
दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में माना कि कानून के गलत प्रावधान के तहत आवेदन दायर करना एक सुधार योग्य दोष है, बशर्ते कि दूसरे पक्ष को कोई पूर्वाग्रह न हो [राजीव शुक्ला बनाम गोपाल कृष्ण शुक्ला]।
न्यायमूर्ति रविंदर डुडेजा ने कहा कि यदि कानून की गलत धारा या प्रावधान न्यायालय या दूसरे पक्ष को गुमराह नहीं करता है और इससे कोई पूर्वाग्रह नहीं होता है, तो गलती को "सुधार योग्य दोष" माना जाता है।
अदालत ने कहा कि इसलिए, ऐसी त्रुटि मामले के लिए घातक नहीं होगी।
एकल न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि "किसी पक्ष द्वारा आवेदन में कानून की गलत धारा का उल्लेख करना आमतौर पर मामले के लिए "घातक" नहीं माना जाता है, बशर्ते कि आवेदन का सार स्पष्ट हो और इससे विपरीत पक्ष या न्यायालय को कोई पूर्वाग्रह न हो।"
न्यायालय के समक्ष मामला क्षतिपूर्ति की वसूली तथा स्थायी एवं अनिवार्य निषेधाज्ञा के लिए एक मुकदमे से संबंधित था।
निचली अदालत ने लिखित बयान दाखिल करने में देरी के लिए माफी मांगने वाले याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज कर दिया था, क्योंकि यह सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 151 के तहत दायर किया गया था, न कि परिसीमा अधिनियम के तहत।
निचली अदालत ने याचिकाकर्ता के लिखित बयान दाखिल करने के अधिकार को भी बंद कर दिया था तथा उसके बचाव को रद्द कर दिया था। इसके बाद याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय का रुख किया।
न्यायमूर्ति डुडेजा ने कहा कि न्यायालय आम तौर पर रूप से अधिक सार को प्राथमिकता देते हैं, खासकर यदि पक्ष द्वारा मांगी गई मंशा और राहत स्पष्ट हो।
उच्च न्यायालय ने कहा, "निचली अदालत को गलत धारा का हवाला देने की तकनीकी बातों के बजाय आवेदन की विषय-वस्तु पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए था। प्रक्रिया संबंधी त्रुटियां, जिसमें कानून के गलत प्रावधान का उल्लेख करना शामिल है, मूल न्याय को प्रभावित नहीं करना चाहिए।"
एकल न्यायाधीश ने आगे जोर दिया कि न्यायालय के पास न्याय सुनिश्चित करने के लिए धारा 151 सीपीसी के तहत व्यापक शक्तियां हैं।
न्यायालय ने कहा कि सुनवाई के दौरान आवेदन को गुण-दोष के आधार पर विचार करना चाहिए था, भले ही वह जिस प्रावधान के तहत दायर किया गया हो।
तदनुसार, उच्च न्यायालय ने सुनवाई अदालत को विलंब की माफी के आवेदन पर नए सिरे से दलीलें सुनने का निर्देश दिया।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता जसकरन सिंह, अंशुल गुप्ता और यश सिंह पेश हुए।
प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ता डीडी शर्मा और प्रशांत यादव पेश हुए।
[आदेश पढ़ें]
और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें
Mentioning wrong Section in petition not fatal to case if....: Delhi High Court