सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा के मामलों में जमानती वारंट जारी करने की आलोचना की

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत कार्यवाही में तब तक दंडात्मक परिणाम नहीं होंगे, जब तक कि किसी पक्ष ने संरक्षण आदेश का उल्लंघन नहीं किया हो।
Domestic Violence Act
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सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में घरेलू हिंसा के मामलों में ट्रायल कोर्ट द्वारा जमानती वारंट जारी करने की आलोचना की।

न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने एक ऐसे मामले पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें एक मजिस्ट्रेट अदालत ने घरेलू हिंसा के एक मामले में पक्षकारों में से एक के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया था।

न्यायमूर्ति मेहता ने मजिस्ट्रेट अदालत के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 (डीवी अधिनियम) के तहत कार्यवाही में दंडात्मक परिणाम नहीं आते हैं, जब तक कि किसी पक्ष ने सुरक्षा आदेश का उल्लंघन न किया हो।

अदालत ने 3 जनवरी के अपने आदेश में कहा, "यह अदालत यह मानने के लिए बाध्य है कि डी.वी. अधिनियम के प्रावधानों के तहत दायर आवेदन में ट्रायल कोर्ट द्वारा जमानती वारंट जारी करने का कोई औचित्य नहीं है। डी.वी. अधिनियम के तहत कार्यवाही अर्ध-आपराधिक कार्यवाही है, जिसका कोई दंडात्मक परिणाम नहीं होता है, सिवाय इसके कि सुरक्षा आदेश का उल्लंघन या भंग हो। इसलिए, विद्वान मजिस्ट्रेट द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ जमानती वारंट जारी करने का निर्देश देना पूरी तरह से अनुचित था।"

Justice Sandeep Mehta
Justice Sandeep Mehta

यह आदेश एक महिला द्वारा दायर की गई याचिका पर पारित किया गया था, जिसमें उसने अपनी सास द्वारा दायर घरेलू हिंसा के मामले को दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत से लुधियाना के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया था।

याचिकाकर्ता महिला ने कहा कि उसका एक दिव्यांग नाबालिग बेटा है, और वह बेरोजगार है तथा जीवनयापन के लिए पूरी तरह अपने पिता पर निर्भर है। उसने अदालत को यह भी बताया कि दिल्ली की मजिस्ट्रेट अदालत ने उसके खिलाफ जमानती वारंट जारी किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि ऐसे मामले में वारंट जारी करना अनुचित है।

उसने यह भी कहा कि महिला के पति द्वारा दायर तलाक के मामले की कार्यवाही पहले ही लुधियाना की एक पारिवारिक अदालत में स्थानांतरित की जा चुकी है।

इसलिए, उसने याचिका को स्वीकार कर लिया तथा आदेश दिया कि मामले को लुधियाना की मजिस्ट्रेट अदालत में स्थानांतरित किया जाए। उसने यह भी कहा कि पक्षकारों को लुधियाना कोर्ट में उपलब्ध किसी भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा का उपयोग करने की अनुमति दी जा सकती है।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता असावरी सोढ़ी तथा एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड जेहरा खान ने किया।

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Supreme Court criticises issuance of bailable warrants in domestic violence cases

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