
सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि वह विभिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिशों को मंजूरी देने में केंद्र सरकार द्वारा की जा रही देरी से अवगत है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि न्यायालय प्रशासनिक पक्ष से इस मामले को आगे बढ़ा रहा है।
पीठ ने हाल ही में दिल्ली के एक वकील की सिफारिश रोके जाने की घटना पर भी विशेष रूप से प्रकाश डाला।
वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार द्वारा न्यायिक नियुक्तियों से संबंधित लंबित मामले का उल्लेख करने के बाद न्यायालय ने यह टिप्पणी की।
दातार ने कहा, "यह उन न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित मामला है जिनके नामों की सिफारिश की गई है। मामला अभी भी लंबित है। 2019 में कुछ नामों की सिफारिश की गई थी जिन्हें 2021-22 में दोहराया गया था, लेकिन वे अभी भी लंबित हैं। ये नाम चार साल से लंबित हैं। उनकी वरिष्ठता समाप्त हो जाती है।"
मुख्य न्यायाधीश ने जवाब में कहा, "हम प्रशासनिक पक्ष से भी इस मामले की जाँच कर रहे हैं। मुझे इसकी जानकारी है। वह दिल्ली की एक महिला हैं।"
उनका इशारा संभवतः वरिष्ठ अधिवक्ता श्वेताश्री मजूमदार की ओर था, जिन्होंने सरकार द्वारा एक साल से अधिक समय तक उनका नाम लंबित रखे जाने के बाद न्यायाधीश पद के लिए अपनी सहमति वापस ले ली थी।
वकील प्रशांत भूषण ने कहा, "हाँ, वह राष्ट्रीय लोक सेवा आयोग की टॉपर थीं। ऐसा लगातार हो रहा है..."
दातार ने तब कहा कि कॉलेजियम की सिफारिशों को सरकार 3 से 4 साल तक लंबित नहीं रख सकती और सरकार को समय-सीमा का पालन करना होगा।
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"We are pursuing it": Supreme Court on government delay in clearing Collegium recommendations