मां के कामकाजी होने पर भी बच्चों का भरण-पोषण करना पिता का दायित्व है: जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय

न्यायमूर्ति संजय धर ने कहा कि मां के कामकाजी होने से पिता अपने बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो जाता।
Srinagar Bench, Jammu & Kashmir and Ladakh High Court
Srinagar Bench, Jammu & Kashmir and Ladakh High Court
Published on
3 min read

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा कि एक पिता का अपने नाबालिग बच्चों का भरण-पोषण करना कानूनी और नैतिक दायित्व है, भले ही उनकी मां एक कामकाजी महिला हो और उसकी अपनी आय हो।

न्यायमूर्ति संजय धर ने कहा कि मां के कामकाजी होने से पिता को अपने बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी से मुक्ति नहीं मिलती।

न्यायालय ने यह टिप्पणी उस मामले में की, जिसमें एक व्यक्ति ने दलील दी कि उसके पास अपने नाबालिग बच्चों को भरण-पोषण देने के लिए पर्याप्त आय नहीं है।

व्यक्ति ने यह भी तर्क दिया कि उसकी अलग रह रही पत्नी (और बच्चों की मां) एक कामकाजी महिला है, जिसके पास बच्चों की देखभाल के लिए पर्याप्त आय है।

हालांकि, न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया।

न्यायालय ने कहा, "प्रतिवादियों (नाबालिग बच्चों) का पिता होने के नाते याचिकाकर्ता का उनका भरण-पोषण करना कानूनी और नैतिक दायित्व है। यह सच है कि प्रतिवादियों की मां कामकाजी महिला हैं और उनकी अपनी आय है, लेकिन इससे प्रतिवादियों का पिता होने के नाते याचिकाकर्ता अपने बच्चों का भरण-पोषण करने की कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो जाता। इसलिए याचिकाकर्ता का यह तर्क कि चूंकि प्रतिवादियों की मां कमाती है, इसलिए उसे भरण-पोषण देने का निर्देश नहीं दिया जा सकता, निराधार है।"

Justice Sanjay Dhar
Justice Sanjay Dhar

न्यायालय के समक्ष याचिका उस व्यक्ति द्वारा दायर की गई थी जिसने अपने तीन बच्चों में से प्रत्येक के लिए 4,500 रुपये भरण-पोषण के रूप में भुगतान करने के मजिस्ट्रेट न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी।

व्यक्ति (याचिकाकर्ता) ने भरण-पोषण आदेश को चुनौती देने के बाद सत्र न्यायालय द्वारा खारिज किए जाने के बाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

उच्च न्यायालय के समक्ष, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसकी मासिक आय केवल 12,000 रुपये है और उसके लिए अपने बच्चों के लिए 13,500 रुपये भरण-पोषण के रूप में देना संभव नहीं है, खासकर जब उसे अपने बीमार माता-पिता का भी भरण-पोषण करना है।

उन्होंने आगे तर्क दिया कि बच्चों की मां एक सरकारी शिक्षिका हैं, जिन्हें अच्छा वेतन मिलता है। ऐसे में, बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी अकेले उस पर नहीं डाली जा सकती।

हालांकि, उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता ने यह दिखाने के लिए निचली अदालत के समक्ष कोई सबूत पेश नहीं किया है कि वह केवल 12,000 रुपये प्रति माह कमाता है।

दूसरी ओर, न्यायालय ने कहा कि यह निर्विवाद है कि वह एक योग्य इंजीनियर था, जिसने पहले विदेश में काम किया था।

न्यायालय इस दावे से भी सहमत नहीं था कि याचिकाकर्ता ने अपनी सारी कमाई अपनी पत्नी को दे दी थी, जिसने इसका इस्तेमाल कुछ संपत्ति खरीदने में किया। न्यायालय ने पाया कि यह दिखाने के लिए ट्रायल कोर्ट में कोई सबूत पेश नहीं किया गया।

उच्च न्यायालय ने कहा कि वह ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश किए गए सबूतों का फिर से मूल्यांकन नहीं कर सकता। इसलिए, उसने याचिका खारिज कर दी।

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता मीर मजीद बशीर पेश हुए।

[आदेश पढ़ें]

Attachment
PDF
Jammu_and_Kashmir_HC_order___July_29__2024.pdf
Preview

 और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें


Father has obligation to maintain children even if mother is working: Jammu and Kashmir High Court

Hindi Bar & Bench
hindi.barandbench.com