Justice SM Subramaniam
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न्यायपालिका भी भ्रष्ट आचरण से अछूती नहीं है, न्यायिक विभागों का आकस्मिक दौरा और निरीक्षण जरूरी: मद्रास हाईकोर्ट

न्यायिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार कभी सहन नही किया जा सकता। देश के कई पूर्व मुख्य न्यायाधीशो ने खेद व्यक्त किया कि न्यायपालिका भी भ्रष्ट आचरण से अछूती नहीं है

तिरूनेल्वेली रजिस्ट्रार को रिश्वत लेने के कारण हटाये जाने की पुष्टि करते हुये मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एसएम सुब्रमणियन ने हाल ही में न्यायपालिक में भ्रष्टाचार के खिलाफ चौकसी बरतने के लिये न्यायिक विभागों में सतर्कता के उपाय बढ़ाने पर जोर दिया है।

सार्वजनिक सेवाओं में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार व्याप्त का जिक्र करते हुये न्यायाधीश ने इस पर दुख व्यक्त किया कि इस बीमारी ने कर दाताओं के पैसे की कीमत पर किस तरह से देश के विकास को प्रभावित किया। उन्होंने इस तथ्य को स्वीकार किया कि न्यायपालिका भी इस बुराई से अछूती नहीं बची है।

न्यायमूर्ति सुब्रमणिनयन ने पांच अक्टूबर के अपने आदेश में कहा,

‘‘ सरकारी विभागों के लोक प्रशासन में भ्रष्टाचार के बारे में टिप्पणी करते हुये यह न्यायालय इस तथ्य की पुष्टि करती है कि न्यायपालिका भी भ्रष्ट आचरण से अछूती नहीं है। इस न्यायालय का अंत:करण इसकी अनुमति नहीं देगा, यदि न्यायालय अदालत परिसरों और न्यायिक विभागों में भ्रष्ट आचरण बढ़ने का जिक्र करने मे असफल रहा। यह याद दिलाना महत्वपूर्ण है कि देश के कई पूर्व प्रधान न्यायाधीशों ने इस बात पर खेद व्यक्त किया था कि न्यायपालिका भी भ्रष्ट आचरण से अछूती नहीं बची है।’’
मद्रास उच्च न्यायालय

न्यायालय ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि न्यायिक भ्रष्टाचार विशेष रूप से क्यों चिंता का कारण है। न्यायमूर्ति सुब्रमणियन ने कहा,

‘‘न्याय के लिये सभी नागरिकों के साथ एक समान आचरण और न्याय प्रदान करने वाली व्यवस्था में तारतम्युता जरूरी है। न्यायिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार कभी भी सहन नहीं किया जा सकता। यह सार्वजनिक विभागों से ज्यादा खतरनाक है। न्यायिक उपाय आम आदमी के लिये अंतिम रास्ता होने की वजह से इसके लिये संविधान के दर्शन और मूल्यों के अनुरूप प्रभावी, कुशल और निष्पक्ष न्यायिक व्यवस्था का लक्ष्य हासिल करना होगा। न्यायिक व्यवस्था में नागरिकों का विश्वास बनाना सांविधानिक अनिवार्यता है। नागरिकों के मन में किसी भी प्रकार का संदेह सांविधानिक सिद्धांतों के विनाश की ओर ले जायेगा।’’

न्यायाधीश ने न्यायपालिका भ्रष्टाचार खत्म करने के लिये वर्तमान सतर्कता व्यव्स्था को अपर्याप्त बताते हुये इसके सतर्कता प्रकोष्ठ को अधिक सुदृढ़ बनाने पर जोर दिया और साथ ही यह सुझाव दिया कि न्यायिक विभागों और परिसरों का औचक दौरा और निरीक्षण जरूरी है।’’

हालांकि, न्यायमूर्ति सुब्रमणियन ने इस बात पर खेद व्यक्त किया कि इस संबंध मे अभी प्रभावी उपाय किये जाने हैं और कहा,

‘‘ दुर्भाग्य है कि न्यायिक व्यवस्था में कई तरह के भ्रष्ट आचरण से निबटने के लिये अभी भी प्रभावी उपाय करने हैं। फैसले में टिप्पणी करना इस मामले का एक पहलू है लेकिन यदि इन निष्कर्षो को प्रशासन सही भावना से ले तो अकेले ही हम अपने इस महान राष्ट्र का विकास कर सकते हैं। अत: प्रशासक में मुद्दों को सही तरीके से लेने का विवेक और भावना होनी चाहिए और प्रभावी तथा कुशल व्यवस्था के विकास के लिये संजीदगी से प्रयास करने होंगे।’’

न्यायालय ने अपने फैसले में इस बात पर भी जोर दिया कि:

  • सरकार से भ्रष्टाचार निरोधक प्रकोष्ठों को अधिक सुदृढ़ बनाने की अपेक्षा की जाती है

  • सार्वजनिक कार्यालयों में समय समय पर और आकस्मिक छापे और निरीक्षण करने की आवश्यकता है

  • सेवा नियमों के अनुसार विभाग के कर्मचारियों की संपत्तियों और देनदारियों को नियमित जांच होनी चाहिए। न्यायालय ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि उच्च प्राधिकारियों ने कई विभागों में सही तरीके से ऐसा नहीं किया है

  • लोक सेवकों की आय से अधिक संपत्ति की नियमित निगरानी होनी चाहिए

  • लोक सेवकों द्वारा उपलब्ध कराई गयी जानकारी की सत्यता को उचित तरीके से परखा जाना चाहिए

  • सभी सरकारी कार्यालयों के लिये उचित निर्देश जारी किये जाने चाहिए। सरकार के सक्षम प्राधिकारियों को भ्रष्टाचार निरोधक क्षेत्र के विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए और सार्वजनिक विभागों में भ्रष्ट आचरण के मामलों से निबटने के लिये व्यापक निर्देश जारी किये जाने चाहिए

  • ऐसी जानकारी के लिये लाभकारी योजनाओं की घोषणा पर्याप्त नहीं है। लाभकारी योजनायें गरीबों और उपेक्षित वर्ग तक बगैर किसी परेशानी के पहुंचनी चाहिए

न्यायाधीश ने निर्देश दिया कि इस फैसले की प्रति राज्य के मुख्य सचिव और उच्च न्यायलय के रजिस्ट्रार जनरल को भेजी जाये ताकि इस न्यायालय द्वारा की गयी टिप्पणियों पर अमल के उपाय किये जा सकें

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Judiciary also not exempt from corrupt practices: Madras HC calls for frequent surprise visits, inspection in the judicial departments

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