
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को एक व्यवसायी की याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें उसके खिलाफ अब बंद हो चुके आपराधिक मामले से संबंधित अदालती आदेश को भारतीय कानून वेबसाइट से हटाने की मांग की गई थी।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने भूल जाने के अधिकार का हवाला देते हुए दायर याचिका पर इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारतीय कानून और गूगल से जवाब मांगा।
पीठ ने न्यायालय की रजिस्ट्री को वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता का नाम छिपाने का भी निर्देश दिया और मामले की अगली सुनवाई के लिए 4 फरवरी की तारीख तय की।
याचिकाकर्ता के खिलाफ 2024 में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसके कारण उसे अग्रिम जमानत के लिए उच्च न्यायालय का रुख करना पड़ा। बाद में पुलिस ने मामले के संबंध में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की।
इस बीच, अग्रिम जमानत आदेश इंडियन कानून पर उपलब्ध हो गया।
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता आदित्य अग्रवाल ने कहा कि वह एक व्यवसायी हैं, जिनकी विश्वसनीयता प्रभावित हो रही है क्योंकि आदेश गूगल के माध्यम से उपलब्ध है।
इंडियन कानून से उक्त आदेश को हटाने की मांग करते हुए वकील ने कहा, "इससे मेरे मुवक्किलों के सामने एक अलग छवि बनती है, मेरे अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।"
गूगल की ओर से पेश अधिवक्ता ममता रानी ने न्यायालय को भूल जाने के अधिकार से संबंधित याचिकाओं के एक समूह के लंबित होने की जानकारी दी।
उन्होंने तर्क दिया, "यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम भूल जाने के अधिकार, विशेष रूप से, न्यायालय के आदेशों के मामले में जानने के अधिकार बनाम भूल जाने के अधिकार का मामला है।"
उन्होंने न्यायालय को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक संबंधित मामले के लंबित होने की भी जानकारी दी, जिसमें मद्रास उच्च न्यायालय के एक निर्णय को चुनौती दी गई है।
उन्होंने कहा, "मामले के शीर्षक को छिपाया जा सकता है या नहीं, इस पर अदालत ने अभी तक फैसला नहीं किया है।"
उन्होंने कहा कि पोक्सो अधिनियम के मामलों, वैवाहिक मामलों और यौन उत्पीड़न के मामलों जैसे संवेदनशील मामलों में मामले के शीर्षक को छिपाने की अनुमति है, लेकिन याचिकाकर्ता से संबंधित मामलों के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
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Plea moved in Delhi High Court to take down court order from Indian Kanoon