निष्पक्ष सुनवाई की कीमत पर त्वरित सुनवाई नहीं हो सकती: दिल्ली दंगा मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय

न्यायालय ने यह टिप्पणी दिल्ली दंगा मामले में एक आरोपी को अभियोजन पक्ष के गवाह को जिरह के लिए वापस बुलाने की अनुमति देते हुए की।
निष्पक्ष सुनवाई की कीमत पर त्वरित सुनवाई नहीं हो सकती: दिल्ली दंगा मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में दिल्ली दंगा मामले में एक आरोपी को अभियोजन पक्ष के गवाह को जिरह के लिए वापस बुलाने की अनुमति दी। [मोहम्मद दानिश बनाम राज्य (दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) एवं अन्य]

न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने इस बात पर जोर दिया कि निष्पक्ष सुनवाई की कीमत पर त्वरित सुनवाई नहीं हो सकती और इसलिए, अभियुक्त मोहम्मद दानिश द्वारा अभियोजन पक्ष के गवाह, हेड कांस्टेबल (एचसी) शशिकांत को जिरह के लिए वापस बुलाने की याचिका को स्वीकार कर लिया।

न्यायालय ने कहा, "वास्तव में त्वरित सुनवाई उस अभियुक्त के हित में अधिक है जो खुद को निर्दोष बताता है; लेकिन मुकदमे में तेजी मुकदमे की निष्पक्षता की कीमत पर नहीं हो सकती, क्योंकि यह न्याय के सभी सिद्धांतों के खिलाफ होगा।"

Justice Anup Jairam Bhambhani
Justice Anup Jairam Bhambhani

दानिश ने दलील दी कि शशिकांत ने जांच के दौरान अपने बयानों में दानिश का जिक्र नहीं किया था और न ही उसे पहचाना था। हालांकि, कोर्ट के समक्ष अपना बयान दर्ज करते समय शशिकांत ने दानिश को पहचान लिया था।

चूंकि दानिश का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता उस दिन ट्रायल कोर्ट के समक्ष उपस्थित नहीं थे, इसलिए शशिकांत से जिरह नहीं की जा सकी।

यह तर्क दिया गया कि शशिकांत से जिरह करना महत्वपूर्ण है ताकि यह पता लगाया जा सके कि उन्होंने 2020 की घटना से 2025 में अचानक कोर्ट के समक्ष दानिश को कैसे पहचाना, खासकर तब जब उन्होंने 2020 में जांच के दौरान दर्ज बयान में दानिश का जिक्र नहीं किया था।

यह बताया गया कि दानिश की पहचान परेड नहीं कराई गई।

राज्य लोक अभियोजक (एसपीपी) ने कहा कि जिरह के लिए स्थगन नहीं दिया जा सकता क्योंकि इससे मुकदमे में देरी होगी।

कोर्ट एसपीपी की दलीलों से सहमत नहीं था और उसने कहा कि हालांकि मुकदमे के इस चरण में अनावश्यक स्थगन नहीं दिया जाना चाहिए, लेकिन यह निष्पक्ष सुनवाई की कीमत पर नहीं आना चाहिए।

न्यायालय ने कहा, "हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि अनावश्यक स्थगन कभी नहीं दिया जाना चाहिए, विशेष रूप से उस समय जब गवाहों के बयान दर्ज किए जा रहे हों, लेकिन इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि इस प्रक्रिया का उद्देश्य अंततः निष्पक्ष सुनवाई करना है, और बयानों को शीघ्रता से दर्ज करना इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए है।"

न्यायालय ने कहा कि महत्वपूर्ण मुद्दे पर जिरह करने के अधिकार से वंचित करना ट्रायल कोर्ट की ओर से "अनुपातहीन तत्परता" प्रतीत होता है।

इसलिए, न्यायालय ने दानिश को ट्रायल कोर्ट द्वारा निर्धारित दिन पर शशिकांत से जिरह करने का अवसर दिया।

अधिवक्ता बिलाल अनवर खान, वरुण भाटी और अंशु कपूर दानिश की ओर से पेश हुए।

विशेष लोक अभियोजक आशीष दत्ता और अधिवक्ता मयंक राज्य की ओर से पेश हुए।

[आदेश पढ़ें]

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