उच्चतम न्यायालय ने स्कूलों में स्कूल फीस 20 प्रतिशत कम करने का प्रस्ताव देने के कलकत्ता उच्च न्यायालय के निर्देश के खिलाफ 145 स्कूलों के संगठन की याचिका पर आज नोटिस जारी किया।
उच्च न्यायालय ने इस संबंध में 13 अक्टूबर को आदेश पारित किया था। उच्च न्यायालय द्वारा पश्चिम बंगाल में निजी स्कूलों को दिये गये निर्देशों में से निम्नलिखित प्रमुख हैं:
वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान फीस में वृद्धि नहीं
अप्रैल, 2020 से सामान्य कामकाज के लिये स्कूल फिर से खुलने के महीने तक फीस में कम से कम 20 प्रतिशत की कटौती
जिन सुविधाओं का उपयोग नहीं किया उनके गैर जरूरी शुल्क की अनुमति नहीं होगी।
सत्र के शुल्क की अनुमति लेकिन यह अधिकतम 80 प्रतिशत ही होगा
वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये खर्चो से पांच प्रतिशत अधिक राजस्व की अनुमति होगी। अगर इस वजह से स्कूल को घाटा होता है तो उसकी भरपाई वित्तीय वर्ष 2021-23 के दौरान की जा सकती है बशर्ते स्कूल का सामान्य कामकाज 31 मार्च, 2021 तक शुरू हो जाये।
वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान शिक्षकों या किसी अन्य कर्मचारियों के वेतन में कोई वृद्धि नहीं होगी। अगर वेतन परिवर्तन की वजह से स्कूल शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों को उच्च वेतनमान और बकाया राशि का भुगतान करता है तो इस शैक्षणिक वर्ष में इसे फीस से वसूला नहीं जा सकता है।
ऐसे अभिभावक जिनकी वित्तीय स्थिति फीस में कटौती की दरकार नहीं करती है उनसे अनुरोध किया गया है कि वे कटौती का लाभ नहीं उठायें
प्रत्येक मामले के आधार पर स्कूलों उन अभिभावकों के लिये और कटौती या छूट देने का निर्देश दिया गया है जो समय से भुगतान करने की स्थिति में नहीं है। जब भी कोई अभिभावक कटौती के लिये आवेदन करेगा तो उसे अपने आवेदन के साथ अपना वित्तीय विवरण संलग्न करना होगा।
उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ के समक्ष अपीलकर्ता स्कूलों की ओर से बहस करते हुये वरिष्ठ अधिवक्ता डा अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि उच्च न्यायालय ने इस मामल में ‘सुपर नियामक प्राधिकरण’ जैसा काम किया है ओर उसने इस तथ्य को नजरअंदाज किया कि लॉकडाउन के दौरान स्कूलों को भी खर्च करना पड़ा है। उन्होंने दलील दी,
‘‘लॉकडाउन के दौरान स्कूलों को भी खर्चो का सामना करना पड़ रहा है। यह आदेश उन पक्षों पर भी बाध्यकारी बना दिया गया है जिन्हें सुना ही नहीं गया। सरकार ने आनुपातिक शुल्क साझा करने की अनुमति दी थी लेकिन उच्च न्यायालय ने दरकिनार कर दिया जबकि इस बारे में कोई शिकायत नहीं थी। उच्च न्यायालय ने निजी सकूलो को फीसमे कटौती करने का निर्देश देकर संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण है ओर उसने ‘सुपर नियामक प्राधिकरण’ की तरह काम किया है।’’
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में शिकायतो के समाधान के लिये एक समिति गठित करने का भी निदे्रश दिया। इस समिति में वरिष्ठ अधिवक्ता तिलोक बोस, हेरीटेज स्कूल की प्रिसिपल या हेडमिस्ट्रेस और अधिवक्ता प्रियंका अग्रवाल को शामिल किया गया है।
सिंघवी ने कहा कि यह समिति बनाने का, जिसमे याचिकाकर्ता के वकील को भी शामिल किया गया है, उच्च न्यायालय का निर्देश स्वीकार्य ही नही है।
अंतत: उच्चतम न्यायालय ने समिति गठन के निर्देश पर रोक लगा दी।
न्यायमूर्ति शाह ने जानना चाहा कि महामारी के दौरान स्कूल बंद होने की वजह से स्कूल प्रयोगशाला या दूसरी गतिविधियों के शुल्क कैसे ले सकते हैं।
साउथ प्वाइंट एजूकेशन सोसायटी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि उच्च न्यायालय इस तरह का आदेश पारित नहीं कर सकता। उन्होंने कहा,
‘‘हम ऐसी सैकड़ों संस्थानों को जानते हैं जिनके पास कोई मदद नहीं है। न्यायालय के पास इस तरह का सभी के लिये आदेश पारित करने से पहले सारे तथ्य नहीं थे।’’
वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने भी कहा कि उच्च न्यायालय ने यह ‘अजीबो गरीब फैसला लिया है और आदेश में फीस में 20 प्रतिशत कटौती के किसी आधार का उल्लेख नहीं है। उन्होंने कहा,
‘‘ न्यायालय ने सनक भरा निर्णय लिया है क्योंकि उसके पास कोई साक्ष्य नहीं थे। उच्चतम न्यायालय आदेश में किसी आंकड़े की अनुमति नहीं देता जब तक वह न्यायोचित नहीं हो। फीस में 20 प्रतिशत की कटौती की अनुमति कैसे दी जा सकती है? मैं एक ऐसे स्कूल की ओर से पेश हो रहा हूं जो सिर्फ क्राफ्ट के माध्यम से शिक्षा प्रदान करता है लेकिन उच्च न्यायालय के आदेश के मुताबिक यह गैर जरूरी है और इसलिए फीस का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए।’’
पीठ ने कहा कि इस मामले में विस्तार से सुनवाई की आवश्यकता है। इसके साथ ही न्यायालय ने अपील पर नोटिस जारी किया।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के 8 से 16 तक के निर्देशों पर रोक लगा दी गयी है।
न्यायमूर्ति संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति मौशुमी भट्टाचार्य की पीठ ने कुछ ठोस कानूनी सवालों पर विस्तार से टिप्पणियां की हैं। इन सवालों में यह भी शामिल है कि क्या धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित संस्थाओं की शुल्क व्यवस्था में न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है।
स्कूल के खातो को मंगाने की न्यायालय की कवायद क्या स्कूल की निजता का हनन है, इस सवाल पर उच्च न्यायालय ने कहा कि निजता का अधिकार असीमिति नहीं है और संविधान के अनुच्छेद 19 और 30 में प्रदत्त अधिकार का इस्तेमाल लाभ अर्जित करने के लिये नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि ऐसे स्कूलों द्वारा ली जाने वाली फीस के मामले में उस समय तक अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि लाभ अर्जित करने के बारे में अकाट्य साक्ष्य नहीं हों। अगर कोई अन्य कानून या शासकीय नियम नहीं हैं तो दिनदहाड़े लूट को भी दिखाना पड़ेगा।
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