अंतिम वर्ष की परीक्षा दिए बिना राज्य छात्रो को पास नहीं कर सकते, यूजीसी से समय सीमा बढ़ाने की मांग कर सकते है: एससी

खंडपीठ ने आज कहा कि महाराष्ट्र राज्य द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत महामारी के खिलाफ परीक्षा रद्द करने का निर्णय कायम रहेगा।
UGC and Supreme Court
UGC and Supreme Court

उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि राज्य सरकारों को कोविड-19 महामारी के बीच अंतिम वर्ष के विश्वविद्यालय परीक्षा आयोजित किए बिना छात्रों को पास करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

हालांकि, न्यायालय ने राज्यों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से समय सीमा बढ़ाने के लिए संपर्क करने का निर्णय दिया जिससे अंतिम वर्ष की परीक्षाएं पूरी हों।

यह आदेश जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की खंडपीठ ने सुनाया। 18 अगस्त को बेंच ने दो दिनों में विस्तृत सुनवाई के बाद इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।खंडपीठ ने आज कहा कि महाराष्ट्र राज्य द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत महामारी के खिलाफ परीक्षा रद्द करने का निर्णय कायम रहेगा

R Subhash Reddy, Ashok bhushan, MR shah
R Subhash Reddy, Ashok bhushan, MR shah

खंडपीठ ने आज कहा कि महाराष्ट्र राज्य द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत महामारी के खिलाफ परीक्षा रद्द करने का निर्णय कायम रहेगा

अपने संशोधित दिशानिर्देशों में, यूजीसी ने मानक संचालन प्रक्रिया का पालन करते हुए कोविड-19 महामारी के बीच सभी अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने का आदेश दिया।

यूजीसी के दिशानिर्देशों ने न केवल छात्रों, बल्कि शिक्षकों के संगठनों और राजनीतिक दलों के युवा विंग को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए प्रेरित किया।

न्यायालय के समक्ष, आपदा प्रबंधन अधिनियम के प्रावधानों की अवहेलना करते हुए इस प्रभाव के एक दिशा निर्देश जारी करने के लिए यूजीसी की शक्ति के संबंध मे कहा गया।

एक और सवाल जो न्यायालय के सामने रखा गया था कि क्या राज्य सरकारें यूजीसी द्वारा छात्रों को डिग्री प्रदान करने के लिए सशक्त होने पर परीक्षा आयोजित नहीं करने का विकल्प चुन सकती हैं।

अभिषेक मनु सिंघवी, श्याम दीवान, और अरविंद दातार सहित वरिष्ठ वकील के एक संघ ने छात्रों हितों के पक्ष में तर्क दिया। उन्होंने बताया कि परीक्षाओं को रद्द करने के लिए कुछ राज्य सरकारों द्वारा लिए गए निर्णय केवल बढ़ते COVID-19 के आंकड़ों के कारण थे। सामान्य परिस्थितियों में, परीक्षाओं को स्थगित या रद्द नहीं किया जाएगा।

सिंघवी ने अंतिम वर्ष के छात्र यश दुबे की तरफ से उपस्थित होते हुए कहा कि यूजीसी के प्रारंभिक दिशानिर्देशों में संवेदनशीलता और लचीलेपन का एक तत्व दिखाई दिया। हालांकि, यह तत्व अपने संशोधित दिशानिर्देशों में पूरी तरह से अनुपस्थित था, जिसके तहत विभिन्न स्थानों में आधारिक स्थिति को ध्यान में रखे बिना 30 सितंबर की समय सीमा तय की गई थी।

उन्होंने अप्रैल में परीक्षा आयोजित करने से इनकार करने के पीछे यूजीसी के तर्क पर भी सवाल उठाया जब कोविड़-19 महामारी अपने शुरुआती चरणों में थी।

शिवसेना की युवा शाखा पार्टी युवा सेना की ओर से पेश दिवान ने दलील दी कि केंद्रीय गृह मंत्रालय का निर्देश शैक्षणिक संस्थानों को बंद करने के लिए निर्देशित है और यदि आवश्यक हो तो इन दिशानिर्देशों को राज्यों द्वारा सख्त बनाया जा सकता है। दीवान ने कहा कि परीक्षाओं को आयोजित करना अनिवार्य रूप से इन दिशानिर्देशों को कमजोर करने की ओर ले जाएगी।

दातार ने यूजीसी के प्रावधानों के अनुसार वैकल्पिक मार्किंग प्रणाली को अपनाने के विकल्प की उपलब्धता के बारे में अदालत को बताया।

वरिष्ठ अधिवक्ता केवी विश्वनाथन और जयदीप गुप्ता ने छात्रों को ऑनलाइन मोड में परीक्षा देने के लिए संसाधनों की पहुंच में असमानता के संबंध में प्रासंगिक बिंदु दिए। दातार ने यह भी कहा कि विशेष आवश्यकताओं वाले छात्रों पर कोई भी विचार नहीं किया गया है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि यूजीसी परीक्षाओं के बिना डिग्री प्रदान करने के लिए नहीं है और परीक्षा आयोजित करने का निर्णय छात्रों के हितों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, जैसे कि काफी छात्रों ने नौकरियों और आगे की पढ़ाई के लिए आवेदन किया है।

यूजीसी ने महाराष्ट्र और दिल्ली की सरकारों द्वारा कोविड-19 महामारी के बीच इस साल अंतिम वर्ष की परीक्षा नहीं कराने के लिए उठाए गए रुख के खिलाफ अपना विरोध किया था।

यूजीसी ने अपने जवाब में कहा कि राज्य सरकारें शैक्षणिक सत्र शुरू करने और अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने के संबंध में विरोधाभासी रुख अपना रही हैं।

प्रारंभ में, भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुल 31 छात्रों ने 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को पूरा करने के लिए यूजीसी के परिपत्र निर्देश विश्वविद्यालयों को खत्म करने के संबंध मे उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।

याचिका अधिवक्ता अनुभा श्रीवास्तव सहाय ने प्रस्तुत की थी और अधिवक्ता अलख आलोक श्रीवास्तव ने दलीलें पेश की थी।

बाद में, आदित्य ठाकरे के नेतृत्व वाली युवा सेना और भोपाल के एक लॉं अंतिम वर्ष के छात्र ने भी यूजीसी के दिशानिर्देशों को चुनौती दी।

लॉं अंतिम वर्ष के छात्र की याचिका अधिवक्ता तन्वी दुबे द्वारा प्रस्तुत की गयी थी।

और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें

https://www.barandbench.com/news/states-cannot-promote-students-without-holding-final-year-exams-ugc-supreme-court

Related Stories

No stories found.
Hindi Bar & Bench
hindi.barandbench.com