उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने मंगलवार को राज्य के मुख्यमंत्री टीएस रावत के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की सीबीआई जांच का आदेश दिया।
न्यायालय ने इसके साथ ही मुख्यमंत्री के बारे में इन आरोपों से संबंधित वीडियो सार्वजनिक करने के मामले में पत्रकार उमेश शर्मा के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने के लिये दायर याचिका स्वीकार कर ली।
न्यायमूर्ति रवीन्द्र मैथानी ने अपने फैसले में कहा,
इस साल जून में उमेश शर्मा ने एक वीडियो जारी कर आरोप लगाया था कि अमृतेश सिंह चौहान नाम के व्यक्ति ने झारखंड में गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति के लिये मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह राव को 25 लाख रूपए की रिश्वत दी थी। रावत उस समय 2016 में भाजपा के झारखंड राज्य के प्रभारी थे।
इसमें यह भी दावा किया गया था कि यह रकम डा हरेन्द्र सिंह रावत और उनकी पत्नी सविता रावत के खातों सहित कई खातों में जमा करायी गयी थी। शर्मा ने जून, 2020 के वीडियो में दावा किया कि सविता रावत मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह की बहन हैं ओर डा हरेन्द्र सिंह राव उनके बहनोई हैं।
डा एचएस रावत ने सात जुलाई, 2020 को पुलिस को एक पत्र लिखकर शर्मा द्वारा अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लगाये गये आरोपों की जांच का अनुरोध किया। पुलिस ने 30 जुलाई को अपनी जांच रिपोर्ट तैयार की।
डा रावत ने 31 जुलाई को एक आरटीआई अर्जी दायर कर अपने अनुरोध की स्थिति के बारे में जानकारी मांगी। उसी दिन 30 जुलाई की रिपोर्ट के आधार पर देहरादून थाने मे शर्मा के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 265 दर्ज की गयी।
इस प्रथम सूचना रिपोर्ट में उमेश शर्मा द्वारा अपने वीडियो में डा एचएस रावत और सविता रावत को मुख्मंत्री टीएस रावत से जोड़ते हुये लगाये गये भ्रष्टाचार के आरोपों के सिलिसले में कई अपराधों को सूचीबद्ध किया गया। शर्मा पर कपट करने, जालसाजी करने, साजिश करने और इससे जुड़े अन्य अपराधों के आरोप लगे।
उच्च न्यायालय ने प्रथम सूचना रिपोर्ट रद्द करते हुये कहा कि पहली नजर में इनमें से कोई भी आरोप शर्मा के खिलाफ नहीं बनता है।
न्यायालय ने अपने फैसले में यह राय भी व्यक्त की कि ‘‘प्रथम सूचना रिपोर्ट में लगाये गये आरोप 2019 से ही सरकार और शिकायतकर्ता की जानकारी में होने के तथ्य और शर्मा के खिलाफ मामला दायर करने की रफ्तार से ऐसा लगता है कि यह मामला दुर्भावना की मंशा से प्रेरित है।’’
इस बीच, शर्मा के खिलाफ कई दूसरी प्राथमिकी भी लंबित थीं। इनमें राज्य के मुख्यमंत्री का स्टिंग आपरेशन और उसमे भी लगाये गये इसी तरह के आरोपों का मामला भी शामिल था।
समाचार प्लस न्यूज चैनल में उमेश शर्मा के सहयोगी पंडित आयूष गौड़ ने देहरादून में प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 100/2018 दर्ज करायी थी जिसमे आरोप लगाया गया था कि शर्मा राज्य सरकार को अस्थिर करने और राज्य में अशांति तथा हिंसा के लिये अनैतिक तरीके से स्टिंग आपरेशन करने का गौड़ पर दबाव डाल रहे हैं।
उसी साल, अमृतेश सिंह चौहान (जो बाद में उमेश शर्मा द्वारा जारी वीडियो में मुख्यमंत्री टीएस रावत को रिश्वत देने का आरोपी हुआ) ने रांची में प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 354/2018 दायर की जिसमें शर्मा के खिलाफ देशद्रोह और आपराधिक रूप से धमकी देने सहित अनेक आरोप लगाये गये। चौहान ने आरोप लगाया था कि शर्मा उत्तराखंड सरकार को अस्थिर करने और गिराने की गरज से सारी जानकारी सार्वजनिक करने की धमकी देकर उन्हें ब्लैकमेल कर रहा है।
इसके बाद, डा एचएस रावत के जुलाई, 2020 के पत्र के आधार पर प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 265/2020 दर्ज हुयी। इस प्राथमिकी को अब न्यायालय ने निरस्त कर दिया है।
न्यायालय ने इस तथ्य को गंभीरता से लिया कि साजिश करने का इसी तरह का आरोप नयी प्राथमिकी में भी लगाया गया है जिसकी अनुमति नहीं है। न्यायमूर्ति मैथानी ने कहा,
‘‘इस प्राथमिकी पर अलग से जांच की अनुमति नहीं दी जा सकती। सिर्फ इसी आधार पर प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 265/2020 निरस्त करने योग्य है।’’
न्यायालय की राय थी कि शर्मा के खिलाफ 2020 की प्राथमिकी रद्द किये जाने के बावजूद भी कई मुद्दे अभी हैं।
न्यायालय ने सवाल किया, ‘‘क्या इस न्यायालय को याचिकाकर्ता द्वारा लगाये गये आरोपों को बगैर किसी जांच के जांच की याददाश्त में खो जाने देना चाहिए या न्यायालय को स्वत: कार्रवाई करके मामले की जांच करानी चाहिए ताकि स्थिति साफ हो सके।’’
मैथानी ने अपने फैसले में टिप्पणी की,
‘‘जनता को इस धारणा में नहीं जीना चाहिए कि उनके प्रतिनिधत पवित्र नहीं है।अगर कोई झूठे आरोप लगाता है, जो कानून में कार्रवाई योग्य हैं, कानून को अपना काम करना चाहिए। अगर भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे व्यक्तियों को बगैर किसी जांच के ही समाज में उच्च पदों पर रहने दिया जाये तो यह न तो समाज के विकास में मददगार होगा और न ही राज्य के प्रभावी तरीके से काम करने में। भ्रष्टाचार कोई नयी बात नहीं है। भ्रष्टाचार ऐसी समस्या है जिसने जिंदगी के हर क्षेत्र में अपनी पैठ बना ली है। ऐसा लगता है कि समाज ने इसे सामान्य बना लिया है।’’
यह टिप्पणी करने के बाद और मुख्यमंत्री टीएस रावत के खिलाफ शर्मा के आरोपों को देखते हुये न्यायाधीश ने आदेश दिया,
‘‘आरोपों की गंभीरता को देखते हुये इस न्यायालय का मानना है कि सीबीआई को इस याचिका के पैरा आठ में लगाये गये आरोपों के आधार पर प्राथमिकी दर्ज करने और कानून के अनुसार मामले की जांच करने का निदेश दिया जाना चाहिए।’’
फैसले में न्यायालय ने इस बात को गंभीरता से लिया कि सरकार ने शर्मा के खिलाफ देशद्रोह का आरोप भी लगाया।
उच्च न्यायालय ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि केदारनाथ मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले के अनुसार कोई गतिविधि उस समय तक देशद्रोह नहीं होगी जब तक इसका मकसद सार्वजनिक शांति भंग करने, अव्यवस्था पैदा करने या हिंसा करना नहीं हो
न्यायमूर्ति मैथानी ने इस बात पर जोर दिया,
‘‘किसी व्यक्ति के खिलाफ झूठे आरोप लगाना कभी भी देशद्रोह नहीं हो सकता जब तक यह केदार नाथ सिंह मामले में प्रतिपादित कसौटी पर खरा नहीं उतरे। अगर प्रतिनिधियों के खिलाफ आरोप लगाये गये हैं तो यह अपने आप में ही देशद्रोह नहीं हो सकता।’’
न्यायमूर्ति मैथानी ने यह भी कहा,
‘‘इस मामले मे भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए जोड़ना दर्शाता है कि यह सरकार का आलोचना और असहमति की आवाज दबाने काप्रयास है। इसकी कभी अनुमति नहीं दी जा सकती। कानूनी इसकी अनुमति नहीं देता है। इस मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ जो भी आरोप हैं उनका धारा 124-ए से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं है। भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए के तहत पहली नजर में मामला नहीं बनता है। यह समझ से परे है कि यह धारा इसमें क्यों जोड़ी गयी। सरकार की ओर से इस बारे में जो कुछ भी कहा गया है उसमे कोई मेरिट नहीं है।’’
इस मामले मे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और श्याम दीवान ने शर्मा की ओर से बहस की जबकि राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस पटवालिया, उपमहाधिवक्ता रूचिरा गुप्ता और जेएस विर्क उपस्थित हुये। डा एचएस रावत की ओर से अधिवक्ता रामजी श्रीवास्तव और नवनीत कौशिक उपस्थित हुये।
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