उच्चतम न्यायालय में रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी की अंतरिम जमानत की याचिका पर सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने बोलने की आजादी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े बिन्दुओं पर अनेक महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संरक्षण के मामले में अदालतों की भूमिका को लेकर काफी मुखर थे। इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय की प्रमुख मौखिक टिप्पणियां इस प्रकार हैं:
1. ‘आत्महत्या के लिये उकसाने’ की सीमा पर
विदित हो कि गोस्वामी इंटीरियर डिजायनर अन्वय नाइक को देय राशि का भुगतान करने में विफल रहने की वजह से उसे आत्महत्या के लिये उकसाने के आरोपी हैं। इस संबंध में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सवाल किये।
‘‘हम यह मान लेते हैं कि प्राथमिकी में लगाये गये आरोप पूरी तरह सही है लेकिन इसके बाद भी क्या धारा 306 के तहत मामला बनता है? इस तरह के मामले में जब कुछ बकाया राशि का भुगतान नहीं किया गया, क्या आत्महत्या का मतलब उकसाना होगा? क्या यह न्याय का उपहास नहीं होगा अगर इसके लिये किसी को जमानत से वंचित किया जाये?
न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि मृतक जिसे मानसिक दबाव में बताया जा रहा है और कुछ नहीं कहा,
‘‘धारा 306 के तहत उकसाने के लिये वास्तवित शह देना भी जरूरी है। क्या एक व्यक्ति को अगर दूसरे को धन देना है और वे आत्महत्या कर लेते हैं तो क्या यह उकसाना होगा?
2. संवैधानिक न्यायालय को स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए
न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने आगे टिप्पणी की,
‘‘अगर हम आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेंगे तो हम बर्बादी के रास्त पर आगे बढ़ेंगे। अगर मुझ पर छोड़े तो मैं चैनल नहीं देखूंगा और आपका वैचारिक मतभेद हो सकता है लेकिन संवैधानिक न्यायालय को ऐसी स्वतंत्रता की रक्षा करनी होगी।’’
सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने एक घटना याद की,
‘‘पश्चिम बंगाल में एक महिला को एक ट्वीट करने के कारण निशाना बनाया गया क्योंकि उसने लॉकडाउन लागू करने की आलोचना की थी। उसे धारा 41ए के तहत सम्मन जारी किया गया। क्या यह उचित है? ऐसा नहीं हो सकता।’’
उन्होंने कहा,
3. उच्च न्यायालय ने बुनियादी सवाल पर ही विचार नहीं किया
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने इस पहलू पर टिप्पणी की,
‘‘यहां, क्या आत्महत्या के लिये सक्रिय तरीके से उकसाया गया? क्या आप कह सकते हैं कि यह हिरासत में लेकर पूछताछ करने का मामला है? उच्च न्यायालय ने 56 पेज का आदेश लिखा लेकिन उसने बुनियादी सवाल पर विचार नहीं किया…क्या पहली नजर में मामला बनता था?’’’
4. अगर आप किसी चैनल को पसंद नहीं करते हैं तो उसे मत देखिये
न्यायालय ने गोस्वामी के लिये दी गयी यह दलील भी देखी कि रिपब्लिक टीवी की कुछ खबरों के मद्देनजर, जहां वह प्रधान संपादक हैं, राजनीत से प्रेरित होकर उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गयाउनके खिलाफ दर्ज मामला राजनीति से प्रेरित हैं।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की
‘‘पीड़ित (नाइक का परिवार) उसका हकदार है जो उचित और निष्पक्ष जांच के लिये हो। लेकिन साधारण सवाल है, अगर आपको एक चैनल पसंद नहीं है तो उसे मत देखिये। सरकार को इस सबको नजरअंदाज करने की जरूरत है और हम नहीं समझते कि चुनाव इन सब पर निर्भर करते हैं।
5. बोलने की स्वतंत्रता के मामले में सभी को जिम्मेदार होना चाहिए
महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी तर्कसंगत प्रतिबंध के दायरे में है
सिब्बल ने कहा, ‘‘अनुच्छेद 19 (1)(ए) पूरी तरह निर्बाध अधिकार नहीं है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने इस पर कहा,
‘‘जब मामला मुख्य न्यायाधीश के सामने था, मुख्य न्यायाधीश ने शालीन तरीके से कहा था कि इसकी जिम्मेदारी सभी पक्षों की है।’’
6. आतंकी मामला नहीं है
शासन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने भी कहा कि ऐसा लगता है कि गोस्वामी ने सत्र अदालत के सामने जमानत की सामान्य अर्जी दायर करने की बजोय खुद को माफिक आने वाली फोरम को चुना।
देसाई ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ताओं ने मजिस्ट्रेट के समक्ष जमानत की अर्जी दायर की और फिर इसे वापस ले लिया और इसके बाद अपनी पसंद की फोरम का चयन किया।’’
इस पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘तकनीकी आधार यह किसी को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करने का आधार नहीं हो सकता। यह आतंकवाद का मामला नहीं है।’’
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