दिल्ली की एक अदालत ने हाल ही में वकील महमूद प्राचा के बेबुनियाद और निराधार आरोपों की निंदा की कि दिल्ली दंगों के विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) अमित प्रसाद ने दिल्ली पुलिस से गुप्त तरीके से पैसे लिए थे।
कड़कड़डूमा अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) अमिताभ रावत ने कहा कि वह प्राचा द्वारा लगाए गए आरोपों में नहीं पड़ना चाहते हैं और प्रसाद चाहें तो इन आरोपों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं।
अदालत ने कहा, "हालांकि, अदालत अभियोजक के खिलाफ लगाए गए किसी भी सबूत के बिना निराधार आरोपों की निंदा करती है और खासकर जब यह मामले के गुण-दोष से संबंधित नहीं है।"
अदालत जब 26 अगस्त को दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में आरोपी तसलीम अहमद की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, तब प्राचा और प्रसाद ने एक-दूसरे पर चिल्लाना शुरू कर दिया और व्यक्तिगत आरोप लगाए।
इसके बाद अदालत ने मामले की सुनवाई स्थगित कर दी।
बाद में प्राचा ने मामले की जल्द सुनवाई के लिए आवेदन दिया। उक्त आवेदन में प्राचा ने कहा कि प्रसाद ने उन्हें (प्राचा) मामले में फंसाने की धमकी दी थी। प्राचा ने कहा कि उन्होंने एक निजी जांच कराई जिसमें पाया गया कि एसपीपी पुलिस से नकद में पैसे ले रहा था।
प्रसाद ने जवाब दाखिल करते हुए कहा कि प्राचा ने उनकी ईमानदारी पर सवाल उठाया है और उन्हें (प्राचा) अपने झूठे और गंभीर आरोपों को साबित करने के लिए सबूत पेश करने चाहिए।
प्रसाद ने कहा कि अभियोजन पक्ष को इस तरह से धमकाया नहीं जा सकता।
उन्होंने यह भी कहा कि प्राचा मामले में आरोपियों का प्रतिनिधित्व करना जारी नहीं रख सकते क्योंकि संरक्षित गवाहों में से एक 'स्मिथ' ने प्राचा का उल्लेख किया था। एसपीपी ने कहा कि इसलिए यह हितों का टकराव है क्योंकि प्राचा को गवाह के तौर पर तलब किया जा सकता है।
अदालत ने 25 नवंबर को मामले पर विचार किया और कहा कि वह इस बारे में चर्चा में नहीं पड़ सकती कि किसी मामले में अभियोजक या वकील के रूप में किसे नियुक्त किया गया था और यह आरोपी को तय करना है कि वह वकील के रूप में किसे चाहता है।
एएसजे रावत ने आगे कहा कि दिल्ली दंगों की साजिश मामले में कार्यवाही जारी रहनी चाहिए क्योंकि यह अन्य सभी आरोपियों और अभियोजन पक्ष के मामले को भी प्रभावित करती है।
इसलिए उन्होंने तसलीम अहमद की जमानत याचिका पर सुनवाई के लिए सात दिसंबर की तारीख तय की।
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