उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के खिलाफ उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा भेजी गयी अवमानना कार्यवाही की नोटिस पर आज रोक लगा दी। उच्च न्यायालय ने राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में कोश्यारी को आबंटित सरकारी बंगले के किराये का बाजार दर से भुगतान नहीं करने के कारण यह नोटिस जारी किया था।
न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरिमन, न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कोश्यारी की याचिका पर उत्तरांखड सरकार को नोटिस जारी करने के साथ बाजार भाव निर्धारित करने के उच्च न्यायलय के आधार के खिलाफ पहले से ही लंबित याचिकाओं के साथ सलंग्न कर दिया।
उत्तराखंड के दो अन्य पूर्व मुख्य मंत्रियों और राज्य सरकार ने पहले ही उच्च न्यायालय के मई में दिये गये आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दे रखी है। शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय में लंबित अवमानना कार्यवाही पर रोक लगा रखी है।
अधिवक्ता एके प्रसाद के माध्यम से दायर याचिका में कोश्यारी ने कहा है कि चूंकि वह इस समय महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं, इसलिए उनके खिलाफ अवमानना की नोटिस जारी करते समय संविधान के अनुच्छेद 361 के निषेध प्रावधान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपालों को अदालतों के सामने किसी भी तरह की कानूनी कार्रवाई से उन्हें संरक्षण प्रदान करता है।
इस अनुच्छेद में प्रावधान है, ‘‘राष्ट्रपति और राज्यपाल तथा राजप्रमुखों को संरक्षण
(1) राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपाल या राज प्रमुख अपने पद की शक्तियों के प्रयोग और कर्तव्यों के पालन के लिये या उन शक्तियों का प्रयोग और कर्तव्यों का पालन करते हुये किये गये या किये जाने के लिये तात्पर्यित किसी के लिये किसी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं होंगे।’’
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने जून 2020 में पूर्व मुख्य मंत्रियों को रहने के लिये सरकारी बंगले उपलब्ध कराने और इन पर 19 साल के दौरान आये गैर कानूनी खर्चो को वैध ठहराने वाला कानून निरस्त कर दिया था।
यह कानून उच्च न्यायालय के मई, 2019 के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिये लाया गया था। इस फैसले में उच्च न्यायालय ने पूर्व मुख्य मंत्रियों को अपना कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी मुफ्त में रह रहे इन सरकारी बंगले खाली करने का आदेश दिया था।
न्यायालय ने इसके साथ ही राज्य के पूर्व मुख्य मंत्रियों को पिछले 19 सालों से इन सरकारी बंगलों के लिये बाजार भाव के आधार पर किराया देने का भी आदेश दिया था।
इस फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका उच्च न्यायालय ने सात अगस्त, 2019 को खारिज कर दी थी।
उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार मुख्यमंत्री के रूप में कोश्वारी को आबंटित सरकारी आवास का बाजार भाव से किराया 47.7 लाख रूपए बनता था।
कोश्यारी ने उच्चतम न्यायालय में दायर अपनी याचिका में दलील दी है कि वह उन्हें आबंटित आवासीय परिसर का बाजार मूल्य निर्धारित करने की प्रक्रिया में कभी भी पक्षकार नहीं रहे।
याचिका में यह भी दलील दी गयी कि कोश्यारी नियमों के तहत प्राधिकारी द्वारा कानूनी तरीके से आबंटित आवास में रहते थे और आबंटन के समय इसे लेकर कोई विवाद नहीं था। याचिका में यह भी कहा गया है कि कानून के तहत अवास परिसर खाली करने के लिये कहे जाने पर उन्होंने इसे खाली कर दिया।
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