
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर नोटिस जारी किया, जिसमें बिहार में सभी मौजूदा और निर्माणाधीन पुलों का उन्नत संरचनात्मक ऑडिट कराने और कमजोर संरचनाओं को ध्वस्त करने की मांग की गई है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने ब्रजेश सिंह द्वारा दायर याचिका पर बिहार सरकार से जवाब मांगा है।
राज्य में 15 दिनों के भीतर कथित तौर पर नौ पुल ढहने के बाद जनहित याचिका दायर की गई थी।
याचिका में तत्काल कार्रवाई की मांग की गई है क्योंकि पिछले दो वर्षों में बिहार में कई निर्माणाधीन और मौजूदा पुल ढह गए हैं, जिससे लोगों की जान चली गई और सरकारी खजाने को काफी वित्तीय नुकसान हुआ है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि बिहार में पुलों के लगातार ढहने से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि कोई सबक नहीं सीखा गया है और पुलों जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की सुरक्षा को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है।
याचिका में कहा गया है कि इन नियमित घटनाओं को केवल दुर्घटना नहीं कहा जा सकता है और ये मानव निर्मित आपदाएं हैं।
याचिका में रेखांकित किया गया है कि राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 73.06 प्रतिशत हिस्सा बाढ़-प्रवण है और इसलिए, पुलों के नियमित ढहने से बहुत से लोगों की जान जोखिम में पड़ जाती है।
इसमें चमेली सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का भी हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि आश्रय के अधिकार में पर्याप्त रहने की जगह, सुरक्षित और सभ्य संरचना, स्वच्छ और सभ्य परिवेश, पर्याप्त रोशनी, शुद्ध हवा और पानी, बिजली, स्वच्छता और सड़क जैसी अन्य नागरिक सुविधाएं शामिल हैं, ताकि किसी व्यक्ति की दैनिक गतिविधियों तक आसानी से पहुंच हो सके।
तदनुसार, पुलों के संरचनात्मक ऑडिट के अनुरोध के साथ-साथ याचिका में बिहार सरकार को राज्य में सभी पुलों की वास्तविक समय निगरानी के लिए उचित नीति तंत्र बनाने का निर्देश देने की मांग की गई है।
इसके अलावा, इसमें राज्य में पुलों के स्वास्थ्य की निगरानी के लिए एक विशेषज्ञ निकाय बनाने के लिए सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है।
और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें
Supreme Court seeks Bihar's response to PIL for structural audit of bridges in the State