मद्रास उच्च न्यायालय ने एनडीपीएस के आरोपी को कथित रूप से जमानत मिलने मदद करने वाले विशेष लोक अभियोजक को काम करने से रोका

अदालत द्वारा बार बार चेतावनी दिये जाने के बावजूद यह पाया गया कि विशेष लोक अभियोजक ने एनडीपीएस के कम से कम 43 मामलों में देर से अंतिम रिपोर्ट दाखिल की जिस वजह से आरोपियों को जमानत पर रिहा किया गया
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मद्रास उच्च न्यायालय ने मंगलवार को अपने अंतरिम आदेश में विशेष लोक अभियोजक पी सीतारमण को इस रूप में काम करने से रोक दिया। न्यायालय ने पाया कि सीतारमण ने एनडीपीएस के कम से कम 43 मामलों में अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने में विलंब किया जिसकी वजह से आरोपी जमानत पर रिहाई का अधिकारी हो गया।

उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के न्यायमूति् एन किरुबाकरण और न्यायमूर्ति बी पुगलनेंधी की खंडपीठ ने इस आरोप पर भी गौर किया कि विशेष लोक अभियोजक ने 10वीं कक्षा की पढ़ाई भी पूरी नहीं की है और उसने मुक्त विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री प्राप्त की थी।

न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, ‘’43 मामलों में अंतिम रिपोर्ट दाखिल नही की गयी और इसी के आधार पर आरोपियों ने जमानत ली और जेल से बाहर आ गये।’’

’43 मामलों में अंतिम रिपोर्ट दाखिल नही की गयी और इसी के आधार पर आरोपियों ने जमानत ली और वे आराम से जेल से बाहर आ गये।
मद्रास उच्च न्यायालय

न्यायालय में बी पंडियाराजन ने एक जनहित याचिका दायर की थी, जिन्होंने न्यायालय को बताया कि विशेष लोक अभियोजक सीतारमण की यह आदत है कि वह पुलिस से समय से अंतिम रिपोर्ट प्राप्त करता है लेकिन उसे अदालत में दाखिल करने में विलंब करता है ताकि आरोपी को अनिवार्य जमानत मिल जाये और वह रिहा हो जाये।

न्यायालय ने कहा, ‘‘हलफनामे में वर्णित तथ्य हतप्रभ करने वाले हैं। यह आरोप लगाया गया है कि इसके लिये वह जानबूझ कर दूसरी वजहों से यह तरीका अपनाया करता था।

पीठ ने ऐसी कम से कम दो घटनाओं का स्मरण किया जिनमे मद्रास उच्च न्यायालय ने भी विशेष लोक अभियोजक को चेतावनी दी थी और जहां उसने यह सुनिश्चित करने का आश्वासन दिया था कि भविष्य में अंतिम रिपोर्ट समय सीमा के भीतर ही दाखिल की जायेगी।

न्यायालय ने अपने आदेश में इस बात का जिक्र किया कि, ‘‘हालांकि, उसने अपना रवैया नहीं बदला और समय सीमा के भीतर अंतिम रिपोर्ट दाखिल नही की।’’ न्यायालय ने कहा कि कम से कम 43 मामलों से विशेष लोक अभियोजक के आचरण का साफ पता चलता है जिनमें आरोपियों को अनिवार्य रूप से जमानत पर रिहा करना पड़ा।

न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, ‘‘ इस बहुत ही शर्मनाक और चौंकाने वाला है कि इस न्यायालय में पेश होने और भविष्य में, विशेषकर एनडीपीएस के मामलों में, समय सीमा के भीतर ही अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने का आश्वासन देने के बाद भी 43 मामलों में अंतिम रिपोर्ट दाखिल नहीं की गयी और इस वजह से आरोपियों को अनिवार्य रूप से जमानत मिल गयी और वे जेल से बाहर आ गये। इससे पता चलता है कि वह विशेष लोक अभियोजक के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर रहे थे। इसलिए उन्हें विशेष लोक अभियोजक के रूप में काम करने से रोका जाना चाहिए। अगर वह लोक अभियोजक के रूप में काम करते रहते हैं तो यह जनहित, विशेषकर, जब नशीले पदार्थो के सेवन के मामले ज्यादा ज्यादा लोगों, खासकर युवकों, को प्रभावित कर रहे हैं, में नहीं होगा। इसलिए तीसरे प्रतिवादी को एनडीपीएस मामलों में अगले आदेश तक विशेष लोक अभियोजक के रूप में काम करने से प्रतिबंधित करने का अंतरिम निर्देश प्रभावी रहेगा।’’

न्यायालय ने यह टिप्पणी भी कि सीतारमण पर विशेष लोक अभियोजक के अपने पद का उपयोग करके भ्रष्ट तरीके अपना कर और एनडीपीएस कानून में आरोपियों की जमानत में मदद करके संपत्ति जुटाने के भी आरोप हैं।

इसलिए यह न्यायालय सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक विभाग को निर्देश देता है कि इसकी जांच करके रिपोर्ट पेश करे। न्यायालय ने इस मामले को आगे विचार के लिये 21 जनवरी, 2021 के लिये सूचीबद्ध कर दिया है।

पीठ ने अपने आदेश के दौरान यह टिप्पणी भी की, ‘‘ऐसा लगता है कि यह एक छोटा सा मामला ही हमारे सामने लाया गया है। यह मालूम नहीं है कि कितने विधि अधिकारी समाज और शासन के हितों के खिलाफ काम कर रहे हैं और वे विधि अधिकारी/लोक सेवक के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर रहे हैं।’’

बुधवार को इस मामले का उल्लेख करके न्यायालय से विशेष लोक सेवक के बारे में अपने आदेश पर पुन:विचार करने का अनुरोध किया गया था लेकिन पीठ ने इस पर विचार करने से इंकार कर दिया।

पीठ ने मौखिक रूप से ही टिप्पणी की, ‘‘ यह सत्य है कि अनेक व्यक्ति कानूनन अनिवार्य जमानत पर रिहा हो गये हैं और यह तथ्य पहले के आदेशों में दर्ज है।’’

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Madras High Court restrains Special Public Prosecutor from functioning for allegedly enabling NDPS accused to get default bail

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