
सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जांचे गए मामलों में कम दोषसिद्धि दर पर सवाल उठाए [पंजाब नेशनल बैंक एवं अन्य बनाम कल्याणी ट्रांसको एवं अन्य]।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति विनोद चंद्रन की पीठ ने टिप्पणी की कि दोषसिद्धि के बिना भी, एजेंसी आरोपियों को वर्षों तक जेल में रखने में सक्षम रही है।
सीजेआई बीआर गवई ने टिप्पणी की, "अगर उन्हें दोषी नहीं भी ठहराया जाता है, तो भी आप (ईडी) उन्हें [आरोपियों] लगभग वर्षों तक बिना किसी सुनवाई के सजा सुनाने में सफल रहे हैं।"
यह टिप्पणी भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड (बीपीएसएल) के लिए जेएसडब्ल्यू स्टील की समाधान योजना को खारिज करने के अपने आदेश के खिलाफ एक समीक्षा याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई।
यह टिप्पणी तब आई जब ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषा मेहता ने अदालत को बताया कि ईडी ने 20,000 करोड़ रुपये से अधिक की वसूली की है और उसे पीड़ितों में वितरित किया है।
उन्होंने कहा, "अदालत में आने वाले मामले केवल हाई-प्रोफाइल मामले होते हैं, अन्य मामले भी होते हैं।"
इसके बाद मुख्य न्यायाधीश गवई ने मेहता से पूछा कि दोषसिद्धि दर क्या है।
उन्होंने पूछा, "दोषसिद्धि दर कितनी है?"
मेहता ने उत्तर दिया:
"दोषसिद्धि अलग होती है। कभी-कभी हमें आश्चर्य होता है कि कोई व्यक्ति कैसे बरी हो गया। कभी-कभी हम इतना पैसा वसूल कर लेते हैं कि हमारी मशीनें काम करना बंद कर देती हैं। हम प्रेस साक्षात्कार और यूट्यूब पर चर्चा नहीं कर सकते।"
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अदालत प्रेस रिपोर्टों के आधार पर मामलों का फैसला नहीं करती।
पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई अभी जारी है।
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Sentencing without trial: Supreme Court questions ED's conviction rate