
इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है, जिसमें न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को शपथ दिलाने पर रोक लगाने की मांग की गई है। वर्मा को अवैध नकदी रखने के आरोपों को लेकर उनके खिलाफ आंतरिक जांच के बीच हाल ही में दिल्ली से इलाहाबाद स्थानांतरित किया गया था।
अधिवक्ता विकास चतुर्वेदी द्वारा अधिवक्ता अशोक पांडे के माध्यम से दायर याचिका में दावा किया गया है कि न्यायमूर्ति वर्मा का स्थानांतरण और प्रस्तावित शपथ ग्रहण संविधान का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता के अनुसार, यह स्पष्ट नहीं है कि वह क्या शपथ लेंगे, क्योंकि भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना ने पहले ही उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को न्यायमूर्ति वर्मा को कोई न्यायिक कार्य न सौंपने का निर्देश दिया था।
याचिका में आगे कहा गया है कि एक न्यायाधीश अपने पद के कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करने की शपथ लेता है। इसलिए, शपथ ग्रहण के बाद न्यायमूर्ति वर्मा से न्यायिक कार्य वापस लेने का निर्णय इसकी संवैधानिक पवित्रता को कमजोर करता है, जिससे यह प्रक्रिया महज औपचारिकता बनकर रह जाती है।
याचिकाकर्ता ने अपनी जनहित याचिका में तर्क दिया है कि राष्ट्रपति के आदेश से पद से हटाए जाने तक किसी न्यायाधीश को काम से वंचित नहीं किया जा सकता है।
याचिका में कहा गया है कि यदि उच्च न्यायालय यह पुष्टि करता है कि न्यायमूर्ति वर्मा को अन्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की तरह न्यायिक कार्य सौंपा जाएगा, तो याचिकाकर्ता को शपथ समारोह पर कोई आपत्ति नहीं है।
इस संबंध में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि रोस्टर के मास्टर के रूप में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायाधीशों को कार्य सौंपने के लिए जिम्मेदार हैं और भारत के मुख्य न्यायाधीश की इस प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं है।
याचिकाकर्ता ने न्यायमूर्ति वर्मा के दिल्ली से इलाहाबाद स्थानांतरण को रद्द करने की भी मांग की है।
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PIL in Allahabad High Court to halt swearing-in of Justice Yashwant Varma