Bombay High Court
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक कंपनी के निदेशक को अग्रिम जमानत दी थी, जिस पर अपने एक कर्मचारी को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था [डॉ. सुरेंद्र मांजरेकर बनाम महाराष्ट्र राज्य]
कोर्ट ने प्रथम सूचना रिपोर्ट से नोट किया कि मृतक अपने तनाव प्रबंधन के लिए इलाज करा रहा था और मन की अशांत स्थिति में था, जब उसने आत्महत्या कर ली।
न्यायमूर्ति एसवी कोतवाल ने कहा कि भले ही आरोप यह था कि मृतक कंपनी में तनाव के कारण परेशान था, कंपनी अपने व्यवसाय को इस तरह से चलाने की हकदार थी जो उसके सर्वोत्तम हित में हो।
आदेश मे कहा, "इसका अपने आप में मतलब यह नहीं होगा कि बड़े लक्ष्य दिए गए और मीटिंग की गई ताकि मृतक आत्महत्या कर सके"
मृतक की पत्नी की शिकायत के आधार पर आरोपी डॉक्टर सुरेंद्र मांजरेकर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी है। पत्नी ने कहा कि उसके पति ने 2001 से कंपनी में काम किया और ₹1,35,000 का वेतन अर्जित किया।
अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि प्राथमिकी में एकमात्र गंभीर आरोप यह था कि आवेदक ने मृतक को कैरियर में उसकी संभावनाओं के बारे में धमकी दी थी, हालांकि, इस तरह की धमकियों का प्रभाव परीक्षण का विषय था।
मृतक द्वारा लिखे गए मूल आरोपों के प्रथम दृष्टया अवलोकन पर, न्यायालय ने कहा कि यह मानना मुश्किल होगा कि इस तरह के कृत्यों को भारतीय दंड संहिता की धारा 107 के तहत परिभाषित उकसावे के दायरे में शामिल किया जाएगा।
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