‘मॉरल पोलिसिंग’ आंतरिक शिकायत समिति का काम नहीं, व्यक्तिगत आचरण पर टिप्पणी नहीं कर सकती: दिल्ली उच्च न्यायालय

न्यायालय ने कहा कि आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) का ऐसा आचरण कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण (रोकथाम) कानून के दायरे से बाहर है।
Justice Prathiba M Singh
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि यौन उत्पीड़न का कोई मामला नहीं बनने के निष्कर्ष पर पहुंचने वाली आईसीसी को पक्षकारों के निजी आचरण पर टिप्पणी करने या ‘अनुचित आचरण’ में लिप्त होने के लिये उनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश करने का अधिकार नहीं है

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह की एकल पीठ ने कहा,

‘‘मॉरल पोलिसिंग करना प्रबंधन या आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) का काम नहीं है। वयस्कों के बीच परस्पर सहमति से किसी भी प्रकार के संबंध प्रबंधन या आंतरिक शिकायत समिति की चिंता का विषय नहीं है जब तक ऐसे संबंध संस्था के काम और अनुशासन को प्रभावित नहीं करते हों और यह कर्मचारियों पर लागू होने वाले नियमों तथा आचार संहिता के विपरीत नहीं है।’’

न्यायालय ने आईसीसी के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार कर रहा था। समिति ने याचिकाकर्ता, शिकायतकर्ता और आरोपी, के खिलाफ उचित कार्रवाई करने की सक्षम प्राधिकारी से सिफारिश की थी।

आंतरिक शिकायत समिति ने अपनी जांच में पाया था कि संबंधित पक्षों के बीच परस्पर सहमति के रिश्ते थे और ऐसी स्थिति में उनका व्यवहार नियोक्ता बैंक के कर्मचारियों के रूप में अनुचित और अशोभनीय था।

इसके बाद, सेवा नियमों के तहत याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप पत्र जारी किया गया था।

याचिकाकर्ता की दलील थी कि जांच के बाद जब मामला बंद हो गया तो फिर आंतरिक शिकायत समिति की सिफारिश और टिप्पणियां कार्यस्थल पर महिलाओं का उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और समाधान) कानून, 2013 की धारा 13(2) के खिलाफ थीं।

न्यायालय याचिकाकर्ता की इस दलील से सहमत था और उसका मत था कि पेश मामले में आंतरिक शिकायत समिति इस कानून की धारा 13(2) के प्रावधान को लांघ गयी।

न्यायालय ने कहा कि शिकायतकर्ता के खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश स्पष्ट रूप से आईसीसी के अधिकार क्षेत्र से बाहर करार थी।

न्यायालय ने कहा,

‘‘ यौन उत्पीड़न की शिकायतें शुरू में बहुत अनिच्छा से दायर की जाती हैं। इस कानून के दायरे में रहते हुये ही आईसीसी को ऐसी शिकायतों की जांच कर अपनी रिपोर्ट देनी होती है। अगर यौन उत्पीड़न का मामला नही बनता है तो आईसीसी सिर्फ यही निष्कर्ष दे सकती है कि कोई कार्रवाई करने की जरूरत नहीं है। इस कानून के प्रावधानों में यह नही कहा गया है कि कोई कार्रवाई करने की आवश्यकता नहीं और शिकायत अस्वीकार करने के नतीजे पर पहुंचने के बाद आईसीसी पक्षकारों पर अनुचित आचरण में संलिप्त होने के आधार पर उचित कार्रवाई का निर्देश दे सकती हैं।’’

न्यायालय ने कहा कि आईसीसी को पक्षकारों के निजी आचरा पर टिप्पणियां करने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि उसका अधिकार क्षेत्र यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच करने और क्या शिकायत बनती है या नहीं तक ही सीमित है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि तद्नुसार पक्षकारों के आचरण पर टिप्पणियां करने ओर उनके खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश तक का आईसीसी का आदेश निरस्त किया जाता है।

न्यायालय ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता पदोन्नति की पात्र हो गयी है, अत: आरोप पत्र इसमें बाधक नही होगा।

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता वृन्दा ग्रोवर और अंकुर सूद पेश हुये।

नियोक्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता राजेश कुमार गौतम, अनंत गौतम और निपुन शर्मा ने किया।

अधिवक्ता वरूण मिश्रा आरोपी की ओर से पेश हुये

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Moral Policing not Internal Complaints Committee's job, can't make comments on personal conduct: Delhi High Court

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