दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि हालांकि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 37 जमानत देने के लिए कड़े परीक्षण करती है, लेकिन अगर आरोपी के खिलाफ मुकदमा पूरा होने में अनुचित देरी होती है तो यह जमानत देने में बाधक नहीं बनती है। [विश्वजीत सिंह बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली)]।
एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 के अनुसार, एक अदालत ड्रग्स मामले में एक आरोपी को केवल तभी जमानत दे सकती है जब वह संतुष्ट हो कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि वह अपराध का दोषी नहीं है और आरोपी जेल से रिहा होने के बाद ऐसा कोई अपराध करने की संभावना नहीं है।
न्यायमूर्ति नवीन चावला ने 28 फरवरी को सुनाए गए एक आदेश में कहा कि लंबे समय तक कैद आमतौर पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है। इसलिए, सशर्त स्वतंत्रता को एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 के तहत जमानत देने पर वैधानिक प्रतिबंध को ओवरराइड करना चाहिए।
कोर्ट ने कहा, "उपरोक्त [उद्धृत निर्णयों] से, यह स्पष्ट है कि जमानत पर रिहा होने के लिए एनडीपीएस की धारा 37 के तहत अभियुक्तों द्वारा की जाने वाली कड़ी परीक्षा के बावजूद, यह माना गया है कि इससे मुकदमे के पूरा होने में अनुचित देरी के आधार पर आरोपी को जमानत देने में कोई बाधा नहीं आती है। यह माना गया है कि लंबे समय तक कारावास आम तौर पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है और इसलिए, सशर्त स्वतंत्रता को एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 के तहत वैधानिक प्रतिबंध को खत्म करना चाहिए।"
अदालत ने ये टिप्पणियां दो व्यक्तियों, विश्वजीत सिंह और देव कुमार @ गोलू को जमानत देते हुए कीं, जिन्हें 12 किलो गांजा (भांग) के साथ पकड़ा गया था।
उन्हें दिसंबर 2020 में गिरफ्तार किया गया था और ट्रायल कोर्ट ने 7 दिसंबर, 2021 को एनडीपीएस अधिनियम की धारा 29 के साथ पठित धारा 20 (सी) के तहत उनके खिलाफ आरोप तय किए थे।
न्यायमूर्ति चावला ने मामले पर विचार किया और कहा कि आरोपियों के खिलाफ मुकदमा जल्द ही समाप्त होने की संभावना नहीं है और आरोपी लंबे समय से जेल में हैं।
इसलिए अदालत ने आरोपी को जमानत दे दी।
विश्वजीत सिंह और देव कुमार की ओर से अधिवक्ता सत्य भूषण पेश हुए।
अतिरिक्त लोक अभियोजक अमन उस्मान राज्य के लिए पेश हुए।
[निर्णय पढ़ें]
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