दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को आदेश दिया कि वह उस भूमि पर यथास्थिति बनाए रखे जहां 600 साल पुरानी अखुंदजी/अखुंजी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने आदेश दिया कि 12 फरवरी को सुनवाई की अगली तारीख तक यथास्थिति लागू रहेगी।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यथास्थिति केवल इस विशेष संपत्ति के संबंध में है और यह प्राधिकरण को अन्य अवैध संपत्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने से नहीं रोकेगा।
अदालत ने दिल्ली वक्फ बोर्ड की प्रबंध समिति की याचिका पर यह आदेश दिया।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील शाम ख्वाजा ने अदालत को बताया कि मस्जिद को बिना किसी विध्वंस का नोटिस दिए ध्वस्त कर दिया गया था और ढांचा लगभग 600-700 वर्षों से जमीन पर खड़ा था।
उन्होंने दलील दी कि इस प्रक्रिया में मदरसे और वहां बने कब्रिस्तान को भी ध्वस्त कर दिया गया और कुरान की प्रतियां भी क्षतिग्रस्त हो गईं।
डीडीए के स्थायी वकील संजय कत्याल ने आरोपों का खंडन किया और कहा कि सभी धार्मिक पुस्तकों को सावधानी से संभाला गया और अधिकारियों की हिरासत में हैं।
उन्हें वापस सौंप दिया जाएगा। डीडीए ने कहा कि यहां तक कि जब डीडीए ने कुछ मंदिरों को ध्वस्त किया, तब भी मूर्तियों का ध्यान रखा गया।
इसमें कहा गया है कि मस्जिद को धार्मिक समिति की सिफारिशों के अनुसार ध्वस्त कर दिया गया है और यह वन भूमि पर अतिक्रमण था।
न्यायालय ने दलीलों पर विचार किया और यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।
समाचार रिपोर्टों के अनुसार, महरौली में मस्जिद और बहरुल उलूम मदरसे को डीडीए ने 30 जनवरी की सुबह ध्वस्त कर दिया था।
स्थानीय लोगों का दावा है कि दिल्ली सल्तनत के काल में करीब 600-700 साल पहले मस्जिद का निर्माण हुआ था।
दिल्ली वक्फ बोर्ड ने कहा है कि धार्मिक समिति के पास किसी भी विध्वंस को आदेश देने या मंजूरी देने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।
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Delhi High Court orders status quo on land where 600-year-old mosque was demolished