
कलकत्ता उच्च न्यायालय 27 जनवरी को पश्चिम बंगाल राज्य द्वारा दायर याचिका की स्वीकार्यता पर फैसला करेगा, जिसमें कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के लिए दोषी संजय रॉय को मृत्युदंड देने की मांग की गई है।
मामले की सुनवाई जस्टिस देबांग्शु बसाक और एमडी शब्बर रशीदी की बेंच करेगी।
कोर्ट ने रॉय का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील को उनसे मिलने और वकालतनामा प्राप्त करने की अनुमति दी।
अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश अनिरबन दास ने सोमवार को रॉय को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
ट्रायल जज ने मृत्युदंड देने से इनकार करते हुए कहा कि अपराध को "दुर्लभतम में से दुर्लभतम" के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है, जो मृत्युदंड देने का परीक्षण है।
राज्य सरकार ने 21 जनवरी को मामले का उल्लेख किया था और कहा था कि वह रॉय के लिए मृत्युदंड की मांग करने के लिए अपील दायर कर रही है।
इससे पहले, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सजा के आदेश के खिलाफ अपील करने के फैसले की घोषणा की थी।
यह मामला 31 वर्षीय रेजिडेंट डॉक्टर के बलात्कार और हत्या से संबंधित है, जो 9 अगस्त, 2024 को कोलकाता में राज्य द्वारा संचालित आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में मृत पाई गई थी।
डॉक्टर कॉलेज के एक सेमिनार हॉल में मृत पाई गई थी और पोस्टमार्टम से पुष्टि हुई थी कि उसके साथ बलात्कार किया गया था और उसकी हत्या की गई थी।
इस घटना से देश भर में आक्रोश फैल गया और डॉक्टरों ने चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सख्त कानून और पुलिसिंग की मांग करते हुए पूरे देश में विरोध प्रदर्शन किया।
शहर पुलिस के नागरिक स्वयंसेवक रॉय को घटना के एक दिन बाद 10 अगस्त, 2024 को कोलकाता पुलिस ने गिरफ्तार किया था।
मामले की जांच कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी गई थी।
पश्चिम बंगाल की निचली अदालत ने रॉय के खिलाफ बलात्कार और हत्या के लिए आपराधिक आरोप तय किए। मुकदमा 12 नवंबर, 2024 को शुरू हुआ और 9 जनवरी को समाप्त हुआ, जिसमें सीबीआई ने रॉय के लिए मौत की सजा की मांग की।
निचली अदालत ने 57 दिनों तक चली बंद कमरे में सुनवाई के बाद 18 जनवरी को रॉय को दोषी ठहराया।
न्यायालय ने मामले को संभालने में कोलकाता पुलिस और आर.जी. कर अस्पताल की ओर से की गई विभिन्न चूकों की भी आलोचना की, लेकिन साथ ही कहा कि ये चूक अभियोजन पक्ष के मामले के लिए घातक नहीं थीं।
हालांकि, न्यायालय ने मृत्युदंड देने से इनकार कर दिया। न्यायालय ने कहा कि सजा देने के मामले में न्यायालयों को “आंख के बदले आंख” जैसे आदिम विचारों से ऊपर उठना चाहिए। न्यायालयों का कर्तव्य है कि वे सुनिश्चित करें कि न्याय साक्ष्य पर आधारित हो न कि केवल जन भावनाओं पर।
और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें