

दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को लोकपाल के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन (CBI) को कैश-फॉर-क्वेरी मामले में TMC सांसद महुआ मोइत्रा के खिलाफ चार्जशीट दायर करने की इजाज़त दी गई थी।
जस्टिस अनिल क्षत्रपाल और हरीश वैद्यनाथन शंकर की डिवीजन बेंच ने मोइत्रा की लोकपाल की मंज़ूरी के खिलाफ याचिका को मंज़ूर कर लिया और फैसला सुनाया कि लोकपाल ने अपने आदेश में गलती की है।
कोर्ट ने लोकपाल से कहा कि वह लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार इस मामले की दोबारा जांच करे और एक महीने के अंदर नया फैसला ले।
लोकपाल की फुल बेंच ने लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 20(7)(a) के साथ धारा 23(1) के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए CBI को चार्जशीट दाखिल करने की इजाज़त दी और यह भी आदेश दिया कि उसकी एक कॉपी लोकपाल को सौंपी जाए।
यह मामला भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सांसद निशिकांत दुबे के आरोपों से जुड़ा है कि मोइत्रा ने संसदीय सवाल उठाने के बदले दुबई के बिजनेसमैन दर्शन हीरानंदानी से कैश और महंगे तोहफे लिए थे।
लोकपाल ने पहले CBI को धारा 20(3)(a) के तहत "सभी पहलुओं" की जांच करने और 6 महीने के अंदर रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया था।
अपनी याचिका में, मोइत्रा ने तर्क दिया कि लोकपाल का आदेश लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के विपरीत था और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन था, क्योंकि यह आदेश उनके विस्तृत लिखित और मौखिक सबमिशन पर विचार किए बिना पारित किया गया था।
मोइत्रा की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट निधेश गुप्ता ने कहा कि कानून से यह साफ है कि लोकपाल चार्जशीट दाखिल करने की मंजूरी तभी दे सकता है, जब उस व्यक्ति द्वारा दी गई टिप्पणियों पर विचार किया जाए, जिसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग की जा रही है।
उन्होंने कहा कि लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम की धारा 20(7)(a) जांच एजेंसी को क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देने का भी प्रावधान करती है, और यह तभी किया जा सकता है जब लोकपाल उस व्यक्ति द्वारा की गई टिप्पणियों पर विचार करे।
उन्होंने कहा, "कार्यवाही बंद करना तभी होना चाहिए जब आप मेरे सबूतों पर विचार करें... लोकपाल के आदेश में विचार देखें। मेरे सबूतों पर बिल्कुल भी विचार नहीं किया गया है। विचार में एक भी शब्द नहीं है।"
उन्होंने कहा कि मामले में जांच पूरी हो चुकी है और लोकपाल द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया में साफ तौर पर कमी है।
उन्होंने कहा, "ऐसा लगता है जैसे लोकपाल कोई और कानून पढ़ रहा है। कानून काला कहता है और वह [लोकपाल] सफेद देखता है।"
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) एसवी राजू CBI की ओर से पेश हुए और हाई कोर्ट को बताया कि लोकपाल का आदेश कानून के अनुसार और अत्यधिक सावधानी बरतते हुए पारित किया गया था।
राजू ने आज आदेश का बचाव करते हुए तर्क दिया कि लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 आरोपी को बहुत सीमित अधिकार देता है और वे केवल लोकपाल द्वारा किसी एजेंसी को चार्जशीट दाखिल करने की मंजूरी देने से पहले अपनी टिप्पणियां प्रस्तुत करने के हकदार हैं।
उन्होंने कहा कि मौखिक सुनवाई की कोई आवश्यकता नहीं है।
राजू ने कहा, "मंजूरी से पहले, यह कानून की स्थापित स्थिति है कि आरोपी को सुनने की आवश्यकता नहीं है। कानून में यह प्रावधान नहीं है कि मौखिक सुनवाई बिल्कुल आवश्यक है। मौखिक तर्क सुने नहीं जाते... टिप्पणियां मांगी गईं, और बस इतना ही जरूरी है।"
वरिष्ठ अधिवक्ता निधेश गुप्ता, अधिवक्ता समुंद्र सारंगी, सलोनी जैन, पन्या गुप्ता, नव्या नंदा, पंछी अग्रवाल, जिमुत बरन महापात्रा, गुर सिमर प्रीत सिंह, बिक्रम द्विवेदी और विरती गुजराल महुआ मोइत्रा की ओर से पेश हुए।
एएसजी एसवी राजू ने वकील रिपुदमन भारद्वाज, कुशाग्र कुमार और अमित कुमार राणा के साथ सीबीआई का प्रतिनिधित्व किया।
वरिष्ठ अधिवक्ता जीवेश नागरथ ने अधिवक्ता ऋषि कुमार अवस्थी, अमित वी अवस्थी, पीयूष वत्स, रितु अरोरा, अविनाश अंकित, राहुल कुमार गुप्ता और प्रभाकर ठाकुर के साथ मामले में शिकायतकर्ता निशिकांत दुबे का प्रतिनिधित्व किया।
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Delhi High Court sets aside Lokpal sanction for CBI chargesheet against Mahua Moitra