सुप्रीम कोर्ट ने आरटीई अधिनियम पर जनहित याचिका पर जवाब न देने पर तेलंगाना, पंजाब, जम्मू-कश्मीर को चेताया

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा केंद्र शासित प्रदेश और दोनों राज्यों द्वारा जवाब दाखिल करने मे विफलता के कारण मामले की सुनवाई में देरी हो रही है।
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सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को शिक्षा के अधिकार अधिनियम को लागू करने की मांग वाली जनहित याचिका पर तेलंगाना और पंजाब राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर द्वारा जवाब न देने पर आपत्ति जताई [मोहम्मद इमरान अहमद बनाम भारत संघ]।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश और दोनों राज्यों द्वारा अपना जवाब दाखिल करने में विफलता के कारण मामले की सुनवाई में देरी हो रही है।

न्यायालय ने कहा, "नोटिस की तामील के बावजूद, तीन राज्यों यानी तेलंगाना राज्य, पंजाब राज्य और जम्मू और कश्मीर राज्य की ओर से कोई भी उपस्थित नहीं हुआ है। उनकी ओर से न तो जवाब दाखिल किया गया है और न ही जवाबी हलफनामे दाखिल किए गए हैं। उन्होंने अपने जवाब भी दाखिल नहीं किए हैं, जबकि बाकी अन्य राज्यों ने पहले ही अपने जवाब दाखिल कर दिए हैं। इन तीन राज्यों द्वारा जवाब दाखिल न किए जाने के कारण मामले में देरी हो रही है।"

इसलिए, इसने चेतावनी दी कि यदि तब तक कोई जवाब दाखिल नहीं किया जाता है तो मुख्य सचिवों को अगली सुनवाई के लिए उपस्थित होना होगा।

आदेश में कहा गया है, "यदि उक्त राज्यों द्वारा कोई जवाब दाखिल नहीं किया जाता है, तो हम संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों को अगली तारीख पर उपस्थित रहने का निर्देश देते हैं। यदि जवाब दाखिल किया जाता है और राज्यों का उचित प्रतिनिधित्व होता है, तो मुख्य सचिवों की उपस्थिति आवश्यक नहीं होगी।"

एम.डी. इमरान अहमद द्वारा अधिवक्ता आयुष नेगी के माध्यम से दायर याचिका में आरटीई अधिनियम की धारा 12(1)सी को लागू करने की मांग की गई है, जो गैर-अल्पसंख्यक निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को समाज के वंचित वर्गों के बच्चों के लिए अपनी प्रवेश-स्तर की कम से कम 25 प्रतिशत सीटें अलग रखने का आदेश देती है।

कोर्ट ने फरवरी 2023 में केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी किया था।

[आदेश पढ़ें]

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