उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश विधान सभा के उप चुनावों के लिये वर्चुअल प्रचार का निर्देश देने संबधी उच्च न्यायालय के निर्देश पर आज रोक लगा दी।
न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया कि उच्च न्यायालय में उठाये गये सारे मुद्दों पर विचार करे और कानून के अनुसार कार्रवाई करे।
न्यायालय भाजपा नेता प्रद्युमन सिंह तोमर और निर्वाचन आयोग की दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। इनमें मप्र उच्च न्यायालय के 20 अक्टूबर के उस आदेश को चुनौती दी गयी थी जिसमे राज्य में उपचुनावों में वर्चुअल तरीके से ही प्रचार का निर्देश दिया गया था।
पीठ ने आज अपने आदेश में कहा,
निर्वाचन आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी और अधिवक्ता अमित शर्मा पेश हुये और उन्होंने दलील दी कि उच्च न्यायालय ने राज्य में चुनाव प्रक्रिया को पंगु बना दिया है।
न्यायालय ने इस टिप्पणी की कि अगर निर्वाचन आयोग ज्यादा सक्रिय होता तो उच्च न्यायालय ने इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया होता।
पीठ ने टिप्पणी की,
‘‘निर्वाचन आयोग के रूप में आपकी व्यापक भूमिका है। आपको प्राधिकारियों को ठीक से अवगत कराना चाहिए था। जन-सभाओं को नियंत्रित करने की जरूरत नहीं है लेकिन यह सुनिश्चित हो कि प्रोटोकाल का पालन किया जाये। सिर्फ आप ही स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित कर सकते हैं। उच्च न्यायालय इस पर विचार नहीं करसकता। आपको स्थिति को दुरूस्त करना होगा और अनियमित्ताओं पर निगाह रखनी होगी तथा प्राधिकारियों को कार्रवाई का निर्देश देना होगा। हम यह कहेंगे कि आप उच्च न्यायालय में लंबित सारे मुद्दों का संज्ञान लेंगे और जिम्मेदारी संभालेंगे।’’
वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने तोमर की ओर से बहस की और कहा कि उपचुनावों में सिर्फ पांच दिन बचे हैं। अब मतदान की अवधि में तीन से चार घंटे की वृद्धि करने की जरूरत है।
हालांकि, न्यायालय ने इस तर्क को रिकार्ड करने से इंकार कर दिया। उसने कहा कि सभी पक्ष चाहें तो निर्वाचन आयोग के समक्ष प्रतिवेदन रख सकते हैं।
ग्वालियर से उपचुनाव लड़ रहे तोमर ने इस आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुये अपनी याचिका में कहा है कि यह निर्वाचन आयोग द्वारा दी गयी अनुमति के अनुसार वास्तविक सभा के माध्यम से चुनाव प्रचार करने के उनके अधिकार का हनन करता है।
निर्वाचन आयोग ने अपनी याचिका में कहा था कि चुनाव कराना उसके अधिकार क्षेत्र में आता है और उच्च न्यायालय ने चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप किया है। आयोग का कहना था कि वर्चुअल प्रचार का उच्च न्यायालय का निर्देश राज्य में उपचुनावों की चुनाव प्रक्रिया को पटरी से उतार देगा।
उच्च न्यायालय ने विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा आयोजित की जा रही सभाओं की वजह से कोविड-19 संक्रमण के मामलों में वृद्धि के तथ्य को उजागर करने वाली जनहित याचिका पर आदेश पारित किया था। इस याचिका में दलील दी गयी थी कि राज्य के प्राधिकारी ऐसे राजनीतिक दलों और उनके नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।
इस आदेश में उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि राजनीतिक दल वास्तविक जनसभाओं की बजाये आभासी तरीके से चुनाव प्रचार करेंगे। न्यायालय ने सभी जिलाधिकारियों को उस समय तक ऐसी सभाओं की अनुमति देने से रोक दिया था जब तक यह साबित नहीं हो जाये कि आभासी तरीके से चुनाव प्रचार संभव नहीं है।
उच्च न्यायालय ने साथ ही यह निर्देश भी दिया था कि जिलाधिकारी द्वारा वास्तविक जनसभा के आयोजन की अनुमति निर्वाचन आयोग द्वारा लिखित में मंजूरी दिये जाने पर ही प्रभावी होगी।
अधिवक्ता आस्था शर्मा के माध्यम से दायर एसएलपी में तोमर ने कहा था कि उच्च न्यायालय का आदेश निर्वाचन आयोग, केन्द्र सरकार और मध्य प्रदेश सरकार के आदेशों की पूरी तरह उपेक्षा है।
याचिका में कहा गया था , ‘‘जनसभाओं के लिये अनुमति देने से जिलाधिकारियों को रोकने और दुगुने मास्क और सैनिटाइजर के लिये दुगुनी धनराशि जमा कराने की शर्त पूरी तरह से उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।’’
निर्वाचन आयोग ने कहा था कि उच्च न्यायालय का आदेश चुनाव प्रक्रिया और प्रत्याशियो के लिये प्रचार के समान अवसरों को प्रभावित करेगा।
आयोग ने यह भी कहा था कि कोविड-19 महामारी के दौरान चुनाव कराने के बारे में पहले से ही दिशा निर्देश मौजूद हैं।
यह मामला निर्वाचन आयोग द्वारा 23 सितंबर को जारी प्रेस विज्ञप्ति से संबंधित है जिसमें मध्य प्रदेश विधान सभा की 28 सीटों सहित विभिन्न राज्यों में रिक्त स्थानों के लिये उप चुनाव कराने की घोषणा की गयी थी।
इस प्रेस विज्ञप्ति के उपलबंध 5 में निर्वाचन आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 324 में प्रदत्त अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुये कोविड-19 के दिशा निर्देश तैयार किये जिनका इन उपचुनावों के दौरान पालन होना था।
दिशानिर्देशों के उपबंध 13 (3) में निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट रूप से कोविड-19 दिशा निर्देशों का पालन करते हुये ‘जनसभाओं’ और ‘चुनावी रैलियों’ के आयोजन की अनुमति प्रदान की है।
इसके बाद, केन्द्र ने 8 अक्टूबर को निर्धारित शर्तो के साथ उप चुनाव वाले विधान सभा क्षेत्रों में 100 व्यक्तियों की वर्तमान सीमा से ज्यादा व्यक्तियों के एकत्र होने की अनुमति प्रदान कर दी थी। साथ ही यह निर्देश भी दिया गया था कि संबंधित राज्य सरकारें विस्तृत स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रसीजर जारी करेंगी।
इसके बाद, राज्य सरकार ने कुछ प्रतिबंधों के साथ जनसभाओं की अनुमति प्रदान की थी।
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