनियों के शेयर मूल्य में तेज गिरावट आई, जो कथित तौर पर 100 अरब डॉलर तक पहुंच गई।
शीर्ष अदालत के समक्ष दायर याचिकाओं में एक याचिका भी शामिल है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) अधिनियम में बदलाव ने अडानी समूह के नियामक उल्लंघनों और बाजार में हेरफेर के लिए एक 'ढाल और बहाना' प्रदान किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले सेबी से इस मामले की स्वतंत्र रूप से जांच करने के लिए कहा था, इसके अलावा सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एएम सप्रे की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति का गठन भी किया था।
विशेषज्ञ समिति ने मई 2023 में जारी अपनी रिपोर्ट में इस मामले में सेबी की ओर से प्रथम दृष्टया कोई चूक नहीं पाई थी। पीठ ने बाद में टिप्पणी की थी कि नियामक निकाय से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि मीडिया संस्थानों ने जो रिपोर्ट की है, उसके अनुसार चले।
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