न्यायाधीशो की सोच प्रभावित करने के लिये मीडिया चर्चा करता है: प्रशांत भूषण अवमानना मामला 2009 मे अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल

न्यायालय इस मामले में अब 4 नवंबर को सुनवाई करेगी। इस दौरान, मामले से जुड़े सभी वकीलों से अपेक्षा की गयी है कि संविधान पीठ को भेजे जाने वाले सवालों पर आपस में चर्चा करके उन्हें अंतिम रूप देंगे।
Attorney General KK Venugopal
Attorney General KK Venugopal

अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ 2009 के अवमानना मामले की सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने न्यायालय के विचाराधीन मामलों पर मीडिया में बहस से इस संस्थान को हो रहे नुकसान के प्रति चिंता व्यक्त की।

न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ के समक्ष आज इस मामले की सुनवाई हुयी।

अटानी जनरल वेणुगोपाल ने कहा कि चूंकि यह पीठ इस मामले से उभर रहे बड़े सवालों पर गौर कर रही है, न्यायालय के विचाराधीन मामलों पर होने वाली टिप्पणियों पर भी विचार करने की जरूरत है।

‘‘विचाराधीन मुद्दे पर भी विचार की जरूरत है। आज इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया परिचर्चा करके न्यायाधीशों की सोच प्रभावित करने का प्रयास कर रहे है। यह इस संस्थान को बहुत नुकसान पहुंचा रहा है।’’
एजी केके वेणुगोपाल

उन्होंने कहा कि आज विचाराधीन मामलों पर टिप्पणियां व्यापक रूप ले चुकी हैं। उन्होंने कहा,

‘‘जब मैं टीवी देखता हूं और जमानत की अर्जी सुनवाई के लिये आ रही है तो टीवी पर आरोपी और किसी अन्य के बीच बातचीत फ्लैश हो रही है। यह आरोपी को नुकसान पहुंचा रही होगी और जमानत की अर्जी पर सुनवाई के दौरान यह आता है।यह न्यायालय की अवमानना भी है।’’

इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि विचाराधीन मामले में टिप्पणियों के सवाल के एक हिस्से पर सहारा मामले में विचार किया हुआ था।

धवन ने कहा, ‘‘दूसरा पहलू यूरोपीय न्यायालय के फैसले की ओर ले जाता है जिसमे इस पर विचार हुआ कि अदालत ने जानना चाहा, ‘‘क्या प्रेस से कहा जा सकता है कि वह स्काईलॉक मामले को रिपोर्ट नहीं करे?’’

न्यायालय इस मामले में अब 4 नवंबर को सुनवाई करेगा। इस दौरान इससे जुड़े सभी वकीलों से अपेक्षा की गयी है कि वे संविधान पीठ को भेजे जाने वाले सवालों पर आपस में चर्चा करके उन्हें अंतिम रूप देंगे।

रजिस्ट्री से भी कहा गया है कि वह न्याय मित्र और वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे के संपर्क करके उनसे चार नवंबर को उपस्थित होने के लिये कहे।

यह मामला शुरू में न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष था। इस मामले से उभर रहे बड़े सवालों और सुनवाई में काफी लंबा समय लगने के तथ्यों के मद्देनजर न्यायमूर्ति मिश्रा की पीठ ने इसे किसी अन्य उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था। इस बारे में 25 अगस्त को आदेश पारित किया गया था जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के पद से न्यायमूर्ति मिश्रा के सेवानिवृत्त होने में कुछ ही दिन शेष थे।

न्यायालय ने इस मामले से जुड़े वकीलों से निम्न सवालों पर विचार करने के लिये कहा था

  1. अगर किसी न्यायाधीश विशेष द्वारा भ्रष्टाचार के बारे में सार्वजनिक बयान दिया जाता है तो ऐसा किन परिस्थितियों और किन आधार पर दिया जा सकता है और इस संबंध में, यदि कोई हो, क्या सावधानी बरती जा सकती है?

  2. अगर किसी पीठासीन न्यायाधीश के बारे में आरोप हो तो ऐसे मामलों में शिकायत के लिये क्या प्रक्रिया अपनानी होगी?

  3. क्या सेवानिवृत्त न्यायाधीश के खिलाफ सार्वजनिक रूप से भ्रष्टाचार का कोई आरोप लगाया जा सकता है और इससे न्यायपालिका के प्रति आम जनता के विश्वास कम हो और क्या यह न्यायालय की अवमानना कानून के तहत दंडनीय होगा?

न्यायालय की अवमानना का यह मामला 2009 का है जब प्रशांत भूषण ने तहलका पत्रिका को दिये इंटरव्यू में न्यायपालिका में कथित भ्रष्टाचार के बारे में वक्तव्य दिये थे।

हरीश साल्वे द्वारा इस बारे में शिकायत किये जाने पर उच्चतम न्यायालय ने इसमें स्वत: नोटिस जारी किया था। न्यायाधीशों की तीन सदस्यीय पीठ ने 10 नवंबर, 2010 को अवमानना याचिका को विचार योग्य बताया था।

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Media carries discussions seeking to influence the thinking of judges: AG KK Venugopal in 2009 Prashant Bhushan contempt case

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