जब मैं गाउन पहनती हूं तब मेरा कोई धर्म नहीं होता है: दीपिका राजवत, कठुआ बलात्कार पीडिता की अधिवक्ता

जब मैं गाउन पहनती हूं तब मेरा कोई धर्म नहीं होता है: दीपिका राजवत, कठुआ बलात्कार पीडिता की अधिवक्ता
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‘‘आपको माफ नहीं किया जाएगा’’

‘‘क्या आप हुर्रियत के साथ हाथ मिला रहे हैं?’’

ये कुछ टिप्पणियां हैं, जो अधिवक्ता दीपिका राजावत ने इस वर्ष के शुरू में कठुआ बलात्कार और हत्या के मामले को उठाने के लिए के बाद से कानूनी समाज के सदस्यों से प्राप्त की हैं। उनके सहयोगियों ने उन्हें देशद्रोही करार देते हुए उनसे किनारा कर लिया । दूसरे व्यक्तियों को भी बलात्कार और मौत की धमकी देने की हद तक चले गये हैं।

‘‘मैं एक सामाजिक बहिष्कार का सामना कर रही हूं .... उन्होंने मुझे अपने समाज से अलग कर दिया है जैसे कि मैंने कोई अपराध किया हो । उनके अनुसार, बलात्कार के आरोपियों की तरफ से पैरवी करना अपराध नहीं है और मैंने जो किया वह एक अपराध है ।’’

उन्होंने एक वर्तमान में हुई घटना को याद किया जिससे उनकी आंखों में आंसू आ गये।

‘‘मैं एक इंसान हूं, मेरी भी कुछ भावनाएं हैं । एक दिन मैं अदालत में एक नोटेरी पब्लिक के पास गई और उसे कुछ दस्तावेज सत्यापित करने के लिए कहा । उसने कहा, मैं इनको सत्यापित नहीं करूंगा । जिससे वास्तव में मुझे बहुत दुख हुआ तथा मैं अपनी आंखों में आंसू लिए कोर्ट से बाहर चली गई ।

उन्होंने मुझे बार रूम में जाने से भी रोक दिया । दूसरे दिन, एक अधिवक्ता द्वारा मेरी फेसबुक पर लिखा था ‘आपको माफ नहीं किया जाएगा ।’ यह वह तरीका है जिससे वे मेरी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाकर मुझे कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।’’

ये सिर्फ एक ही घटना नहीं है ; राजावत ने दावा किया कि उसे बदनाम करने के लिए बार के एक संगठित भाग द्वारा प्रयास किया गया है । उन्होंने बताया कि कैसे जम्मू बार एसोसिएशन के अध्यक्ष बीएस सलाथिया - एक वरिष्ठ अधिवक्ता जो अब नहीं रहे - ने भी प्रकरण को आगे बढाने से रोकने की कोशिश की ।

‘‘4 अप्रैल को कार्य निलम्बन के दौरान बार संघ के अध्यक्ष श्री सलाथिया ने मुझे न्यायालय में उपस्थिति देने से रोकने की कोशिश की । उनके द्वारा अपमानजनक भाषा का भी इस्तेमाल किया गया ।’’

मीडिया वर्ग के द्वारा उसे ‘‘वैम्पायर’’ (उसके अपने शब्द) के रूप में पुकारा गया तथा इस वाक्य ने उन्हे सबसे ज्यादा परेशान किया । उन्होंने इस मामले की कवरेज के लिए जी न्यूज के सुधीर चैधरी को विशेष रूप से कहा ।

‘‘उन्होंने मुझ पर उपरोक्त घटना का आरोप लगाते हुए ‘भारत तेरे टुकडे होंगे’ गिरोह का हिस्सा बताते हुए दोषी करार दिया। यह आरोप लगाया गया कि मैं जेएनयू में थी । तथ्यों की पुष्टि किये बिना अचानक मुझे एक राष्ट्र विरोधी के रूप में दर्शित किया गया था.....

.... जब मैंने वह घटना देखी तो मैं अपने होश खो बैठी । मैंने लगभग उम्मीद छोड दी। जब आप एक नकारात्मक सोच के बिना जीवन जीते हैं और आप इस तरह से बदनाम होते हैं तो आप अपना भरोसा खो देते हैं ।’’

इस कवरेज द्वारा आग में ईंधन डालने का काम किया गया; धमकियां और डर इतना बढ गया कि उन्होने अपने मोबाईल पर फोन उठाना तक बन्द कर दिया । तभी उन्होने बदला लेने का मन बना लिया ।

‘‘मुझे अफसोस है कि सुधीर चौधरी जो रिश्वतखोरी के मामले में तिहाड जेल में बन्द थे । क्या वह मेरी देशभक्ति और विश्वसनीयता पर सवाल उठाने के लिए खडा हो सकता है? मेरे द्वारा उसे कानूनी नोटिस दिये जाने के बाद भी वह कहता है ‘मैं आपको उजागर करता रहूंगा’ (हंसते हुए) । मैं यह नहीं समझ पाई कि ये किस प्रकार के पत्रकार हैं । उन्होंने कहा कि मैं तीन दिनों के लिए जेएनयू में था । श्री चौधरी ने कहा कि यदि आप इसे साबित करती हैं तो मैं अपनी वकालत का आत्मसमर्पण कर दूंगा ।

उसने मुझे और समाज की संरचना को नुकसान पहुंचाया है । उन्होंने सांप्रदायिक हिंसा पैदा करने का प्रयास किया है और हमें देशेद्रोही करार दिया है । उसने अपराध किया है और उससे बहुत गम्भीरता से निपटा जाएगा । मैंने पूर्व में ही एक कानूनी नोटिस भेजा है, आने वाले दिनों में मैं उसके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करने की योजना बना रही हूं । उन्होंने जो किया है, उसके लिए हम उन्हें नहीं छोडेंगे ।’’

जो वह सोचती हैं वह सही है और लगातार हो रही आलोचनाओं के बावजूद राजावत को ऐसा करने से रोका नहीं जाएगा ।

‘‘हर कोई अपने अभिमान को अपने दिल के करीब रखता है और जब मैं अपने उपर गर्व करती हूं तो मेरा दिल और तेजी से धडकता है । खासतौर पर तब जब मैं बेहद मुश्किल जीवन यापन कर रही हूं और समाज के कम विशेषाधिकार तबके से सम्बन्ध रखती हूं । यदि आप मुझे हानि से बचने के लिए रोकोगे और बच्ची के लिए नहीं लडने से रोकोगे तो मैं सिर्फ बिना किसी हानि की परवाह किये बच्ची के लिए लडूंगी।’’

चुनौती के अलावा, राजावत ने जरूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए अपने कर्तव्य की भावना और प्रतिबद्धता के साथ कार्य किया । इस मामले को उठाने के लिए वह एक प्रेरणादायी हैं ।

‘‘मैं एक अधिवक्ता हूं, और यह मेरा कर्तव्य है कि मैं ऐसे लोगों के लिए काम करूं, जब मैं गाउन पहनती हूं तब मेरा कोई धर्म नहीं होता है । श्रीमती इन्द्रा जयसिंह जो मेरी मार्गदर्शक हैं ने एक दिन कहा कि संविधान हमारी एक पवित्र पुस्तक है जिसने मुझे इस प्रकरण को लडने के लिए और आठ साल की बच्ची को न्याय दिलाने के लिए प्रेरित किया जिसका आरोप पत्र के अनुसार गैंगरेप किया गया और उसकी हत्या कर दी गई ।

...... मैं एक महिला हूं, इसलिए मैं एक बच्ची के दर्द को महसूस कर सकती हूं । आपको इन मामलों को उठाने के लिए संवेदनशील होना चाहिए । इंदिरा (जयसिंह) ने मुझे कहा कि दीपिका पहले तथ्यों से परिचित हो जाओ, दर्द महसूस करो तब आप वास्तव में पीडिता का प्रतिनिधित्व करोगी।’’

राजावत को पीडिता के परिवार का प्रतिनिधित्व करने के लिए काफी परेशानियों (गालियों) का सामना करना पडा साथ ही साथ उसे विभिन्न जगहों पर समर्थन भी मिला । वह वरिष्ठ अधिवक्ता इन्दिरा जयसिंह की आभारी हैं, जो इस मामले में सर्वाेच्च न्यायालय के सामने समर्थक के रूप में उपस्थित हो रही हैं ।

‘मुझे यह कहना होगा कि काफी संख्या में लोग मुझे धमकियां दे रहे हैं जो कि बहुत कम है। जो लोग मेरा समर्थन कर रहे हैं उनकी संख्या बहुत है । श्रीमती जयसिंह, राष्ट्रीय मीडिया और भारत के लोगों के समर्थन से मैं अपने आपको और सषक्त महसूस कर रही हूं । अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय ने भी हमें समर्थन दिया है और में पीडिता के माता पिता की तरफ से उनका शुक्रिया अदा करती हूं।’’

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद हालातों ने एक नया मोड ले लिया है ।

‘‘हमने उच्चतम न्यायालय के समक्ष सुरक्षा हेतु निवेदन किया और न्यायालय ने राज्य सरकार को हमारी सुरक्षा करने का निर्देश दिया । अब हम सुरक्षित महसूस कर रहे हैं । यहां पर मेरे और मेरी बेटी के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा अधिकारी उपलब्ध कराये गये हैं । आज तक मैं सुरक्षित महसूस करती हूं क्योंकि लडके हमारे सुरक्षा कर रहे हैं।’’

सुप्रीम कोर्ट में मांगी गई एक और राहत कठुआ से मुकदमे की सुनवाई का स्थानान्तरण है जहां राजावत का मानना है कि उक्त मामले में निष्पक्ष सुनवाई असंभव है ।

‘‘आपने परिस्थितियों को देखा है ; आपने देखा कि क्राईम ब्रांच की टीम को चार्जशीट प्रस्तुत करने से कैसे रोका गया । मुझे दृढतापूर्वक लगता है कि ऐसे हालातों में कठुआ में मुकदमा शान्तिपूर्वक नहीं चल सकता है । इस मुकदमे को ऐसी जगह पर स्थानान्तरित किया जाना चाहिए जहां पर पीडिता के माता पिता अपने आपको सुरक्षित एवं सुविधायुक्त महसूस कर सकें।’’

बेशक, हिन्दू एकता मंच नामक एक संगठन के साथ बार के एक भाग का जिक्र है, जिसने आठ साल की बच्ची के बलात्कार और हत्या को साम्प्रदायिक हिंसा के साथ दर्शाया है। आम भारतीय जनता के बीच विवशता के साथ मंच ने वकीलों के साथ बलात्कार के आरोपियों के साथ सहानुभूति व्यक्त की और मामले की छानबीन के लिए केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को नियुक्त किया गया ।

राजावत का दावा है कि इन विरोध प्रदर्शनों के पीछे राजनीतिक मकसद है । उनसे वह कहती हैं,

‘‘ मैं यह कहना चाहती हूं कि यदि आपकी राजनीतिक महत्वकांक्षाएं हैं तो कृपया उस तरफ ही रहें इस तरफ ना आएं । एक वकील के रूप में आपकी एक नयी भूमिका होती है, दोनों को एक साथ नहीं जोडा जा सकता । यदि आप ऐसा करते हैं तो आप दोनों के लिए अपमान योग्य हैं।’’

यदि आप शुरूआत से ही स्थिति की पडताल करते हैं तो आपको समझ आ जायेगा कि हालात कैसे अनुचित हो गये । मैंने उन वकीलों में से एक वकील का भाषण सुना है जो उक्त मामले की सीबीआई जांच की मांग में सबसे आगे थे । उन्होंने कहा है कि हिन्दू एकता मंच इस एकमात्र कारण के लिए बनाया गया था ।

अपनी प्रेरणा के रूप में राजावत कहती हैं,

‘‘मैं एक स्वाभिमानी हिन्दू हूं और मुझे अपनी राष्ट्रीयता पर गर्व है । मेरी कोई राजनीतिक आकांक्षा नहीं है । मेरा मकसद वंचितों के हितों की रक्षा के लिए दहाडता हुआ स्वर है ........

............एक सच्चा राष्ट्रवादी वही है जो किसी भी बात के लिए बिना किसी स्वार्थ के खडा हो। हमारा धर्म जरूरतमंद लोगों के लिए सहानुभूति तथा उनकी सुरक्षा करना सिखाता है । अगर असहाय लोगों के लिए लडना बुरी बात है तो शायद हम बुरे लोग हैं । मैं अपने धर्म को अपने बाजूओं में नहीं रखती; मैं इसे अपनी भावनाओं में रखती हूं और अपने काम के माध्यम से इसे दर्शाने की कोशिश करती हूं ।’’

यहां तक कि कठुआ मामले ने सरकार को घुटने के बल चलने वाले अध्यादेश को पारित करने के लिए उकसाया है, जिसने 12 वर्ष से कम उम्र के नाबालिगों से बलात्कार के लिए मौत की सजा की अनुमति दी गई है, राजावत को लगता है कि यह एक व्यवस्थित समस्या का समाधान नहीं है ।

‘‘अगर ऐसा होता तो, धनंजय चटर्जी की फांसी के बाद बलात्कार होना बन्द हो जाते । तब से कितने बलात्कार हुए हैं?’’

‘‘इस मुद्दे पर विधान काम नहीं करेगा । अगर ऐसा होता तो धनंजय चटर्जी की फांसी के बाद बलात्कार रूक जाते । तब से कितने बलात्कार हुए हैं? निर्भया और आठ साल की बच्ची की घटनाएं हुई हैं ।

भारत में जहां कुछ लोगों के कारण व्यवस्था दूषित हो गयी है, मुझे लगता है कि मृत्युदण्ड काम करेगा । मेरा मानना है कि प्रणाली बदलने की जरूरत है । हितैषी लोगों को अधिक कुशलता से काम करने की जरूरत है और सभी को अपना कर्तव्य निभाने की जरूरत है । प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और मुख्यमंत्रियों को भी अपनी भूमिका अदा करनी होती है।’’

और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बात करें तो राजावत को लगता है कि उन्हें इन सभी में सहनशीलता से भूमिका निभाने की जरूरत है ।

‘‘हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी एक भूमिका निभाते हैं उसे व्यर्थ में नहीं लेना चाहिए । जब वह सरकार चला रहे थे तो उनकी ही पार्टी के लोग बलात्कार के आरोपियों के बचाव में नारे लगा रहे थे, तिरंगे का दुरूपयोग कर रहे थे और एक केन्द्रीय मंत्री द्वारा बलात्कार के सम्बन्ध में एक शर्मनाक बयान दिया गया । अगर उन्हें एक अच्छा राष्ट्र बनाना है तो ऐसे लोगों को बहार निकाल देना चाहिए ।

वह केवल एक ही समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे हैं, उन्हें सभी का विश्वास प्राप्त करने की आवश्यकता है । अगर हम धार्मिक आधार पर लडते रहेंगे और बाबा साहेब अम्बेडकर जैसे लोगों की मूर्तियों को नुकसान पहुंचाते रहेंगे तो यह एक बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होगा । राष्ट्र के हितों के लिए मैं अनुरोध करती हूं कि ऐसे व्यक्तियों पर निष्पक्षता से नजर रखी जाये।’’

ऐसे समय में जहां लोगों के बीच मतभेद पैदा होते हैं और साम्प्रदायिक मतभेद को अपनी गंदी सोच में शामिल करते हैं, राजावत ने इस पर टिप्पणी की है:

‘‘मैं दृढतापूर्वक महसूस करती हूं कि यदि हम एक दूसरे के साथ खडे रहेंगे और अच्छे और बुरे के बीच अंतर सोचने लगेंगे तो अच्छे दिन आएंगे। सिर्फ नारे दिने से अच्छे दिन नहीं आयेंगे ; अच्छे दिन तब आएंगे जब राष्ट्र जागेगा।’’

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