मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा पतंजली पर 10 लाख रूपये की काॅस्ट लगाई गई

(ब्रेकिंग) मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा पतंजली पर अपनी दवा कोरोनिल को बेचने पर रोक लगाई एवं कोविड-19 के भय से लाभ उठाने के कारण पतंजली पर 10 लाख रूपये की काॅस्ट लगाई गई
Patanjali
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‘वे कोरोना वायरस के इलाज के लिए आम जनता में भय और दहशत का फायदा उठाकर

अधिक मुनाफा प्राप्त करने की तरफ बढ रहे हैं, जबकि वास्तव मे उनकी ‘कोरोनिल टैबलेट’

से कोई इलाज संभव नहीं है, बल्कि यह एक प्रतिरक्षा बूस्टर है।’’

बाबा रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद को गुरूवार को मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा एक बडा झटका देते हुए कहा कि कम्पनी ने अपने उत्पादों के सम्बन्ध में ट्रेडमार्क ‘‘कोरोनिल’’ का उपयोग करने से पहले निषेधाज्ञा लागू कर दी है, जिसे कोविड-19 महामारी प्रतिरक्षा बूस्टर के रूप में व्यापार किया जा रहा है।

गत माह, चेन्नई स्थित अरूद्र इंजीनियरिंग प्राईवेट लिमिटेड के पक्ष में, जिसने जून 1993 में औद्योगिक सफाई एवं रासायनिक उपक्रम एसिड अवरोधक उत्पाद के रूप में ‘कोरोनिल-92 बी’ पंजीकृत किया था में एक अंतरिम निषेधाज्ञा पारित की गई थी।

पतंजलि और दिव्य योग मन्दिर ट्रस्ट द्वारा एकपक्षीय अंतरिम निषेधाज्ञा आदेश को निरस्त करने के प्रार्थना पत्र सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सीवी कार्तिकेयन द्वारा दोनों पक्षों पर संयुक्त रूप से 10 लाख रूपये का जुर्माना लगाया गया।

‘‘प्रतिवादीगण द्वारा इस मुकदमेबाजी को स्वयं द्वारा आमंत्रित किया गया है। ट्रेडमार्क्स रजिस्ट्री की एक जांच से स्पष्ट होता है कि ‘कोरोनिल’ एक पंजीकृत ट्रेडमार्क् है। यदि वे ‘कोरोनिल’ का नाम इस्तेमाल करते हैं और आगे भी करने का साहस करेंगे तो वे पूर्णतया किसी विचार के योग्य नहीं होंगे, वे यह कल्पना नहीं कर सकते कि वह अपने ही मार्ग मे बाधा डाल रहे हैं और एक पंजीकृत ट्रेडमार्क् का उल्लंघन कर रहे हैं। उन्हे यह समझना चाहिए कि व्यापार और वाणिज्य में कोई निष्पक्षता नहीं है। यदि उन्होंने पंजीकरण जांच नहीं किया था तो वे दोषी हैं। न्यायमूर्ति कार्तिकेयन ने कहा कि अनभिज्ञता और निर्दोषता की निंदा करते हैं और इस न्यायालय से दयालु पूर्ण व्यवहार की प्रार्थना करते हैं और ‘‘न्यायमूर्ति कार्तिकेयन’’ ने आज अपने आदेश में टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसी क्षमा याचना अस्वीकार योग्य है।’’

न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि पतंजलि और दिव्य योग मन्दिर ट्रस्ट (प्रतिवादियों) ने अरूद्र (वादी) के ट्रेडमार्क अधिकारो का उल्लंघन किया है:

  • ‘‘कोरोनिल-92 बी और कोरोनिल-213 एसपीएल’’ के लिए अरूद्र के ट्रेडमार्क अभी भी कार्य करते हैं।

  • प्रतिवादियों ने यह प्रमाणित नहीं किया है कि उनका ट्रेडमार्क ‘कोरोनिल टेबलेट’ पंजीकृत है। बल्कि प्रतिवादियों ने केवल पंजीकरण के लिए आवेदन किया है और यह अभी प्रारम्भिक चरण में है ।

  • दोनों शब्द ‘कोरोनिल’ के एक समान हैं।

  • प्रतिवादियों द्वारा विशिष्ट नाम ‘कोरोनिल’ पर प्रत्यक्ष रूप से उल्लंघन किया गया है।

  • वादी ने भारत में बहुतायात उद्योगो के बीच में एक प्रथम दृष्टया प्रतिष्ठा स्थापित की है जहां रासायनिक तत्वो का उपयोग उपचार एवं संक्षारण रोकने के लिए किया जाता है। उन्होंने विदेशों में भी उद्योगो में प्रतिष्ठा हासिल की है।

  • प्रतिवादियों ने अपने उत्पाद को ‘कोरोनिल’ के रूप में नामित करने के कारण नहीं दिखाये हैं, क्यूँकिं कोई भी प्रत्यक्ष सामग्री नहीं है जो यह दिखाती है कि कोरोना वायरस के लिए एक इलाज है।

  • प्रतिवादियों द्वारा ‘कोरोनिल’ शब्द का उपयोग वादी की छाप के विशिष्ट चरित्र के लिए हानिकारक होगा क्योंकि प्रतिवादियों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले ट्रेडमार्क कोरोनिल’ और उनके अनुमानित बयानो के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है कि यह कोरोना वायरस का इलाज है।

  • ऐसी संभावना है कि आम जनता यह सवाल कर सकती है कि क्या वादी के ट्रेडमार्क ‘कोरोनिल’ बचाव के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि प्रतिवादीगण द्वारा ‘कारोनिल’ का अनुरूपण कर प्रदर्शित किया है जो कोरोना वायरस को सही नहीं कर सकता है।

‘‘प्रतिवादियों ने दोहराते हुए अनुमान लगाया है कि उनकी 10,000 करोड की कम्पनी है। हालांकि वे अभी भी कोरोना वायरस के लिए एक इलाज का अनुमान लगाकर आम जनता में भय और दहशत का फायदा उठाकर अधिक मुनाफा प्राप्त करने की तरफ बढ रहे हैं, जबकि वास्तव में उनकी कोरोनिल टैबलेट कोरोना वायरस से बचाव के लिए नहीं है, बल्कि यह खांसी, जुकाम और बुखार के लिए एक प्रतिरक्षा बूस्टर है।’’

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