सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 2022 के अपने फैसले को वापस ले लिया, जिसमें बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम, 1988 और 2016 के संशोधनों के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया गया था [भारत संघ बनाम गणपति डीलकॉम]।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने शीर्ष अदालत के 22 अगस्त के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा दायर समीक्षा याचिका को अनुमति दे दी।
न्यायालय ने आज कहा कि असंशोधित अधिनियम के प्रावधानों को कोई चुनौती नहीं दी गई है और संवैधानिक वैधता के मुद्दे को निर्णय में संबोधित नहीं किया गया है।
तदनुसार इसने निर्णय को वापस ले लिया और मूल मामले को नई पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए बहाल कर दिया।
न्यायालय ने कहा, "यह सामान्य कानून है कि किसी प्रावधान की संवैधानिक वैधता तभी तय की जा सकती है जब उसी प्रावधान को चुनौती दी गई हो।"
तत्कालीन सीजेआई एनवी रमना और जस्टिस कृष्ण मुरारी और हिमा कोहली की पीठ ने अगस्त 2022 में माना था कि असंशोधित 1988 अधिनियम की धारा 3(2) स्पष्ट रूप से मनमाना होने के कारण असंवैधानिक थी।
परिणामस्वरूप, 2016 अधिनियम की धारा 3(2) को भी संविधान के अनुच्छेद 20(1) का उल्लंघन करने के कारण असंवैधानिक माना गया था।
धारा 3(2) ने बेनामी लेनदेन को अपराध घोषित कर दिया, जिससे इसे 3 साल तक के कारावास से दंडनीय बना दिया गया।
आज समीक्षा की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि प्रावधानों को न्यायालय के समक्ष चुनौती नहीं दी गई है।
न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने टिप्पणी की, "हां, किसी प्रावधान को असंवैधानिक ठहराए जाने से पहले कम से कम उसे चुनौती तो देनी ही होगी।"
हालांकि न्यायालय ने शुरू में कहा था कि वह समीक्षा को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करेगा, लेकिन बाद में उसने निर्णय को देखने और वकील की सुनवाई के बाद निर्णय को वापस ले लिया।
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Supreme Court recalls judgment striking down provisions of Benami Transactions (Prohibition) Act