उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति यूयू ललित ने शीर्ष अदालत के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमना पर आरोप लगाने वाले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेउ्डी के खिलाफ कार्रवाई के लिये दायर याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।
यह याचिका न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध थी। न्यायमूर्ति ललित ने कहा,
‘‘बतौर अधिवक्ता, मैं मुकदमों में इन पक्षकारों की ओर से पेश हुआ हूं। मैं इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकता। इस मामले को प्रधान न्यायाधीश के निर्णय के अनुसार यथाशीघ्र किसी अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाये।’’
न्यायालय जगनमोहन रेड्डी द्वारा शीर्ष अदालत के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमना को ‘बदनाम’ करने वाली टिप्पणियां किये जाने के कारण उन्हें मुख्यमंत्री के पद से हटाने के लिये दायर तीन याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
ये जनहित याचिकायें तीन अधिवक्ताओं- जीएस मणि, प्रदीप कुमार यादव और सुनील कुमार सिंह तथा गैर सरकारी संगठन एंटी करप्टशन काउन्सिल ऑफ इंडिया ट्रस्ट ने दायर की हैं। इन याचिकाओं में कहा गया है कि न्यायमूर्ति रमना के खिलाफ रेड्डी के आरोप निराधान हैं। याचिका में इस तथ्य को भी रेखांकित किया गया है कि जगनमोहन रेड्डी पर 20 से ज्यादा आपराधिक मुकदमे लंबित हैं।
याचिकाकर्ताओं ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा लगाये गये आरोपों की उच्चतम न्यायालय के पीठासीन या सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की अध्यक्षता वाली आंतरिक समिति से न्यायिक जांच कराने या सीबीआई सहित किसी अन्य प्राधिकार से जांच कराने का अनुरोध किया है।
अधिवक्ता सुनील कुमार सिंह ने अपनी याचिका में न्यायालय से अनुरोध किया है कि प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे को छह अक्तूबर को न्यायमूर्ति रमना के बारे में कतिपय आरोप लगाने वाला पत्र भेजने के बाद सरकारी अधिकारी द्वारा इसे सार्वजनिक किये जाने के मामले में जगनमोहन रेड्डी को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाये।
याचिका में कहा गया है, ‘‘ रेड्डी के इस आचरण से जनता का विश्वास डगमगाया है। क्योंकि उनका यह आचरण और कुछ नहीं बल्कि हमारे देश में स्थापित लोकतांत्रिक व्यवस्था को अस्थिर करने का प्रयास है।’’
याचिका में यह दलील भी दी गयी है कि ‘‘रेड्डी के इस कृत्य की वजह से उत्पन्न अभूतपूर्व स्थिति से निबटने के लिये न्यायालय को तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए।’’
याचिका में इस तरह की गैर जिम्मेदाराना गतिविधियों से निबटने के लिये दिशा निर्देश प्रतिपादित करने का भी अनुरोध किया गया है।
अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने इससे पहले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनके प्रधान सलाहकार अजेय कल्लम के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की सहमति देने से इंकार करने के अपने निर्णय पर पुन: विचार करने से इंकार कर दिया था। अजेय कल्लम ने ही न्यायाधीशों पर गंभीर आरोपों के बारे में प्रधान न्यायाधीश को भेजा गया पत्र सार्वजनिक किया था।
भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने पांच नवंबर को अटार्नी जनरल से यह अनुरोध किया था।
जगनमोहन रेड्डी ने अक्टूबर में प्रधान न्यायाधीश बोबडे का पत्र लिखकर न्यायमूर्ति रमना पर आरोप लगाया था कि वह आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के कुछ न्यायाधीशों के रोस्टर सहित न्यायिक कार्यो को प्रभावित कर रहे हैं।
रेड्डी ने 6 अक्टूबर के इस पत्र में यह आरोप भी लगाया था कि विपक्षी तेलुगू देसम पार्टी से संबंधितिम महत्वपूर्ण मुकदमों को ‘कुछ न्यायाधीशों को ही आंबटित’ किया जा रहा है।
अटार्नी जनरल ने कहा था कि प्रधान न्यायाधीश को इस मामले की जानकारी है ओर ऐसी स्थिति में उनके लिये सहमति देना और इस मामले में प्रधान न्यायाधीश को निर्णय लेने से रोकना अनुचित होगा।
न्यायालय में दायर याचिका में दलील दी गयी है कि यह आरोप लगाने का समय ‘‘बहुत ही संदिग्ध और संदेह पैदा करने ’ वाला है क्योंकि यह न्यायाधीश काफी लंबे समय से भारतीय न्यायपालिका में सेवारत हैं लेकिन रेड्डी ने इससे पहले कभी भी इन आरोपों का खुलासा नहीं किया।
और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें