दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को देश के लिए समान नागरिक संहिता (यूसीसी) बनाने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग वाली याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया। [अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ]
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की खंडपीठ ने कहा कि वह विधायिका को इस संबंध में कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकती।
पीठ ने कहा, ''हम विधायिका को कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकते। सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस मुद्दे पर विचार कर चुका है और याचिकाओं को खारिज कर चुका है।"
अदालत ने आगे कहा कि विधि आयोग पहले से ही इस मामले को देख रहा है और याचिकाकर्ता अपने सुझावों के साथ विधि आयोग से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र हैं।
भारत के विधि आयोग ने जून में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर जनता, मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों और अन्य हितधारकों से विचार और सुझाव मांगे थे।
याचिकाकर्ता भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय और निगहत अब्बास, अंबर जैद सहित अन्य ने अपनी याचिकाएं वापस ले लीं।
उपाध्याय द्वारा 2019 में दायर याचिका में केंद्र सरकार को तीन महीने के भीतर समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के लिए एक न्यायिक आयोग या एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
याचिका में सभी धर्मों, संप्रदायों, विकसित देशों के नागरिक कानूनों और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों की सर्वोत्तम प्रथाओं पर विचार करने के बाद देश के लिए समान नागरिक संहिता की मांग की गई थी।
याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने याचिका खारिज करने की मांग की थी। कानून मंत्रालय ने कहा कि समान नागरिक संहिता को विभिन्न समुदायों को संचालित करने वाले विभिन्न पर्सनल लॉ के गहन अध्ययन के बाद ही पेश किया जा सकता है और अदालत के आदेशों के आधार पर तीन महीने में ऐसा नहीं किया जा सकता है।
विधि मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा कि संवैधानिक व्यवस्था के तहत केवल संसद ही इस तरह का काम कर सकती है और अदालत किसी विशेष कानून को लागू करने के लिए विधायिका को रिट जारी नहीं कर सकती।
न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय का आदेश स्पष्ट और सुस्पष्ट है और उच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट के आदेश से आगे नहीं जाएगा।
इसलिए पीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसके बाद याचिकाकर्ताओं ने याचिका वापस ले ली।
और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें
Delhi High Court refuses to entertain plea for directions to enact Uniform Civil Code