सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, जिसने मदरसा बोर्ड की स्थापना की और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग द्वारा मदरसों के प्रशासन का प्रावधान किया। [अंजुम कादरी एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य]
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस निर्णय को खारिज कर दिया, जिसमें संविधान के मूल ढांचे के एक पहलू - धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करने के लिए अधिनियम को निरस्त कर दिया गया था।
न्यायालय ने कहा कि संविधान के भाग III के तहत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन या विधायी क्षमता के आधार पर किसी कानून को निरस्त किया जा सकता है, लेकिन मूल ढांचे के उल्लंघन के लिए नहीं।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, "कानून को केवल भाग III या विधायी क्षमता के उल्लंघन के लिए ही निरस्त किया जा सकता है, न कि मूल ढांचे के उल्लंघन के लिए। उच्च न्यायालय ने यह मान कर गलती की कि मूल ढांचे के उल्लंघन के लिए कानून को निरस्त किया जाना चाहिए।"
इसने यह भी माना कि अधिनियम का उद्देश्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना है जो राज्य के सकारात्मक दायित्व के अनुरूप है।
न्यायालय ने कहा, "अधिनियम की विधायी योजना मदरसों में निर्धारित शिक्षा के स्तर को मानकीकृत करना है। मदरसा अधिनियम मदरसों के दैनिक कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करता है। यह उत्तर प्रदेश राज्य में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए है और राज्य के सकारात्मक दायित्व के अनुरूप है, जो छात्रों को उत्तीर्ण होने और एक सभ्य जीवन जीने के लिए सुनिश्चित करता है।"
हालांकि, न्यायालय ने अधिनियम के उन प्रावधानों को खारिज कर दिया, जो मदरसा बोर्ड को उच्च शिक्षा - कामिल (स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम) और फाजिल (जूनियर रिसर्च प्रोग्राम) के लिए निर्देश और पाठ्य पुस्तकें निर्धारित करने का अधिकार देता है।
न्यायालय ने कहा कि यह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम (यूजीसी अधिनियम) का उल्लंघन होगा।
संक्षेप में फैसला
- मदरसा अधिनियम मदरसों में शिक्षा को विनियमित करता है;
- यह राज्य के सकारात्मक दायित्व के अनुरूप है, जिसके कारण व्यक्ति सभ्य जीवनयापन कर सकता है;
- अनुच्छेद 21ए (निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार) और शिक्षा का अधिकार अधिनियम को इस तरह से पढ़ा जाना चाहिए कि धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक संस्थान शिक्षा प्रदान कर सकें;
- यह राज्य की विधायी क्षमता के अंतर्गत आता है;
- उच्च शिक्षा से संबंधित फाजिल और कामिल पर मदरसा अधिनियम के प्रावधान यूजीसी अधिनियम के साथ विरोधाभासी हैं और इसलिए इसे असंवैधानिक करार दिया जाता है।
पृष्ठभूमि और उच्च न्यायालय का निर्णय
पीठ ने मई में अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करने के उच्च न्यायालय के निर्णय पर रोक लगा दी थी।
मदरसा ऐसे संस्थानों को कहते हैं, जहां छात्र इस्लामी अध्ययन और अन्य शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।
उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 में मदरसा-शिक्षा को अरबी, उर्दू, फारसी, इस्लामी अध्ययन, दर्शन और उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड द्वारा निर्दिष्ट अन्य शाखाओं में शिक्षा के रूप में परिभाषित किया गया था।
2004 अधिनियम का घोषित उद्देश्य मदरसा के कामकाज की देखरेख करके मदरसा शिक्षा बोर्ड को सशक्त बनाना था।
इस अधिनियम को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के विरुद्ध है।
यह भी तर्क दिया गया कि यह 14 वर्ष की आयु/कक्षा-8 तक गुणवत्तापूर्ण अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने में विफल है, जैसा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21ए के तहत अनिवार्य रूप से प्रदान किया जाना आवश्यक है।
इसके अलावा यह भी तर्क दिया गया कि यह मदरसों में पढ़ने वाले सभी बच्चों को सार्वभौमिक और गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा प्रदान करने में विफल है, जैसा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अनिवार्य रूप से प्रदान किया जाना आवश्यक है।
इस प्रकार, यह मदरसों के छात्रों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं से सहमति व्यक्त की थी और कहा था कि राज्य के पास स्कूल स्तर पर प्रदान की जाने वाली शिक्षा के संबंध में कानून बनाने की पर्याप्त शक्ति है, लेकिन ऐसी शिक्षा धर्मनिरपेक्ष प्रकृति की होनी चाहिए।
वकील
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, पी चिदंबरम, मुकुल रोहतगी, मेनका गुरुस्वामी, पीएस पटवालिया, एमआर शमशाद और सलमान खुर्शीद अपीलकर्ताओं की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में पेश हुए।
उनकी सहायता अधिवक्ता रोहित अमित स्थलेकर, संकल्प नारायण, एमए औसाफ, हृतुध्वज प्रताप साही, एचपी साही, श्रीवत्स नारायण, रंजीता रोहतगी, यश जौहरी और लुबना नाज ने की।
वरिष्ठ अधिवक्ता गुरु कृष्णकुमार उस वकील की ओर से पेश हुए, जिसने उच्च न्यायालय के समक्ष अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिका दायर की थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता माधवी दीवान ने प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व किया।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से पेश हुए।
वरिष्ठ अधिवक्ता स्वरूपमा चतुर्वेदी राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से पेश हुईं।
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Supreme Court upholds validity of Uttar Pradesh Board of Madarsa Education Act