राष्ट्रपति ने मध्यस्था और सुलह अध्यादेश, 2020 लागू किया: अब छल या भ्रष्टाचार से प्रेरित पंचाट पर बिना शर्त रोक रहेगी

इस अध्यादेश के जरिये मध्यस्थों की योग्यता और अनुभव संबंधी मध्यस्था कानून की आठवीं अनुसूची खत्म कर दी गयी
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राष्ट्रपति ने आज मध्यस्था और सुलह (संशोधन) अध्यादेश, 2020 लागू कर दिया। इसके माध्यम से मध्यस्था और सुलह कानून की धारा 36 में संशोधन किये गये हैं।

धारा 36 मध्यस्था के अवार्ड पर अमल कराने से संबंधित है

महत्वपूर्ण बात यह है कि अध्यादेश में यह प्रावधान किया गया है कि अगर यह पता चलता है कि यह पंचाट पहली नजर में छल या भ्रष्टाचार से प्रेरित है तो ऐसे पंचाट पर मध्यस्था कानून की धारा 34 के तहत इसके खिलाफ दायर अपील का निस्तारण होने तक बिना शर्त रोक लगी रहेगी।

यह अध्यादेश यह सुनिश्चित करने के लिये लाया गया है कि सभी हितधारक पक्षकारों को मध्यस्था पंचाट के प्रवर्तन पर बिना शर्त रोक लगाने का अनुरोध करने का अवसर मिले जहां यह मध्यस्था करार या मध्यस्था अवार्ड छल या भ्रष्टाचार से प्रेरित हो।

मध्यस्था और सुलह कानून, 2015 की धारा 36 में प्रावधान है कि अगर कानून की धारा 34 के तहत मध्स्था पंचाट को चुनौती देने के लिये आवेदन किया गया है तो ऐसा आवेदन दायर करने मात्र से ही यह पंचाट अवार्ड अप्रवर्तनीय नहीं होगा जब तक न्यायालय ने इस पर रोक लगाते हुये लिखित में इसके कारण नहीं बताये।

2015 के कानून में किये गये संशोधन के बाद पूरा प्रावधान इस प्रकार है,

‘’36 (1) जहां धारा 34 के तहत मध्यस्था पंचाट निरस्त करने के लिये आवेदन का समय बीत चुका हो तो ऐसा अवार्ड अदालत की डिक्री की तरह ही दीवानी प्रक्रिया संहिता 1908 के प्रावधानों के अनुरूप लागू किया जायेगा लेकिन यह उप धारा (2) के प्रावधानों के दायरे में होगा।

(2) जहां धारा 34 के अंतर्गत इस मध्यस्था पंचाट को निरस्त करने के लिये न्यायालय में आवेदन दायर किया गया हो, ऐसा आवेदन दायर करना मात्र ही इस पंचाट को अप्रवर्तनीय नहीं बनायेगा जब तक उप धारा (3) के प्रावधानों के अनुरूप इस पंचाट के अमल पर रोक के लिये एक अलग आवेदन पर न्यायालय इस बारे में आदेश नहीं देता है।

(3) पंचाट के अमल पर रोक के लिये उप धारा (2) के अंतर्गत आवेदन दाखिल किये जाने पर न्यायालय उचित शर्तो के साथ लिखित में अपने कारण दर्ज करके ऐसे पंचाट के अमल पर रोक लगा सकता है।

लेकिन, धन के भुगतान के लिये मध्यस्था पंचाट पर रोक के आवेदन पर विचार करते समय न्यायालय को धन संबंधी डिक्री पर रोक लगाने संबंधी दीवानी प्रक्रिया संहिता 1908 के प्रावधानों का ध्यान रखेगा।

आज लागू किये गये इस अध्यादेश के माध्यम से धारा 36 में एक प्रावधान जोड़ा गया है जिसके अनुसार अगर न्यायालय इस बात से संतुष्ट है कि पहली नजर में यह मामला बनता है कि मध्यस्था करारख् जो इस पंचाट की बुनियाद है, छल या भ्रष्टाचार से प्रेरित या प्रभावित है तो वह इस पंचाट पर धारा 34 के तहत पंचाट को दी गयी चुनौती का निबटारा होने तक बिना शर्त रोक लगा देगा।

यह माना जायेगा कि यह प्रावधान संशोधित कानून लागू होने के लिये मानी गयी तारीख 23 अक्टूर, 2015 से शामिल किया गया है।

इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि नया संशोधन मध्यस्था कार्यवाही से संबंधित सभी अदालती मामलों में लागू होगा चाहें मध्यस्था या न्यायालय की कार्यवाही मध्यस्था और सुलह (संशोधन) कानून, 2015 लागू होने से पहले या बाद में ही क्यों नहीं शुरू हुयी हो।

इस कानून की धारा 43जे में भी एक संशोधन किया गया है जो अब इस प्रकार है:

‘‘ मध्यस्थ के रूप में मान्यता के लिये योग्यता, अनुभव और मानक विनियमों में निर्धारित नियमों के अनुसार होंगे।’’

मध्यस्थ की योग्यता और अनुभव संबंधी प्रावधान को कानून की आठवीं अनुसूची से हटा दिया गया है।

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President promulgates Arbitration and Conciliation Ordinance, 2020: Now, unconditional stay on awards prima facie induced by fraud or corruption

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