राजस्थान उच्च न्यायालय ने शिक्षकों के बीच लैंगिक भेदभाव के लिए राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया

कोर्ट ने सरकार की आलोचना की कि वह पदोन्नति मे महिला शिक्षको के साथ घटिया व्यवहार करती है।महिलाओ के अधिकारो को इस आधार पर नकारा नही जाना चाहिए कि महिलाएं क्या काम कर सकती है या नही कर सकती
Jaipur Bench, Rajasthan High Court
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राजस्थान उच्च न्यायालय ने हाल ही में राज्य सरकार को इस आधार पर पदोन्नति में महिला शिक्षकों के साथ भेदभाव करने के लिए आड़े हाथों लिया कि लड़कों के स्कूलों की तुलना में लड़कियों के स्कूलों की संख्या कम है [श्रीमती तारा अग्रवाल बनाम राजस्थान राज्य]।

न्यायालय वर्ष 2009 में राज्य शिक्षा विभाग द्वारा पुरुष और महिला शिक्षकों के लिए दो अलग-अलग वरिष्ठता सूचियाँ तैयार करने के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था। पदोन्नति के लिए 1998 तक नियुक्त पुरुष शिक्षकों पर विचार किया गया, जबकि सूची में केवल 1996 तक नियुक्त महिला शिक्षकों को ही शामिल किया गया।

न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढन्ड ने कहा कि इस तरह की कवायद से अधिकारियों ने न केवल लैंगिक भेदभाव किया, बल्कि महिला शिक्षकों के समानता के अधिकार का भी उल्लंघन किया।

न्यायालय ने कहा, "इसलिए, प्रतिवादियों ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15(1), 16 और 21 के तहत निहित उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है। प्रतिवादियों की ओर से ऐसा कृत्य पूरी तरह से मनमाना, अनुचित और निंदनीय है।"

Justice Anoop Kumar Dhand
Justice Anoop Kumar Dhand

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि भारत में लिंग के आधार पर भेदभाव को हमेशा से ही संविधान के भाग III के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना जाता रहा है।

न्यायालय ने कहा कि "संविधान का अनुच्छेद 14 व्यक्तियों के बीच समानता को संबोधित करता है, अनुच्छेद 15(1) राज्य को अन्य बातों के अलावा लिंग के आधार पर किसी के साथ भेदभाव करने से रोकता है, और किसी भी उद्देश्य के लिए लिंग के आधार पर नागरिकों के बीच वर्गीकरण को भी प्रतिबंधित करता है और अनुच्छेद 16(1) और (2) सार्वजनिक रोजगार के मामलों में समान अवसर से संबंधित है। ये निषेधाज्ञाएं बिना शर्त और निरपेक्ष हैं।"

राज्य का यह तर्क कि पुरुष शिक्षकों की आवश्यकता महिला शिक्षकों की अपेक्षा अधिक है, क्योंकि लड़कों के स्कूलों की संख्या अधिक है, भी न्यायालय को प्रभावित नहीं कर पाया।

इसके बजाय, न्यायालय ने राज्य की इस धारणा की आलोचना की कि केवल पुरुष शिक्षक ही लड़कों के स्कूलों में पढ़ाने के लिए सक्षम हैं।

इसमें कहा गया है "यद्यपि प्रथम दृष्टया यह नियम किसी विशेष लिंग के शिक्षकों की मांग के आधार पर वर्गीकरण करता है, लेकिन उस वर्गीकरण का प्रभाव महिला शिक्षकों पर पड़ता है, और इस प्रकार, यह नियम वास्तव में पुरुषों और महिलाओं के बीच विद्यमान असमानताओं की पुष्टि करके सामाजिक पदानुक्रम को मजबूत करता है। उपर्युक्त वर्गीकरण का तात्पर्य यह है कि केवल पुरुष शिक्षक ही लड़कों के स्कूल में पढ़ाने के लिए पर्याप्त सक्षम हैं, इस प्रकार महिला शिक्षकों को उनके समकक्षों की तुलना में एक घटिया वर्ग माना जाता है।"

याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता एचआर कुमावत ने पैरवी की। राज्य की ओर से अधिवक्ता नमिता परिहार ने पैरवी की।

[निर्णय पढ़ें]

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Rajasthan High Court calls out State for gender discrimination among teachers

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