दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अमित शर्मा ने गुरुवार को गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत अलगाववादी नेता यासीन मलिक को मौत की सजा देने की मांग वाली राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की अपील पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।
एनआईए की अपील आज न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध की गई।
न्यायमूर्ति शर्मा द्वारा मामले से खुद को अलग करने के बाद न्यायालय ने मामले को 9 अगस्त को एक अलग पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का आदेश दिया।
गौरतलब है कि जस्टिस शर्मा ने हाल ही में 2020 के दिल्ली दंगों से जुड़ी जमानत याचिकाओं की सुनवाई से भी खुद को अलग कर लिया था।
हाईकोर्ट में रोस्टर में बदलाव के बाद जस्टिस सिंह और जस्टिस शर्मा की बेंच का गठन हाल ही में किया गया था।
एनआईए ने मलिक को आजीवन कारावास की सजा सुनाने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील की है, जिन्होंने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120बी, 121, 121ए और यूएपीए की धारा 13 और 15 के साथ आईपीसी की धारा 120बी के अलावा यूएपीए की धारा 17, 18, 20, 38 और 39 के तहत मामले में दोषी करार दिया था।
मई 2022 में विशेष एनआईए कोर्ट ने एक विस्तृत फैसले में कहा कि मलिक ने हिंसक रास्ता चुनकर सरकार के अच्छे इरादों को धोखा दिया है।
जज ने मलिक के इस तर्क को भी खारिज कर दिया था कि वह 1994 के बाद गांधीवादी बन गए थे।
एनआईए ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष मलिक के लिए मृत्युदंड की मांग भी की थी। हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने यह कहते हुए प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया कि मृत्युदंड केवल असाधारण मामलों में ही दिया जाना चाहिए "जहां अपराध अपनी प्रकृति से समाज की सामूहिक चेतना को झकझोरता है"।
इसके बाद एनआईए ने उच्च न्यायालय के समक्ष वर्तमान अपील दायर की।
29 मई को न्यायालय ने अपील पर नोटिस जारी किया था।
और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें