उच्चतम न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका दावा किया गया है कि भारत में अधिकांश सांप्रदायिक टकराव सोशल मीडिया के कारण हुये हैं और नफरत फैलाने वाले भाषणों के प्रचार प्रसार के लिये सोशल मीडिया घरानों को सीधे जिम्मेदार ठहराने का अनुरोध किया गया है।
अधिवक्ता विनीत जिंदल द्वारा एडवोकेट ऑन रिकार्ड राज किशोर चौधरी के माध्यम से दायर इस याचिका में कहा गया है कि भारत में अधिकांश सांप्रदायिक टकराव सोशल मीडिया पर अपलोड की गयी पोस्ट से भड़के हैं।
याचिका में फेसबुक, ट्विटर, व्हाटसऐप और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्रतिष्ठानों को नफरत वाले बोल फैलाने के लिये ‘सीधे जिम्मेदार’ ठहराने का अनुरोध किया गया है। याचिका में यह भी कहा गया है कि फर्जी खबरें और नफरत वाले भाषणों का प्रचार प्रसार करने वाले सोशल मीडिया प्रतिष्ठानों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के लिये अलग से कानून बनाने का भी अनुरोध किया गया है। याचिका में ट्विटर इंडिया और फेसबुक इंडिया को प्रतिवादी बनाया गया है।
याचिका में केन्द्र सरकार और फेसबुक तथा ट्विटर जैसी सोशल मीडिया वेबसाइट को ऐसी व्यवस्था विकसित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है जिससे नफरत वाले भाषण और फर्जी खबरें स्वत: ही उसके प्लेटफार्म से हट जायें।
याचिका में ऐसी अनेक सोशल मीडिया पोस्ट को उद्धृत किया गया है जिन्होंने सांप्रदायिक टकराव कराया। इसमें उत्तर पूर्वी दिल्ली से लेकर पुणे में 2014 की सांप्रदायिक हिंसा जिसमे हिन्दू राजाओं के बारे में कतिपय अपमानजनक पोस्ट शामिल है।
याचिका के अनुसार, ‘‘2013 के मुजफ्फरनगर दंगे, एक हिन्दू राष्ट्रवादी विधिनिर्माता द्वारा लिंचिग का वीडियो अपलोड किया गया जिसने इस आग को और हवा दी। बाद में पता चला कि यह वीडियो पाकिस्तान से था जिसे भारत का बताया गया था।’’
याचिका में संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में प्रदत्त बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार और अनुच्छेद 19 (2) के तहत इन अधिकार पर उचित प्रतिबंध लगाये जाने के प्रावधान को विशेषरूप से केन्द्र में रखा गया है।
याचिका के अनुसार, ‘‘भारत के लिये यह लाभकारी होगा कि वह दूसरे देशों में बोलने की आजादी और सोशल मीडिया प्लेटफार्म की जवाबदेही के बीच संतुलन के लिये बनाये गये दिशानिर्देशो को लागू करने के मानकों पर गौर करे।’’
याचिका में कहा गया है कि भारत जैसे देश ‘सांप्रदायिक तनाव वाले हैं’ और इनमें भड़काने वाली किसी पोस्ट के खिलाफ कार्रवाई किये जाने तक यह जंगल में आग की तरह नुकसान पहुंचा सकता है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि भारत में सांप्रदायिक हिंसा भड़काने में सोशल मीडिया बहुत ही नुकसानदेह भूमिका निभा रहा है और अब इसका दुरुपयोग रोकने का समय आ गया है।
याचिका में सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स के जरिये नफरत के भाषण और फर्जी खबरें फैलाने के लिये दर्ज प्रत्येक मामले की जांच के लिये विशेषज्ञ जांच अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है।
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